फरेबी बिल्डरों के विरुद्ध अब हो सकती है कार्रवाई

पूरे हिंदुस्तान में लगभग 22 लाख ऐसे परेशान फ्लैट खरीददार हैं, जिन्हें बिल्डरों ने बड़े-बड़े सब्ज बाग दिखाकर छह महीने से एक साल के भीतर फ्लैट देने का वायदा किया था, लेकिन इनमें से कइयों को अब दस साल से भी ज्यादा गुज़र गये हैं और उन्हें फ्लैट नहीं मिला। हद तो यह है कि रेरा (रेगुलेशन एंड डेवलपमेंट एक्ट-2016) लागू होने के बाद भी इनकी स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा।   बिल्डर माफिया की प्रशासनिक तंत्र से कुछ इस तरह से सैटिंग होती है कि वह बिना खरीदारों की कंसेंट लिए रेरा को तिथि आगे बढ़ाने का आवेदन लगाता है और रेरा तिथि बढ़ा देता है। आखिर यह अंधेरगर्दी कब तक चलेगी? जिन लोगों ने फ्लैट खरीदने के लिए अपने जीवनभर की गाढ़ी कमाई लगायी होती है, उन्होंने किसी कमाई के मकसद से यह निवेश नहीं किया बल्कि रहने के लिए फ्लैट खरीदे थे लेकिन आज भी ये खरीदार किराये पर रह रहे हैं जबकि उनके जीवनभर की कमाई बिल्डर के पास चली गई।  शोषण का यह इतना बड़ा चक्रव्यूह है कि फ्लैट खरीदने के नाम पर आज भी देश के किसी भी कोने में लोग डर से कांप जाते हैं क्योंकि कमोबेश हर जगह के अनुभव इसी तरह के हैं। छोटे-छोटे स्थानीय स्तर पर बिल्ंिडग बनाकर फ्लैट बेचने वालों की छोड़िये, बड़ी-बड़ी कम्पनियों का भी यही हाल है। कोढ़ में खाज की तरह अब पिछले दो सालों से ये सारे बिल्डर कोरोना का भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन यह अंधेरगर्दी हमेशा नहीं चलेगी। जिस तरह से पिछले पांच सालों के भीतर एनसीआर में बिल्डर्स के खिलाफ  कानूनी कार्यवाइयां हुई हैं और जिस तरह से 28 अगस्त, 2022 को ट्विन टावर ध्वस्त किये गये हैं, उसके बाद से उम्मीद बंधी है कि बिल्डरों को सबक सिखाने के लिए सिर्फ  अवैध प्रोजेक्ट ध्वस्त ही नहीं होंगे बल्कि वायदा खिलाफी की उन गतिविधियों पर भी कार्यवाही होगी, जिनके चलते बिल्डर लाखों फ्लैट खरीददारों के खून पसीने की कमाई को हड़प लेते हैं। 
आज स्थिति यह है कि पूरे देश में लाखों फ्लैट खरीददार परेशान हैं। हज़ारों ने इसे लेकर कानूनी कार्रवाई भी की है, लेकिन इस कानूनी कार्रवाई में भी एक लम्बी खीझ और दिक्कत के सिवा कुछ नहीं मिलता। बिल्डर उन्हें जिस कीमत पर फ्लैट बेचता है, वह उन्हें मिलते मिलते सवा से डेढ़ गुणा कीमत का हो जाता है।  ऐसा नहीं कि यह सब कुछ अचानक और पहली बार हो रहा है। 90 के दशक के बाद से लगातार इस तरह की स्थितियों से आम मध्यवर्ग के लोग जूझ रहे हैं, लेकिन या तो सरकारें इसे देखकर अनदेखा करती रही हैं या उन्हें आम लोगों के मुकाबले बिल्डर समूह ज्यादा काम का लगता रहा है। इसलिए अब तक उसके खिलाफ  किसी तरह की कार्यवाही से सरकारें बचती रही हैं लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। सूत्रों के मुताबिक शहरी विकास मंत्रालय, गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय मिलकर एक ऐसी साझी कार्यवाही के बारे में सोच रहे हैं जिससे घर खरीदने के लिए अपना सब कुछ गंवा चुके देशवासियों को जल्द से जल्छ राहत मिले। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर