बच्चों को साहित्य से जोड़िए

हमारे बच्चे ही कल का भविष्य हैं। उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़ने का काम उनके अभिभावक ही कर सकते हैं। उन्हें अच्छा नागरिक बनाने में पूरा सहयोग कर सकते हैं। ऐसे ही बच्चे आगे चलकर राष्ट्र का निर्माण करेंगे। यह कार्य तब ही हो सकता है, जब हम बच्चों को पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त उन्हें देश के निर्माण में सहायक बाल पत्रिकाओं और प्रेरक पुस्तकों से जोड़ें। 
इस देश को आजादी दिलवाने में लाखों लोगों के बलिदान हुए हैं। लेकिन आज के बच्चों को उनके बलिदानों का इसका एहसास ही नहीं होता, बल्कि बच्चों को ही क्या बड़ों को भी नहीं होता।
आधुनिकता और भौतिकवाद ने ही बच्चे और बड़ों केवल और केवल बॉलीवुड, मोबाइल और टीवी की देर रात तक जगने की संस्कृति ने ही उन्हें दीवाना बना दिया है। वे अपना स्वास्थ्य चौपट कर रहे हैं।
अनेकानेक बच्चों की आंखों पर चश्मा तो लग ही गया है, साथ ही फास्टफूड ने अनेकों बीमारियों ने घेर लिया है।
वैसे आज भी कितने ही बच्चे, किशोर और किशोरियां परीक्षाओं में अच्छे अंक लाकर नाम रौशन कर रहे हैं, लेकिन उनके बारे में जब अध्ययन किया तो वे मोबाइल संस्कृति के दुरुपयोग से बहुत दूर थे। कितने ही खेल कूद में नाम रौशन कर रहे हैं।
बच्चों के लिए पुस्तकालय है। पहले बच्चे पढ़ने भी आते थे, लेकिन जब से मोबाइल से चिपके हैं, तब से उन्होंने आना ही छोड़ दिया है।
अभिभावकगण यदि बच्चों को बाल साहित्य की ज्ञानवर्धक, मनोरंजक पुस्तकें और पत्रिकाओं को अपने घरों में लाएं तो बच्चों पर इसका सकारात्मक प्रभाव अवश्य पड़ेगा। बच्चों के ज्ञान में वृद्धि होगी ही, साथ ही स्वस्थ मनोरंजन भी होगा। उन्हें रामचरितमानस, गीता आदि से भी जोड़ना चाहिए, क्योंकि उनसे ही हमारी भारतीय संस्कृति के संस्कार मिल सकते हैं। ईश्वर ने सबको जन्म कुछ अच्छा ही करने के लिए दिया है। उसी का स्मरण रखने के लिए हम धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। वहाँ से नई प्रेरणा लेकर आते हैं।’ 
शास्त्र कहते हैं कि ज्ञान ही सर्वश्रेष्ठ होता है। जितने भी मनुष्य आज शिखर पर हैं, उन्हें परिवार से अच्छे संस्कार मिले हैं, चाहे वे किसी भी क्षेत्र में हों। (सुमन सागर)