किसान मेले बने किसानों की समस्याओं को उभारने का स्रोत

किसानों तक नया कृषि ज्ञान एवं विज्ञान तथा रबी के विशेष करके गेहूं तथा सब्ज़ियों का ज्यादा झाड़ देने वाली किस्मों के बीज और फलों के पौधे आदि किसानों को उपलब्ध करने के लिए पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पी.ए.यू.) और आई.सी.ए. आर.-भारतीय कृषि अनुसंस्थान द्वारा किसान मेले लगाए जाते हैं। रबी संबंधी पी.ए.यू. ने गुरदासपुर, अमृतसर, बलाचौर, सौंखड़ी, फरीदकोट और रौणी में मेले लगाये और मुख्य किसान मेला लुधियाना कैंपस में 23-24 सितम्बर को लगाया गया। इसी तरह आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. के सहयोग से पंजाब यंग फार्मर्स एसोसिएशन ने रखड़ा में किसान कैंप आयोजित किया। इन मेलों व कैंपों में बुद्धिजीवी, प्रगतिशील किसानों और वैज्ञानिकों के बीच हुए विचार-विमर्श तथा किसानों की आपस में हुई चर्चा से कुछ किसान समस्याएं उभर के सामने आई, जो कृषि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को भी फीडबैक उपलब्ध करने का स्त्रोत है। किसानों द्वारा की गई यह चर्चा क्या प्रशासकों, कृषि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों सभी के लिए ही ध्यान देने योग्य है?
कृषि, जिस पर पंजाब की आर्थिकता आधारित है और जिस क्षेत्र में सबसे ज्यादा जनसंख्या रोज़गार में लगी हुई है, इस समय गम्भीर संकट में है। प्रदेश में धान-गेहूं का फसली चक्कर प्रधान है। चाहे इस फसली चक्कर की ही देन है कि सब्ज़ इन्कलाब द्वारा देश अनाज के पक्ष से आत्मनिर्भर ही नहीं हुआ बल्कि गेहूं और चावल निर्यात करने के योग्य हो गया परन्तु धान की काश्त के कारण भू-जल का स्तर कम होने की समस्या आ गई, जिसको हल करने के लिए फसली विभिन्नता की ज़रूरत पड़ी। किसान फसली विभिन्नता अन्य फसलों की काश्त करके ला सकते हैं परन्तु मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा लुधियाना किसान मेले में कहा गया कि दूसरी फसलों से किसानों को धान जितना मुनाफा प्राप्त हो ताकि फसली विभिन्नता लाने में कोई मुश्किल न हो। केन्द्र सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए। किसान तो पहले ही 25 प्रतिशत से ज्यादा क्षेत्र बासमती किस्मों के अधीन ले आये हैं जिसकी पानी की ज़रुरत धान के मुकाबले बहुत कम है। कम समय में पकने वाली कई किस्में जैसे पूसा बासमती-1509 तथा पूसा बासमती-1692 तो बारिश के पानी के साथ ही पक जाती हैं। इस साल तो किसानों को बासमती का दाम लाभदायक मिल रहा है। पी.बी.-1509 किस्म का 3500 से 3800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक और पूसा बासमती-1121 का 4800 से 5000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक। पिछले कई सालों के दौरान उनको अपनी फसल बहुत सस्ते दाम पर बेचनी पड़ी। केन्द्र को बासमती फसल का कम से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एम.एस.पी.) निर्धारित कर देना चाहिए जिसके साथ बासमती फसली चक्कर का दायिमी अंग बने। किसानों ने इस पर बहुत चर्चा की कि उनको धान की फसल की भी सरकारी खरीद बिना किसी मुश्किल का सामना कर दी जाए जिसके लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान ने किसान मेले में पूरा आश्वासन दिया। इसके लिए अक्तूबर में मंड़ियों में आने वाली फसल के लिए उचित प्रबंध किए जाने ज़रूरी हैं।
दूसरा मामला जो सामने आया, वह किसानों के सही और शुद्ध सामग्री उपलब्ध करने का है। डीएपी और यूिरया की कमी होने के कारण डीलर खादों के साथ किसानों के दवाईयों और अन्य सामग्री लेने के लिए मज़बूर करते हैं, जिसे कृषि और किसान भलाई विभाग द्वारा बंद किए जाने की ज़रूरत है। घनी कृषि (क्रॉपिंग इंटैसिटी) 200 प्रतिशत से बढ़ चुकी है। फसलों पर कीड़े-मकौड़ों के हमलों में वृद्धि हो चुकी है। धान की फसल को छोटे पौधे रहने की इस साल एक ओर समस्या आई है। बीमारियों और कीड़े-मकौड़ों पर काबू पाने के लिए किसान जबरदस्त ताकत वाले कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं जिन पर उनका बहुत खर्च हो रहा है। उल्लेखनीय है कि कीटनाशक दवाईयों के प्रयोग के लिए कृषि विशेषज्ञों की बजाय किसान कीटनाशकों के डीलरों की सलाह के साथ छिड़काव करने के लिए महंगी दवाईयों का चयन कर रहे हैं। डीलरों को इस संबंधी तकनीकी जानकारी कम होने के कारण वे ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दो-दो या तीन-तीन दवाईयों का मिश्रण करके छिड़काव करवा रहे हैं। किसानों का कहना है कि उनका कृषि प्रसार सेवा और पी.ए.यू. के विशेषज्ञों के साथ सम्पर्क नहीं होता जिस पर मुख्यमंत्री ने लुधियाना किसान मेले में कृषि विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों को किसानों के खेतों में जाकर सलाह देने के लिए प्रेरित किया है। किसानों का कहना है कि उनको बैंक भी फसल के लिए कज़र् नहीं देते और आढ़तियों ने भी पेशगी देनी बंद कर दी है। जिसके लिए उनको भी डीलरों से यह मदद लेनी पड़ती है और उनके कहने के अनुसार ही महंगे स्प्रे करने पड़ते हैं। फिर जो सम्पर्क के लिए टोल फ्री नम्बर हैं, उन पर भी किसानों को उस विषय पर विशेषज्ञों की ज़रूरी सहायता उपलब्ध नहीं होती।
फसलों के बीजों संबंधी भी किसान परेशान हैं। हर दिन मंडी में नई किस्म के नाम पर किसानों के बड़े महंगे दाम पर फसलों के बीज बेचे जा रहे हैं। यह किस्में न तो प्रमाणित हैं और न ही किसी संस्था या यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित की गई होती हैं। कई अमीर और प्रगतिशील किसान अब बीज विक्रेता बन कर पैसे कमाने की लालसा में हैं और वे मेलों व अन्य स्थानों पर घूमकर नई किस्मों के बीजों की तलाश में रहते हैं। कई किसानों की बीज की दुकानें भी हैं और वह महंगे दाम पर किसानों को बीज बेचते हैं। किसानों को उधार की पेशकश भी इनकी तरफ से कर दी जाती है। कृषि और किसान भलाई विभाग को चाहिए कि वह उन्हीं किस्मों का बीज बिकने दें जो सर्वभारतीय फसलों की किस्मों तथा स्तरों की सिफारिश करके प्रमाणिता देने वाली सब कमेटी द्वारा नोटीफाई और रिलीज़ कर दी गई हों। आज़माइश अधिन किस्मों के बीज भी कई स्थानों पर मड़ी में महंगे दाम पर बेचे जा रहे हैं।