भारत तथा कनाडा के मध्य बढ़ रहे तनाव को रोकने की ज़रूरत

तोड़ कर आज गलत-फहमी की दीवारों को,
दोस्तो अपने ताअल्लुक को संवारा जाये।।
भारत तथा कनाडा में बन रही दोस्ती की सम्भावनाएं एक बार फिर टूटती प्रतीत होती हैं। इसे लेकर कनाडा में बसते भारतीय और विशेष रूप से पंजाबी चिन्ता में हैं, क्योंकि कनाडा में सिख्स फॉर जस्टिस द्वारा खालिस्तान के पक्ष में शुरू किये गये रैफरैंडम (जनमत संग्रह) की लहर भारत तथा कनाडा में तनाव का कारण बन रही है। 
19 सितम्बर, 2022 को सिख्स फॉर जस्टिस ने कनाडा के  प्रदेश ओंटारियो के दूसरा पंजाब समझे जाते शहर ब्रैम्पटन में जब खालिस्तान के पक्ष में रैफरैंडम किया तो उस संबंध में एस.एफ.जे. द्वारा जारी वीडियो में महिलाओं तथा पुरुषों की लम्बी कतारें जनमत संग्रह हेतु वोट डालते दिखाई गई हैं। इस जनमत संग्रह में एक लाख से अधिक लोगों के शामिल होने के दावे किये गये हैं। चाहे भारतीय पक्ष इन्हें बढ़ा-चढ़ा कर किये गये दावे करार देता है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक टिप्पणी में इस जनमत संग्रह को आपत्तिजनक करार दिया तथा कहा कि यह कट्टरपंथी तत्वों द्वारा राजनीतिक तौर पर प्रेरित अभ्यास है, जिसे कनाडा जैसे ‘दोस्ताना देश’ में करने की इजाज़त क्यों दी गई।
समझा जाता है कि इसी गुस्से में ही भारत के विदेश मंत्रालय ने यह सलाह जारी कर दी कि कनाडा में रहते या गये भारतीय, कनाडा में बढ़ते ऩफरती अपराधों (हेट क्राइम्स) नस्लवाद तथा अलगाववादी गतिविधियों से सतर्क रहें। दूसरी तरफ कनाडा सरकार ने भी इसे अनदेखा करने की बजाये इसे अजीब करार दिया तथा कहा कि कनाडा में इन दिनों  घृणा अपराधों की दर कम हुई है, बढ़ी नहीं।
कनाडा ने भी भारत की सलाह के उत्तर में जवाबी कार्रवाई करते हुए अपने नागरिकों एवं पर्यटकों को सलाह दी है कि वे भारतीय सीमा के साथ लगते प्रदेशों जिनमें पंजाब, राजस्थान तथा गुजरात भी शामिल हैं, में जाने से बचें क्योंकि वहां बमों तथा बारूदी सुरंगों आदि का खतरा है जबकि वास्तव में इन तीनों प्रदेशों में ऐसा कोई बड़ा ़खतरा नहीं है। 
भारतीय सूत्र कहते हैं कि इस जनमत के अभ्यास को व्यापक स्तर पर पैसा दिया जा रहा है। अलगाववादियों ने रैफरैंडम में शामिल होने वाले भारतीयों खास तौर पर विद्यार्थियों को भारतीय एजेंसियों द्वारा इनमें शामिल होने से रोकने हेतु दी जाने वाली सम्भावित धमकियों के विरुद्ध कानूनी सहायता देने का भी वायदा किया है। नि:सन्देह कनाडा ने नियमित रूप में कहा है कि वह अलग सिख राष्ट्र को समर्थन दिलाने वाले इस जनमत संग्रह को मान्यता नहीं देता। परन्तु भारत का स्टैंड है कि पंजाब में हिंसा तथ खून-खराबे का पिछला लम्बा दौर भी इसी तरह की उकसाने वाली कार्रवाइयों का ही परिणाम था। इसलिए कनाडा सरकार को ऐसे जनमत की इजाज़त नहीं देनी चाहिए।
इस दौरान खालिस्तान समर्थकों का कहना है कि यह जनमत संग्रह पूरी तरह से एक शांतिपूर्ण प्रक्रिया है तथा वे अलग-अलग स्थानों पर इसे जारी रखेंगे। अब सिख्स फॉर जस्टिस ने खालिस्तान के समर्थन में अगला जनमत संग्रह टोरांटो में 6 अक्तूबर को करवाने का फैसला किया है, जिस कारण कनाडा तथा भारत सरकार के मध्य टकराव और बढ़ने की सम्भावनाएं बनती दिखाई देती हैं। खालिस्तान समर्थकों ने नवम्बर का महीना 1984 के सिख कत्लेआम की याद के रूप में चुना हो सकता है।
जिस तरह पिछले दिनों में भारत तथा कनाडा ने एक-दूसरे की आंतरिक स्थितियों तथा घटनाक्रमों संबंधी तीव्र टिप्पणियां की हैं, और अपने-अपने नागरिकों को निर्देश दिए हैं, उन्हें देखते हुए यह प्रतीत नहीं होता कि यदि सिख्स फॉर जस्टिस नवम्बर 2022 में कनाडा में ही दूसरा खालिस्तान के पक्ष में जनमत संग्रह करवाता है तो भारत कोई तीव्र प्रतिक्रिया नहीं देगा। वैसे भारत ने स्पष्ट किया है कि इस मामले में भारत सरकार सिख्स फॉर जस्टिस के विरुद्ध कार्रवाई करवाने हेतु कनाडा सरकार पर दबाव जारी रखेगी। इस दौरान भारत के हाई कमिश्न ने ब्रैम्पटन के भगवत गीता पार्क में तोड़-फोड़ तथा कथित आरोपों को भी घृणा कार्रवाई बताते हुये इसकी जांच करके दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई करने की अपील की है। एक तरह से यह भारतीयों को भारतीय विदेश मंत्रालय द्वारा दी गई कोई सलाह की पुष्टि ही करती है। परन्तु स्थानीय पील पुलिस ने कहा है कि इस पार्क के ढांचे में तोड़-फोड़ के कोई प्रमाण नहीं हैं। यह तो ठेकेदार द्वारा छोड़ा गया अधूरा कार्य है। पार्क का स्थायी चिन्ह आदि अभी लगाया जाना शेष है।
इन हालात में भारत तथा कनाडा में आगामी दिनों में तनाव बढ़ने की सम्भावनाएं ज्यादा दिखाई दे रही हैं क्योंकि जब तक सिख्स फॉर जस्टिस का जनमत संग्रह अभियान शांतिपूर्ण तथा विचाराभिव्यक्ति तक सीमित रहेगी, तब तक कनाडा सरकार द्वारा उस पर पाबंदी लगाये जाने की कोई सम्भावना नहीं है।
वास्तव में कनाडा में जनमत संग्रह (रैफरैंडम) का लम्बा इतिहास है।  रैफरैंडम देश की नीतियों को बदलने या लागू रखने हेतु राष्ट्रीय स्तर पर भी होते रहे हैं तथा कई अलग-अलग मामलों में प्रदेश स्तर पर भी हुये हैं। यहां तक कि सबसे अधिक चर्चित रैफरैंडम क्यूबिक प्रांत के हैं जो उसने अपनी प्रभुसत्ता बारे करवाये थे। इनमें से पहला 1980 में क्यूबिक को प्रभुसत्ता देने के लिए करवाया गया था, जिसमें कोई भी पक्ष विजयी नहीं रहा था और दूसरा अक्तूबर 1995 में ‘वैकल्पिक साझेदारी से प्रभुसत्ता’ के विषय पर हुआ था, परन्तु फिर भी कोई पक्ष विजेता नहीं रहा था। इसलिए 6 अक्तूबर का खालिस्तान समर्थक जनमत संग्रह जारी रहने की सम्भावना अधिक है, जिससे भारत कनाडा के संबंधों में दरार बढ़ सकती है। 
जारी थे संबंध सुधारने के यत्न
वैसे इस घटनाक्रम से पहले भारत तथा कनाडा द्वारा लम्बे समय से चल रहे आपसी तनाव को कम करने तथा आपसी संबंध सुधारने हेतु सचेत यत्न जारी थे। वास्तव में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो के पहले दो कार्यकालों के बाद बनी नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों ने भारत तथा कनाडा में माहौल सुधारने की आवश्यकता का अहसास करवाया था तथा दोनों देशों ने आपसी तालमेल बढ़ाने के लिए कुछ ताज़ा पहलकदमियां भी की थीं। 
चीन को घेरने के इरादे से बनी संस्था क्वाड जिसमें अमरीका, भारत, जापान तथा आस्ट्रेलिया आदि शामिल हैं, में भारत कनाडा को शामिल करने के लिए भी सहमत होता दिखाई दे रहा था। कनाडा भी चीन के मुकाबले भारत को प्राथमिकता देने पर विचार कर रहा था। फिर भारत ने कनाडा, अमरीका, आस्ट्रेलिया, जापान तथा दक्षिण कोरिया के पनडुब्बी  युद्ध अभ्यास में भी कनाडा को बराबर भागीदार मानते हुए भाग लिया था, जो कनाडा तथा भारत की सुरक्षा की साझ को दर्शाता है। भारत कनाडा के साथ एक अंतरिम व्यापारक समझौते की ओर बढ़ने की उम्मीद भी कर रहा था जो आखिर कनाडा और भारत को पूर्ण आर्थिक भागीदारी की ओर ले जा सकता था। 2019 में भारत तथा कनाडा का आपसी व्यापार 10 बिलियन डॉलर को पार कर गया था। 
इस दौरान चाहे कनाडा ने भारत की सिख्स फार जस्टिस को आतंकवादी संगठन करार देने की अपील स्वीकार नहीं की, परन्तु रायल माऊंटेड पुलिस ने भारत के साथ कार्रवाई योग्य जानकारी साझा करने की सहमति अवश्य दे दी थी। इस बीच भारतीय खुफिया एजेंसी एन.आई.ए. की तीन सदस्यीय टीम सिख्स फार जस्टिस तथा अन्य खालिस्तान समर्थक समूहों की फंडिंग की जांच करने के लिए कनाडा गई थी। 
पता चला है कि भारत विश्व की बदलती राजनीतिक एवं भूगौलिक परिस्थितियों के कारण आस्ट्रेलिया, अमरीका, कनाडा, न्यूज़ीलैंड तथा ब्रिटेन की खुफिया एजेंसियों की जानकारी साझा करने वाली संस्था एफ.आई. ओ.आर.सी. जिसे 5 आईज़ या 5 आंखों के नाम से भी जाना जाता है, से भी देश के हित में तालमेल करने की उम्मीद कर रहा है, जो कनाडा की मज़र्ी के बिना संभव नहीं। इस संदर्भ में भारत तथा कनाडा को अपने संबंधों में आ रहे तनाव को दूर करने के लिए नये सिरे से यत्न शुरू करने चाहिएं। यदि तनाव बढ़ता है तो दोनों देशों की सरकारों के साथ-साथ दोनों देशों के नागरिकों को भी बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। 
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