सिक्के वाला लड्डू

चीकू खरगोश स्कूल से छुट्टी होने के बाद सीधा अपने घर गया तो देखा कि दरवाजे पर ताला लगा है।
‘मां कहीं बंदरिया आंटी के घर तो नहीं चली गई’ उसने सोचा।
फिर उसने जेब से मोबाइल निकालकर बंदरिया आंटी के घर फोन करके पूछा, ‘आंटी, वहां मेरी मां है क्या?’
‘नहीं बेटा, तुम्हारी मां यहां नहीं है’, ‘बंदरिया आंटी उधर से बोली, ‘मुझे लगता है वह प्रसाद चढ़ाने मंदिर गई होगी। आज मंगलवार है न।’
तभी उसे याद आया कि उसकी मां हर मंगलवार को मंदिर में प्रसाद चढ़ाती है।
‘पता नहीं मंदिर में प्रसाद चढ़ाकर मां को क्या मिलता है’ चीकू का मूड खराब हो गया।
तभी उसकी मां हाथ में प्रसाद लिए आ गई ‘अरे बेटा, तू कब आया?’ उसकी मां ने पूछा।
मां की इस बात का जवाब देने की बजाए वह नाराज़गी दिखाता हुआ बोला, ‘मां, मंदिर में प्रसाद चढ़ाने से तुम्हें क्या मिलता है?’
‘अरे बेटा, मंदिर में प्रसाद चढ़ाने से भगवान खुश होता है और मन की मुराद पूरी होती है’, उसकी मां ने कहा और उसे एक लड्डू खाने के लिए दिया।
चीकू को लड्डू बहुत पसंद था, वह लड्डू खाता हुआ बोला, ‘अगले सप्ताह मेरी वार्षिक परीक्षा होने वाली है इस बार मैं खूब मेहनत से पढ़ाई करूंगा। और क्लास में टॉप करूंगा।’
चीकू खूब मेहनत से पढ़ाई में जुट गया। उधर चीकू की मां ने सोचा कि एक मां होने के नाते मेरा भी फर्ज है कि मैं अपने बेटे के लिए भगवान से प्रार्थना करूं और प्रसाद चढ़ाऊं।
चीकू की मां बहुत अंधविश्वासी थी। उसने अगले ही दिन मंदिर में भगवान को सिक्के वाला लड्डू चढ़ाने का विचार किया।
उसका मानना था कि सिक्के वाला लड्डू चढ़ाने से भगवान जल्दी खुश होते हैं।
उसने बेसन के कुछ लड्डू बनाए और एक लड्डू में तांबे का एक सिक्का डाल दिया। फिर उन लड्डूओं को एक थाली में रखकर मंदिर में प्रसाद चढ़ाने गई।
‘हे भगवान, मेरा बेटा अपने क्लास में टाप करे’ उसने प्रार्थना की और मंदिर में एक लड्डू चढ़ाकर बाकी लड्डू घर ले आई।
‘बेटा, लो, भगवान का प्रसाद खा लो। उसने एक लड्डू  चीकू को देकर कहा, ‘देखना, तुम अपने क्लास में जरूर टाप करोगे। मैंने भगवान को लड्डू चढ़ाया है।’
‘ओह मां, तुम्हारे लड्डू चढ़ाने से मैं टाप नहीं करूंगा’ चीकू मुस्कुराता हुआ बोला, ‘टाप तो मैं पढ़ाई और अपनी मेहनत के बल पर करूंगा।’
‘कैसी बात करता है तू’ मां ने उसे झिड़का, ‘चुपचाप प्रसाद खा’।
‘लड्डू तो मुझे बहुत पसंद है। लड्डू मैं जरूर खाऊंगा।’ यह कहकर चीकू लड्डू खाने लगा।
तभी उसके गले में कुछ अटक गया। वह छटपटाने लगा।
‘अरे, क्या हुआ बेटा तुम्हें’ उसकी मां घबरा कर बोली।
पर उससे बोला नहीं जा रहा था। वह अपने गले की तरफ इशारा करके रोने लगा।
‘क्या तुम्हारे गले में कुछ अटक गया है?’ मां ने पूछा तो चीकू ने हां में सिर हिलाया।
अचानक उसे सिक्के का ख्याल आया जो उसने लड्डू में डाला था।
वह चीकू को तुरंत एक डॉक्टर के पास ले गई और बोली, ‘डॉक्टर साहब, इसके गले में एक सिक्का अटक गया है।’
डॉक्टर ने चीकू को एक कुर्सी पर बैठाया और मुंह खोलने के लिए कहा। फिर उसने चीकू के मुंह में एक लंबा सा औजार डालकर सिक्का बाहर निकाल दिया।
तब चीकू की जान में जान आई
‘तुमने सिक्का कैसे खा लिया? डॉक्टर ने चीकू से मजाक करते हुए पूछा’, ‘क्या तुम्हारी मां तुम्हें खाना नहीं देती है?’
इस पर चीकू ने कहा, ‘मैं तो लड्डू खा रहा था। पता नहीं लड्डू में सिक्का कहां से आ गया।’
तभी एकाएक उसे कुछ याद आया तो उसने हंसकर कहा, ‘मुझे लगता है भगवान ने लड्डू में सिक्का डाल दिया होगा।’
‘नहीं बेटा, भगवान ने नहीं’, चीकू की मां शर्मिंदा होकर बोली’, ‘लड्डू में सिक्का मैंने डाला था। मैंने सोचा था कि सिक्के वाला लड्डू चढ़ाने से भगवान खुश होंगे।’
‘अपने भगवान को खुश करने के चक्कर में आज तुम अपने बेटे को मुसीबत में डाल चुकी थीं।’ डॉक्टर ने कहा।
इस पर चीकू की मां बोली, अब मैं कभी अंधविश्वास के चक्कर में नहीं पड़ूंगी। (उर्वशी)