बेमिसाल निर्देशक थे गुरुदत्त 10अक्तूबर को पुण्यतिथि पर विशेष

भारतीय सिनेमा में अपने समय से बहुत आगे के कलात्मक निर्देशकों के रूप में गुरूदत्त का नाम सबसे ऊपर आता है जिन्होंने बॉलीवुड को वहीदा रहमान जैसी अभिनेत्री, राज खोसला जैसा निर्देशक व ओ.पी. नैय्यर जैसा संगीतकार दिया। बतौर कोरियोग्राफर प्रभात स्टूडियो की 1945 की फिल्म ‘लखरानी’ से कैरियर शुरू करने वाले गुरूदत्त की ‘हम एक हैं’ के असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में देव आनंद से दोस्ती हो गई और दोनों ने एक दूसरे से वादा किया कि जो कोई भी पहले स्टार बनेगा, वो दूसरे को ब्रेक देगा। 
‘जिद्दी’ से देव आनंद ने बिग स्टार बनते ही पहली फिल्म में अपने भाई चेतन आनंद को निर्देशक बनाने के बाद दूसरी फिल्म ‘बाजी’ का निर्देशन गुरूदत्त को सौंप दिया और बदले में गुरूदत्त ने देव आनंद को एक सुपरहिट फिल्म दी। गुरूदत्त की 1953 में बतौर एक्टर पहली फिल्म ‘बाजी’ बुरी तरह फ्लॉप रही लेकिन फिर अपने गुरूदत्त प्रोडक्शन की पहली फिल्म ‘आर पार’ से वे सुपरहिट एक्टर डायरेक्टर बन गये व ‘मि. एंड मिसेज’ से ‘प्यासा’, ‘कागज के फूल’ ‘चौदहवीं का चांद’ और ‘साहिब बीबी और गुलाम’ तक अपनी ही फिल्मों में काम करते रहे।
बगैर किसी डायलाग के केवल दृश्यों के सहारे ही कहानी को आगे बढ़ाने की तकनीक के मामले में गुरूदत्त लाजवाब थे और मनोज कुमार उन्हें आज भी अपने प्रेरणा स्रोत के रूप में याद करते हैं। अपने असिस्टेंट राज खोसला को बतौर डायरेक्टर लांच करते हुए उन्होंने सी.आई.डी. बनाई जो सबसे तेज़ रफ्तार से एक लाख रूपये का ओपनिंग कलेक्शन करने वाली पहली फिल्म बनी।
‘प्यासा’ से अपनी कामयाबी के शिखर पर पहुंचे गुरूदत्त का पतन ‘अपनी ही बायोग्राफिकल फिल्म ‘कागज के फूल’ से शुरू हुआ जो भयंकर नाकामयाब रही लेकिन इसके बाद निर्देशक एम. सादिक से सुपरहिट ‘चौदहवीं का चांद’ बनाकर गुरूदत्त फिर संभल गए लेकिन इसी बीच अपनी ही खोज वहीदा रहमान के प्यार में पड़कर गुरूदत्त ने गायिका गीता दत्त के साथ अपनी शादी बर्बाद कर ली और वहीदा को छोड़कर वापस बीवी के पास लौटे गुरूदत को गीता ने ठुकरा दिया।  इसके बाद गुरूदत्त कभी संभल नहीं सके और अपनी ही फिल्म ‘कागज के फूल’ के क्लाइमेक्स की तरह दुखद आत्महत्या के शिकार बने।  (अदिति)