खत सज्जनां दा आया अज्ज बड़े दिनां पिच्छों आज ‘विश्व डाक दिवस’ पर विशेष

‘खत सज्जनां दा आया अज्ज बड़े दिनां पिच्छों
लग्गे चन्न चढ़ आया अज्ज बड़े दिनां पिच्छों।’

सचमुच ही एक समय ऐसा भी था जब पत्रों का इंतज़ार बड़ी बेसब्री से किया जाता था तथा पत्रों द्वारा जज़्बातों को लफ्ज़ों की इबारत में मिला कर इतने प्यार से परोसा जाता था कि पढ़ने वाले की पूरी तलब खत्म हो जाती थी तथा वह आनंद के अहसास के साथ भर जाता था। यह पत्र किसी प्रेमी, किसी मां, किसी पत्नी, किसी बहन तथा किसी दोस्त के सुख-सन्देश लाते थे तथा ससुराल में बैठी बेटी पत्र द्वारा अपने माता-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों का कुशलक्षेम जान कर   सुखद महसूस करती थी। आज इंटरनेट के युग ने पत्रों को बेशक खत्म तो नहीं किया है, परन्तु इनमें प्रेम तथा खुशबू अब सोशल मीडिया प्लेटफार्मों द्वारा भेजे जाने वाली इलैक्ट्रानिक सन्देशों में ज़रा-सा भी महसूस नहीं होती। आज भी जब अलमारियों में या किताबों के पृष्ठों में रखे वर्षों पुराने पत्रों में से कोई पत्र हमारे सामने आ जाता है तो ऐसा महसूस होता है :-
‘खुशबू जैसे लोग मिले अ़फसाने में
इक पुराना खत खोला अनजाने में।’
आज ‘विश्व डाक दिवस’ है और यह दिवस कागज़ों पर लिखे सन्देशों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने वाले डाक विभाग तथा इसके कर्मचारियों की प्रशंसा करने तथा इनके हमारे जीवन में महत्त्व को जानने का दिन है। वर्ष 1874 में स्विट्ज़रलैंड की राजधानी ‘बर्न’ में ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ का गठन हुआ था तथा इस दिन को ऐतिहासिक एवं यादगारी दिन के रूप में हमेशा के लिए याद रखने हेतु वर्ष 1969 में टोक्यो, जापान में यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन का एक विशेष समारोह हुआ था तथा उस समारोह में शामिल भारतीय प्रतिनिधि मंडल के सदस्य श्री आनंद मोहन नरूला ने ‘विश्व डाक दिवस’ मनाने का सुझाव दिया था जोकि पूर्ण सहमति से स्वीकार कर लिया गया तथा उसके बाद यह हर वर्ष पूरे विश्व में 9 अक्तूबर को पूरे जोश के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2022 के लिए इस दिवस का थीम है- ‘पूरे ग्रह के लिए चिट्ठियां डालें।
बड़ा रोचक तथ्य है कि आधुनिक युग में डाक सेवा में चिट्ठी-पत्र के अलावा पार्सल, वित्तीय सेवाएं तथा बीमा सेवाएं भी शामिल कर ली गईं हैं। पूरे विश्व में पैसे का लेन-देन तथा बचत आदि 1.5 बिलियन अर्थात् 150 करोड़ लोग डाक विभाग द्वारा करते हैं तथा इस विभाग द्वारा पार्सलों का आदान-प्रदान वर्ष 2018 में 450 बिलियन डॉलर का था, जोकि वर्ष 2020 में बढ़ कर 500 बिलियन डॉलर तक जा पहुंचा था। डाक सेवा, आज भी एक सस्ता तथा विशाल नैटवर्क वाला माध्यम है तथा लोग इस पर पूर्ण विश्वास करते हैं। विश्व भर में डाक सेवा के 6,50,000 बड़े कार्यालय हैं तथा 5.3 मिलियन अर्थात् 53 लाख डाक कर्मचारी इस सेवा में दिन-रात लगे रहते हैं। वर्ष 2021 में विश्व के 168 देशों में पार्सलों का आदान-प्रदान हो रहा था। डाक की सबसे अच्छी सेवाएं देने में स्विट्ज़रलैंड, जर्मनी तथा आस्ट्रिया पहले स्थानों पर हैं तथा इनके बाद दूसरा स्थान जापान, फ्रांस, ब्राज़ील, घाना तथा ट्यूनीशिया जैसे देशों का आता है। 
पत्रों या चिट्ठियों द्वारा लिखित सन्देश भेजने संबंधी यदि इतिहास के पृष्ठ पलटें तो कई रोचक तथ्य सामने आते हैं। दस्तावेज़ी प्रमाणों की उपस्थिति बताती है कि 2400 ईसा पूर्व में मिस्र में बहुत ही अच्छे ढंग के साथ बनाई गई डाक सेवा व्यवस्था मौजूद थी। सबसे प्राचीन पत्र भी मिस्र से मिला है जो कि 255 ईसा पूर्व में लिखा गया था। वैसे तो यह भी दावा किया जाता है कि प्राचीन परशिया अर्थात फारसी में भी 550 ईसा पूर्व में पत्राचार प्रणाली का अस्तित्व था। परशिया के राजा साइरस ने अपने अधीन इलाके की हर रियासत को यह ज़रूरी किया हुया था कि प्रत्येक नागरिक तक पत्र पहुंचने की व्यवस्था की जाये तथा उसने ऐसा ही करने का सुझाव अपने पड़ोसी देशों के राजाओं को भी दिया था। भारत में 322-185 ईसा पूर्व में मौर्या साम्राज्य के दौरान अच्छी डाक सेवा होने के प्रमाण मिलते हैं। दक्षिण भारत में वर्ष 1399 से शुरू हुए ‘वुडियार वंश’ द्वारा तो जासूसी के कार्यों हेतु डाक सेवा का भरपूर उपयोग किया जाता रहा था। रोम में राजा अगस्तस का कार्यकाल जोकि 62-14 ईसा पूर्व में बनता है, के दौरान तेज़ रफ्तार घोड़े तथा लैंपयुक्त गड्डे डाक सेवा के लिए उपयोग किये जाते थे। 
वैसे मज़ेदार बात यह है कि चीन भी यह दावा करता है कि उसकी डाक प्रणाली सबसे प्राचीन है। चीनी इतिहासकारों के दावों के अनुसार 206-202 ईसा पूर्व के दौरान मौजूद ‘हेन वंश ’ के शासनकाल में प्रत्येक 15 किलोमीटर की दूरी पर डाक प्राप्त करके आगे भेजने वाले ‘रिले केन्द्र’ मौजूद थे। भारतीय इतिहास पर यदि दृष्टिपात करें तो जानकारी मिलती है कि वर्ष 1296 में अलाउद्दीन खिलजी के कार्यकाल के दौरान घोड़ों पर तथा पैदल चल कर पत्रों को पहुंचाने का सिलसिला चलता था। विदेशी यात्री इबन बतूता ने भी वर्ष 1341 में लिखी अपनी पंक्तियों में भारत के भीतर अच्छी डाक सेवा होने का ज़िक्र किया है। सबसे लम्बी दूरी तक पत्रों को पहुंचाने का कार्य भारत में वर्ष 1541 में शेरशाह ने घुड़सवारों द्वारा बंगाल तथा सिंध के मध्य दो हज़ार किलोमीटर की दूरी तक सन्देश पहुंचाने से किया था। वर्ष 1766 से 1773 तक राबर्ट क्लाइव ने भारत में एक रैगूलर डाक सेवा स्थापित करने के विशेष यत्न किये थे जबकि वर्ष 1774 में वार्न हेसटिंग्ज़ ने बाकायदा डाक घरों की स्थापना शुरू करके 31 मार्च, 1774 को कोलकाता, 1 जून, 1786 को मद्रास तथा वर्ष 1794 में बम्बई में ‘जनरल पोस्ट आफिस’ स्थापित कर दिये थे। भारत में सबसे पहला डाकघर आयोग वर्ष 1850 में नियुक्त किया गया था तथा वर्ष 1854 में ‘डाकघर एक्ट-17’ भी पेश कर दिया गया था। वर्ष 1876 में भारत ‘यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन’ के सदस्य बन गया था तथा वर्ष 1879-80 में यहां मनीऑर्डर तथा रेल द्वारा डाक भेजने का कार्य शुरू हो गया था। भारत में डाकघर में बचत खाता, जीवन बीमा तथा डाक टिकटों के बेचे जाने के कार्य क्रमवार वर्ष 1882, 1884 तथा 1886 में शुरू किये गये थे। भारत में डाकघरों द्वारा ‘पोस्टल आर्डर’, ‘स्पीड पोस्ट’ तथा ‘एक्सप्रैस पार्सल’ आदि सेवाएं क्रमवार वर्ष 1935, 1956 तथा 1994 में शुरू करके उपभोक्ताओं को लाभ पहुंचाया गया था। खुशी की बात है कि आजकल ‘आधार कार्ड अपडेट’ करने तथा ‘डाक विभाग के एटीएम’ द्वारा नकदी निकलवाने की सुविधा भी जन-साधारण को मिल चुकी है। 
आज डाक विभाग ने बैंकिंग तथा अन्य सेवाओं की सुविधा प्रदान करके ग्रामीण इलाकों में रहते लोगों को काफी राहत दी है। मोबाइल फोन जब नहीं होते थे तो पत्र ही सन्देश पहुंचाने का सस्ता तथा अच्छा विकल्प होता था। 50 वर्ष पूर्व देश में ग्रामीण इलाकों में अनपढ़ता अधिक होने के कारण डाकिये की भूमिका बड़ी  महत्त्वपूर्ण होती थी। वह न केवल लोगों को उनके पत्र पढ़ कर सुनाया करते थे, अपितु कभी-कभी जवाबी पत्र भी लिख दिया करते थे। वैसे तो वह गांव के हर व्यक्ति का दु:ख-सुख जानता था। भारतीय सेना में ड्यूटी करते सैनिक वीरों को अपने घरों से आने वाले पत्रों का इंतजार रहता था और उनके पारिवारिक सदस्यों को वापिसी पत्रों की बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा रहती थी। पत्र हासिल करके जो खुशी एवं सुकून दोनों पक्षों को हासिल होता था, वह शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। शायद इसी कारण किसी शायर ने कहा था :
‘तेरा खत आने से दिल को मेरे आराम हो गया
खुदा जाने कि इस आगाज़ का अंजाम क्या होगा।’
410, चंदन नगर, बटाला।
मो. 97816-46008