ज्ञान को ही सफलता का प्रवेश द्वार मानते थे डा. कलाम

देश के प्रख्यात वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति रहे मिसाइलमैन डा. एपीजे अब्दुल कलाम (अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम) के जन्म दिन को प्रतिवर्ष ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। डा. कलाम के विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के अलावा दुनियाभर के छात्रों की तरक्की के लिए किए गए उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र द्वारा वर्ष 2010 में उनका 79वां जन्म दिवस पहली बार विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया गया था और उनके जन्मदिन 15 अक्तूबर को ही प्रत्येक वर्ष यह दिवस मनाए जाने का निर्णय लिया गया। तभी से डा. कलाम का जन्मदिन विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। दरअसल डा.कलाम हमेशा अपने ज्ञान और शिक्षा के माध्यम से छात्रों से जुड़े रहे और छात्रों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बने रहे। उन्होंने छात्रों की वैज्ञानिक, अकादमिक और आध्यात्मिक तरक्की पर विशेष ध्यान दिया। शिक्षण कार्य के साथ-साथ छात्रों के प्रति उनके अगाध प्रेम के कारण ही छात्र भी उनसे उतना भी प्यार करते थे और यही कारण रहा कि उनके जन्मदिन को विश्व विद्यार्थी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। डा. कलाम का सम्पूर्ण जीवन यह सीख देता है कि हमारे जीवन में चाहे कितनी भी बड़ी चुनौतियां मुंह बाये क्यों न खड़ी हों, शिक्षा के द्वारा हम हर प्रकार की बाधाओं को पार करते हुए बड़े से बड़े लक्ष्यों को भी प्राप्त कर सकते हैं। छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए डा. कलाम कहा करते थे कि अलग ढंग से सोचने का साहस करो, अज्ञात पथ पर चलने का साहस करो, आविष्कार का साहस करो। वह कहते थे कि समस्याओं को जीतो और सफल बनो, यही वे महान् गुण हैं, जिनकी दिशा में तुम अवश्य कार्य करो।
15 अक्तूबर, 1931 को तमिलनाडु में रामेश्वरम के एक छोटे से गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे डा. कलाम ने अपने जीवन में अनेक प्रकार की चुनौतियों और कठिनाइयों का सामना किया। इच्छाशक्ति से वह अपने जीवन में हर प्रकार की बाधाओं को पार करने में सफल रहे। जीवन की हर बाधा और चुनौतियों को पार करते हुए राष्ट्रपति जैसे भारत के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर पहुंचे।  अनेक अभावों के बावजूद उन्होंने मद्रास इंस्टीच्यूट ऑफ टैक्नोलॉजी से वर्ष 1960 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और बेंगलुरू में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड में बतौर प्रशिक्षु चले गए। उसके कुछ ही दिनों बाद उन्हें इंडियन कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च की ओर से इंटरव्यू के लिए बुलाया गया और उनका इंटरव्यू स्वयं डा. विक्रम साराभाई ने लिया। इंटरव्यू के बाद डा. कलाम को इसरो में रॉकेट इंजीनियर के पद पर चयनित कर लिया गया। कुछ ही समय बाद वह भारत के प्रथम सैटेलाइट लांच ‘एसएलवी-2’ के प्रोजैक्ट डायरेक्टर बने। 1990 के दशक में भारत के पहले परमाणु परीक्षण ‘ऑपरेशन स्माइलिंग बुद्धा’ का भी वह मुख्य हिस्सा रहे। भारत को मिसाइल क्षमता प्रदान करने के कारण ही उन्हें ‘मिसाइलमैन’ के नाम जाना जाने लगा। उन्हीं के द्वारा विकसित अग्नि तथा  पृथ्वी  जैसी बैलिस्टिक मिसाइलों ने देश की सुरक्षा को बेमिसाल मज़बूती प्रदान की है। 
उनके जीवनकाल में उन्हें कुल 22 पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़ा गया। उन्हें 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण तथा 1997 में देश के सर्वोच्च भारत रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया।
वरिष्ठ वैज्ञानिक और राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ डा. कलाम एक शिक्षक भी थे, जिन्होंने अपने प्रेरणादायी और ओजस्वी भाषणों तथा व्याख्यानों के जरिये लाखों छात्रों को प्रभावित किया। शिक्षण के प्रति उनका लगाव इस कदर था कि वैज्ञानिक और राजनीतिक जीवन जीते हुए भी वह एक उम्दा शिक्षक की भूमिका निभाते रहे। अपने इसी लगाव के चलते उन्होंने अपने जीवनकाल में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार जैसा कैबिनेट श्रेणी का अति महत्वपूर्ण पद छोड़कर एक शिक्षक की भूमिका का चयन किया था। 
युवाओं, छात्रों, प्रेरणा, विज्ञान तथा टैक्नोलॉजी पर आधारित उन्होंने कुल 18 पुस्तकें लिखीं, जिन्होंने युवाओं को प्रेरित करने के साथ-साथ उनका भरपूर मार्गदर्शन भी किया। शिक्षण के प्रति अटूट लगाव और छात्रों के प्रति प्रेम के चलते ही डा. कलाम राष्ट्रपति पद का कार्यकाल खत्म होने के बाद देशभर के अनेक कॉलेजों और अकादमिक संस्थानों में अपने भाषणों के जरिये छात्रों का मार्गदर्शन करने और उन्हें प्रेरित करने के कार्य में जुट गए थे। उन्होंने अंतिम सांस भी छात्रों को सम्बोधित करते हुए ली थी। 27 जुलाई, 2015 को भारतीय प्रबंधन संस्थान शिलांग में एक कार्यक्रम के दौरान छात्रों को सम्बोधित करते हुए डा. कलाम को अचानक दिल का दौरा पड़ा और यह महान् विभूति दुनिया से सदा के लिए विदा हो गई। 
-मो. 94167-40584