नहीं रहा दुनिया का इकलौता  शाकाहारी मगरमच्छ

उत्तरी केरल के कासरगोड ज़िले में स्थित अनंतपुरा विष्णु मंदिर की झील में रहकर मंदिर की रखवाली करने वाला 75 वर्षीय शाकाहारी मगरमच्छ बबिया नहीं रहा। जी हां, शाकाहारी। बबिया मांस नहीं खाता था, वह पूर्णत: शाकाहारी था। मंदिर के पुजारी दिन में दो बार उसे जो मंदिर का प्रसाद खिलाते थे, वह वही खाकर अपना गुजारा करता था। यही नहीं मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भी उसे चावल और गुड़ खिलाते थे, जिसे वह बड़े प्यार से खाता था। इतने सालों में उसने किसी भी भक्त पर कभी भी हमला नहीं किया था। भूख लगने पर बबिया झील से बाहर आ जाता था। वह मंदिर में पालतू की तरह घूमता रहता था। उससे कोई डरता नहीं था, न ही वह किसी से डरता था। मंदिर के कर्मचारियों का दावा है कि मंदिर की झील में काफी मछलियां हैं, लेकिन बबिया ने कभी किसी मछली को दांत तक नहीं लगाया था। गुजरे 9 अक्तूबर 2022 को वही बबिया झील में मृत पाया गया। मंदिर की झील में वह करीब 75 साल तक रहा। मंदिर से बबिया इस कदर जुड़ गया था कि यदि किसी भक्त को बबिया दिखता था, तो वह उसे अपना सौभाग्य मानता था। पुजारियों के अनुसार मंदिर की झील में पता नहीं कहां से मगरमच्छ आते हैं, लेकिन झील में एक समय में एक ही मगरमच्छ रहता है। जब एक मर जाता है, तो दूसरा यहां रहने आ जाता है। लेकिन यह कहां से आता है, इसका आज तक पता नहीं चला है। माना जाता है कि अनंतपुरा झील मंदिर में अनंतपद्मनाभ स्वामी की प्रामाणिक पीठ है। यह मंदिर एक छोटे से गांव में एक झील के बीचोंबीच बना हुआ है। मंदिर के कर्मचारियों के मुताबिक 9 अक्तूबर को रात करीब साढ़े ग्यारह बजे बबिया के शव को झील में तैरते देखा गया।
दरअसल कई घंटों से बबिया कहीं दिखा नहीं था तो मंदिर के पुजारी और बाकी कर्मचारी इस बात से परेशान थे कि आज बबिया कहां चला गया, जो दिखा नहीं और मंदिर के कर्मचारी उसे मंदिर के चारों तरफ  ढूंढ़ने लगे, लेकिन बबिया कहीं नहीं मिला। लेकिन ढूंढ़ते-ढूढ़ते करीब आधी रात को बबिया का शव झील में तैरते दिखा। मंदिर के कर्मचारी ने इसकी सूचना पुलिस और पशु पालन विभाग को दी और मृत बबिया को झील से बाहर निकाला गया। बबिया के मरने की खबर रातोंरात ही पूरे इलाके ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने और मंदिर से संबंधित विदेश में रहे लोगों तक पहुंच गई, जिस कारण आधी रात में ही सैकड़ों लोग मंदिर परिसर में आ गये बबिया के इस तरह अचानक मर जाने से वे सब लोग बहुत दुखी थे। मंदिर के कई कर्मचारी तो बकायदा रो रहे थे और कईयों की आंखें डबडबायी हुई थीं। सिर्फ  आम लोग ही नहीं बल्कि तमाम राजनेताओं ने भी बबिया को लेकर ट्विट किये और उसके अंतिम दर्शन के लिए सुबह से ही मंदिर पहुंचने लगे।
केरल के केन्द्रीय कृषि और कल्याण राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे ने ट्विटर पर बबिया को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, ‘भगवान के इस खास मगरमच्छ को सद्गति प्राप्त हो।’ केरल बीजेपी के अध्यक्ष के. सुरेंद्रन ने भी फेसबुक में बबिया को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा, ‘बबिया चला गया। दशकों तक वह कुंबला अनंतपुरम महाविष्णु मंदिर में लगातार मौजूद रहा। लाखों श्रद्धालुओं ने बबिया में भगवान की छवि देखी और उसे प्रणाम किया।’ दरअसल कासरगोड़ ज़िले में स्थित यह श्री अनंतपद्मनाभ मंदिर तिरुनंतपुरम का मूल स्रोत या मूल स्थान है। इसलिए इस मंदिर के प्रति लोगों में बहुत आस्था है। मंदिर की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक हर दिन सैकड़ों लोग मंदिर सिर्फ  बबिया को देखने ही आते थे। सिर्फ आसपास के या केरल के ही नहीं बल्कि देश के कोने-कोने और विदेशों से भी बड़ी तादाद में लोग इस शाकाहारी मगरमच्छ को देखने और उसके बारे में जो कुछ पढ़ा होता था, उसे जांचने के लिए आते थे।
बबिया की इस कहानी के साथ ही इस मंदिर झील से जुड़ी एक और रहस्यमयी कहानी है। दरअसल पद्मानभ मंदिर के तीन तरफ  फैली इस झील में हमेशा एक मगरमच्छ ही रहता है, जब उसकी मौत हो जाती है, तो पता नहीं कहां से कुछ दिनों में ही फिर से एक नया मगरमच्छ आ जाता है और जब तक वह जिंदा रहता है, झील में कोई दूसरा मगरमच्छ नहीं होता। लेकिन उसके मरने के बाद फिर एक मगरमच्छ आ जाता है। जबकि यह झील चारों तरफ  से स्थल यानी जमीन से घिरी हुई है और कोई आसपास नदी या झील नहीं है, जहां मगरमच्छ रहते हों, तो इस झील में मगरमच्छ का होना और अचानक एक समय में एक ही मगरमच्छ का प्रकट होना अपने आपमें रहस्यमयी कथा है। हालांकि अब के पहले के मगरमच्छों के खानपान के बारे में तो वेबसाइट में कुछ भी नहीं बताया गया, लेकिन बबिया तो मशहूर ही अपने शाकाहारी होने के कारण था।
जिस तरह से यह मगरमच्छ मंदिर की झील में रहता था और जिस तरह से भक्तों के प्रति उसके अंदर प्रेम और भक्तों की उस पर श्रद्धा थी, उस सबको देखें तो यह सब भागवत पुराण की प्रसिद्ध गजेंद्र मोक्ष कहानी के जैसा है। बहरहाल बबिया अब इस दुनिया में नहीं है। उसका अंतिम संस्कार किसी संत महात्मा की तरह किया गया है। पहले उसके शव को कई घंटों तक मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, इसके बाद बकायदा पास ही शवशैय्या बनायी गई और मंदिर के पुजारियों ने उसे कंधा देकर मंदिर में ही दफन किया। जिस समय बबिया का अंतिम संस्कार हुआ, वहां हज़ारों की तादाद में लोग मौजूद थे और सब बबिया को कोई दिव्य आत्मा मान रहे थे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर