बुरी संगत का परिणाम


किसी जंगल में एक वृक्ष पर एक कौआ रहता था। संयोग से एक हंस भी वहां आकर रहने लगा और कौवे से उसकी मित्रता हो गई। हंस को अपने मित्र कौवे पर बड़ा विश्वास हो गया कि वह उसे कभी धोखा नहीं देगा। एक दिन शिकार खेलते हुए एक शिकारी उस जंगल में आया और दोपहर को उसी पेड़ के नीचे विश्राम करने लगा जिस पर हंस और कौआ रहते थे। थकान के कारण शिकारी को गहरी नींद आ गई। थोड़ी देर बाद कौवे ने बीठ कर दी जो शिकारी पर जा गिरी और उसके कपड़े खराब हो गए। कौआ बहुत धूर्त्त और चालाक था। उसे पता था कि जब शिकारी उठेगा और बीठ देखेगा तो गुस्से में मुझे मार डालेगा। उसने यह बात हंस को नहीं बताई तथा उड़कर चुपचाप दूसरे पेड़ पर जा बैठा।
जब शिकारी की नींद खुली तो उसने देखा कि किसी पक्षी ने उस पर बीठ कर दी है। उसे बड़ा गुस्सा आया। उसने ऊपर की ओर देखा तो वहां पर एक हंस बैठा था। शिकारी ने अनुमान लगाया कि इसी दुष्ट हंस ने उस पर बीठ की होगी। उसने अपने मन में कहा कि इसे अभी मज़ा चखाता हूं और अपना धनुष-बाण उठाकर हंस पर तीर चला दिया। तीर लगते ही हंस बेचारा ज़मीन पर आ गिरा और तड़प-तड़प कर अपने प्राण दे दिये। हंस ने कोई अपराध नहीं किया था, फिर भी उसकी जान चली गई। वास्तव में यह हुआ उसकी बुरी संगति के कारण। उसने कौवे जैसे धूर्त प्राणी से मित्रता की और उस पर विश्वास किया। बुरे मित्रों की धूर्तता का दुष्परिणाम अच्छे मित्रों को भुगतना पड़ता है अत: मित्रों का चुनाव बड़ी सावधानी से करना चाहिए।
-मुकेश शर्मा