ब्रिटेन की उथल-पुथल में हुई एक भोर

ब्रिटेन में ऋषि सुनक की जीत भारत, पाकिस्तान तथा अन्य संबंधित देशों के लिए एक नया संदेश लेकर आई है। वह ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बन गए हैं।
यह ब्रिटेन की ही नहीं, अपितु विश्व की अद्वितीय घटना है। अद्वितीय इसलिए कि भारत, जिस ब्रिटेन का लगभग दो सदियों तक गुलाम रहा है, उसका प्रधानमंत्री एक ऐसा व्यक्ति बन गया है जो भारतीय मूल का है। ब्रिटेन पर अब कोई भारतीय शासन करेगा, आज़ादी के 75वें वर्ष में भारत को इससे बढ़िया तोहफा क्या मिल सकता है? पाकिस्तानी भी खुश हैं क्योंकि सुनक के पूर्वज गुजरांवाला के थे, पंजाबी कवि अमृता प्रीतम की भांति।
सुनक की तुलना हम बराक ओबामा से कर सकते हैं जो अमरीका जैसे सबसे बड़े अंग्रेज़ों के देश के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने। कोई आश्चर्य नहीं होगा कि अमरीका का भी अगला राष्ट्रपति कोई भारतीय मूल का व्यक्ति ही बन जाये। उप-राष्ट्रपति पद पर तो कमला हैरिस पहुंच चुकी हैं।
कुछ सप्ताह पहले लिज़ ट्रस के मुकाबले जब सुनक प्रधानमंत्री पद का चुनाव हार गये थे, तब ऐसा लग रहा था कि सत्तारूढ़ कंज़र्वेटिव पार्टी के अधिकतर श्वेत सदस्यों पर नस्लीय भेदभाव का भूत सवार है। उन्हें लिज़ ट्रस के मुकाबले सिर्फ इस लिए हारना पड़ा क्योंकि वह अंग्रेज़ नहीं हैं, मूल रूप में भारतीय हैं और ईसाई नहीं, हिन्दू हैं। 
बोरिस जॉनसन की सरकार भी उनके त्याग-पत्र के बाद ही गिरने लगी थी, फिर भी वह प्रधानमंत्री नहीं बन सके। अब कंज़र्वेटिव पार्टी के बहुसंख्यक श्वेत सदस्यों द्वारा सुनक को मिले समर्थन के कारण दोनों विरोधियों जिनमें पूर्व प्रधानमंत्री जॉनसन भी थे, ने चुनाव से पहले ही अपनी हार मान ली। सुनक बिना विरोध चुने गये  प्रधानमंत्री हैं।
उनका प्रधानमंत्री बनना विपक्षी लेबर पार्टी के लिए बड़ी चुनौती है क्योंकि जॉनसन तथा ट्रस का मुकाबला करना उनके लिए काफी आसान रहता, परन्तु सुनक को हराना आसान नहीं। आगामी चुनाव 2 वर्ष के भीतर ही होने वाले हैं। सुनक की पूरी कोशिश होगी कि जैसे वित्त मंत्री के रूप में उन्होंने कोरोना काल में प्रशंसनीय कार्य करके दिखाया, उसी तरह की कारगुज़ारी इस कम अवधि में करके दिखाएं। 
जॉनसन तथा ट्रस ने ब्रिटेन की अर्थ-व्यवस्था को अपाहिज कर छोड़ा है। उम्मीद है कि नई आर्थिक नीति ब्रिटेन को अंधी गुफा में दाखिल होने से रोकेगी और उनकी विदेश नीति देश को एक मर्यादा वाली महाशक्ति के रूप में प्रसिद्ध करेगी। भारत तथा ब्रिटेन के संबंधों में लामिसाल निकटता के दर्शन हो भी सकते हैं। 
ऋषि सुनक अपने परिवार के साथ मंदिर जाने वाले तथा अब तक अपने सभी संवैधानिक पदों पर चुने जाते समय गीता पर हाथ रख कर शपथ लेने वाले भारतीय मूल के शहरी हैं जो अब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि ऋषि के प्रधानमंत्री बनने से किसी भी ब्रिटिश मूल के प्रधानमंत्री के मुकाबले भारत के साथ ब्रिटेन के रिश्ते और भी सुखद बन जाएंगे। ब्रिटेन में भारतीय मूल के लोगों की प्रभावशाली स्थिति तथा विश्व में भारत की बढ़ती आर्थिक हैसियत ऋषि सुनक की ताजपोशी को और मज़बूती देगी। 
उधर ब्रिटेन में विपक्षी पार्टियां (लेबर, लिबरल डेमोक्रेट, ग्रीन, स्काटिश नैशनल पार्टी) आम चुनावों की मांग कर रही हैं ताकि मतदाता नई सरकार तथा नये प्रधानमंत्री की चुनाव प्रक्रिया में भाग ले सकें। यह मांग काफी तर्कसंगत एवं उचित है परन्तु इस समय आम चुनाव करवाने की स्थिति में पार्टी के हार जाने के डर से अधिकतर टोरी सांसदों ने चुनावों की बजाय नया प्रधानमंत्री चुनने को प्राथमिकता देते हुए ऋषि सुनक के पक्ष में डटने का फैसला किया है ताकि आगामी दो वर्षों में मतदाताओं में पार्टी का विश्वास बहाल कर सकें जो कि इस समय बुरी तरह टूट चुका है। आशा है कि नया तथा नौजवान प्रधानमंत्री इस पूरी उथल-पुथल से निपटने में सफल हो सकेगा।
मुझे मेरे ननिहाल क्षेत्र से बुलावा
मैं आयु के उस पड़ाव पर हूं जब कहीं भी दूर-निकट जाने को मन नहीं मानता। लगभग पंद्रह दिन पहले सीनियर सैकेंडरी स्कूल मानुपुर के पंजाबी विभाग के प्रमुख गुरप्रीत सिंह का टैलीफोन आया कि उसके विद्यार्थी मुझे देखना और मिलना चाहते हैं। मैंने उससे सोचने के लिए समय मांगा और फोन बंद कर दिया। फिर अचानक ही ख्याल आया कि मेरे लिए उस धरती पर जाना और एक तरह से अपनी जन्म भूमि की ज़ियारत करना है। फिर मैंने खुद फोन करके उनको 27 अक्तूबर का समय दे दिया। इसलिए भी कि मुझे शिक्षा के मार्ग पर चलाने वाली मेरी मासी का दामाद बलौर सिंह किसी समय उस स्कूल का प्रमुख रह चुका था। मेरे सामने सेवामुक्त पी.सी.एम. अधिकारी के चेहरा आ गया। वह पंजाब की पिछली सरकार में मंत्री मैडम रज़िया सुल्ताना का ओ.एस.डी. रह चुका है। उसका पैतृक गांव भी मेरे ननिहाल गांव कोलटा बडला का पड़ोसी गांव है। इन दोनों गांवों से मानुपुर केवल सात किलोमीटर की दूरी पर है। वह वहां जाने का समाचार सुनकर इतना खुश हुआ कि मुझे अपनी गाड़ी में बिठाकर खुद ही मुझे वहां लेकर गया।
मेरी हैरानी की कोई सीमा नहीं रही जब वहां के विद्यार्थियों ने मेरी कहानियों के बारे में कुछ ऐसे प्रश्न किये जिनका सही उत्तर देने में मुझे भी परेशानी आई। मैंने यह भी देखा कि उन सभी ने स्कूल की वर्दी पहनी हुई थी। मेरे बचपन में तो हम नंगे पांव गर्म रेत पर चलकर पढ़ने जाते थे। यह देख कर मेरी आत्मा प्रसन्न हो गई कि मेरे ननिहाल का क्षेत्र कितनी तरक्की कर चुका है। वह क्षेत्र जहां मैं जीवन के शुरुआती वर्षों में रहा हूं। बड़ी बात यह कि उनकी पाठ्य पुस्तकों में मेरी तीन कहानियां (1) घर जा आपने (2) सांझी मां तथा (3) लोक नायक पढ़ाई जाती हैं।
मैंने स्कूल के विद्यार्थियों को यह बात भी गर्व से बताई कि वह उस क्षेत्र के जन्मे हैं जहां प्रसिद्ध ऊर्दू कहानीकार सियादत हसन मंटो तथा पंजाबी कहानीकार संतोख सिंह धीर जन्मे थे। मेरे लिए और खुशी की बात यह है कि मेरी जान-पहचान करवाने वाले पंजाबी आर्ट्स काऊंसल के उपाध्यक्ष योगराज अंग्रिश को मेरे जीवन की उन बातों का पता था जो मुझे पूरी तरह भूल चुकी थीं। मैंने तो यह भी नहीं सोचता था कि वहां नामधारी सुखजीत सिंह और कहानीकार जतिन्द्र हांस भी उपस्थित होंगे। उसी क्षेत्र से शिरकत कर रहे बहुत-से लोग भड़ी गांव में जन्मे दलजीत सिंह को मुझ से भी ज्यादा जानते थे। आयु के इस पड़ाव पर मेरे लिए यह दौरा यादगारी रहा।
 अंतिका 
-राजबीर रंधावा की ‘बिरहा दी हूक’ में से-
दिल नूं रोकिया पैरां नूं बड़ा टोकिया,
पहली नज़रे पढ़ लिया पैगाम तेरी अक्ख ’चों।
अजीब है ओह शख्स जो आ के चला गिआ।
मिट्टी विच्च सानूं मिला के चला गिआ।