भूल का एहसास

मोहन और पंकज काफी गहरे मित्र थे। दोनों एक ही स्कूल में 10वीं कक्षा के छात्र थे। मोहन एक प्रतिभावान और योग्य छात्र था पर साथ ही शरारती भी था। बचपन से ही उसे लेखन में रूचि थी लेकिन वह परिश्रम करने से कतराता था। सारा समय शरारतों में गुजार देता था। यही वजह थी कि वह विद्यालय में होने वाली लेखन प्रतियोगिता में कोई पुरस्कार नहीं प्राप्त कर सका था हालांकि मोहन का एक ही सपना था कि वह विद्यालय की लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार प्राप्त करे। दूसरी ओर पंकज मोहन से बिल्कुल अलग शान्त, परिश्रमी और समय का सदुपयोग करने वाला छात्र था। अपने खाली समय में वह लेख, कविताएं व कहानियां इत्यादि लिखा करता था। पंकज ही वह छात्र था जो प्रत्येक वर्ष लेखन प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार पाता था।
दो दिनों के बाद ही विद्यालय में लेखन प्रतियोगिता आयोजित होने वाली थी। सभी छात्र एकाग्रचित होकर इसकी तैयारी में जुटे थे। पंकज हमेशा की तरह इस बार भी पहले से ही लेख तैयार कर चुका था। मोहन के दिमाग में केवल एक ही बात थी कि वह किसी भी प्रकार इस बार प्रथम पुरस्कार प्राप्त करे लेकिन वह मेहनत नहीं करना चाहता था अत: मोहन ने पंकज का लेख चुरा कर उसे अपने नाम से प्रतियोगिता में शामिल कर दिया और परिणाम के घोषित होने की प्रतीक्षा करने लगा। पुरस्कार वितरण के समय सभी छात्र और शिक्षकगण वहां उपस्थित थे। सभी चर्चा कर रहे थे कि इस बार भी पंकज को ही प्रथम पुरस्कार प्राप्त होगा, लेकिन जब प्रथम पुरस्कार विजेता का नाम मोहन घोषित किया गया तब सभी को बड़ा आश्चर्य हुआ। 
आज मोहन की वर्षों की इच्छा पूरी हो गयी थी लेकिन उसे खुशी की कोई अनुभूति नहीं हुई बल्कि उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। उसकी आंखों में आंसू थे। पल भर में उसने कुछ निश्चय किया और आत्म विश्वास के साथ मंच की ओर बढ़ गया। मोहन ने वहां उपस्थित लोगों से कहा -‘इस पुरस्कार पर मेरा कोई अधिकार नहीं है, इस पर मेरे प्रिय मित्र पंकज का अधिकार है।’ उसने सारी बातें वहां उपस्थित लोगों को बतायी और क्षमा मांगते हुए दोबारा ऐसी भूल न करने का प्रण किया। मोहन ने पंकज से माफी मांगी और उसे पुरस्कार लौटा दिया। वहां उपस्थित प्रधानाचार्य ने कहा-‘मोहन ने भूल की है लेकिन उसे अपनी भूल का एहसास हो चुका है, इसलिए हम सबको उसे माफ कर देना चाहिए क्योंकि भूल का एहसास होना ही सबसे बड़ा पश्चाताप है।’ (उर्वशी)