सब से ज्यादा व्यावसायिक उपयोगी मछली है मैकरल

मैकरल झुंड में रहने वाली, तेज़ गति से तैरने वाली, बड़ी टूना मछली की निकट संबंधी है। मैकरल व्यावसायिक उपयोग की मछली है। इसकी कई जातियां हैं और ये विश्व के अलग-अलग सागरों और महासागरों में पाई जाती है। सामान्य मैकरल अटलांटिक महासागर के पूर्वी भाग में नार्वे से लेकर कैनरीज तक एवं अटलांटिक महासागर के पश्चिम में चेसापीक की खाड़ी से लेकर मेन की खाड़ी तक बहुतायत से पाई जाती है। 
मैकरल की विभिन्न जातियों की शारीरिक संरचना और इनके रंगों आदि में पर्याप्त भिन्नता होती है। इसका वजन 2.7 किलोग्राम से अधिक नहीं होता। इसका शरीर लंबा होता है एवं पूंछ मजबूत होती है। मैकरल के जबड़े नुकीले होते हैं। इसके जबड़े कुछ नीचे की ओर होते हैं एवे नीचे का जबड़ा ऊपर के जबड़े से कुछ आगे निकला हुआ होता है। मैकरल के मीनपंख सागर की सामान्य मछलियों जैसे होते हैं। इसके शरीर पर पीठ के दो मीनपंख होते हैं। इनमें आगे वाला मीनपंख कांटेदार होता है। मैकरल के पट के मीनपख काफी आगे की ओर होते हैं। इसके पेट के मीनपंख छाती के ठीक पीछे नीचे की ओर होते हैं। मैकरल की पूंछ का मीनपंख काफी बड़ा होता है और दो भागों में विभक्त रहता है। मैकरल के शरीर पर पीठ के मीनपंख से लेकर पूंछ के मीनपंख तक फिनलेट्स की एक लंबी रेखा होती है। इसी प्रकार की फिनलेटस की एक लंबी रेखा इसके शरीर के नीचे की सतह पर भी होती है। मैकरल की शारीरिक संरचना तथा इसके मीन पंख इस प्रकार के होते हैं कि यह तेज़ी से तैर सकती है तथा लंबी दूरी तक तैर सकती है।
मैकरल एक पेटू मछली है और बहुत अधिक भोजन करती है। इसका प्रमुख भोजन छोटे-छोटे क्रस्टेशियन्स, झींगा-झींगी (शिम्प), मछलियों के लाखे तथा छोटी मछलियां हैं। यह शिकार करने के लिए अपनी दृष्टि और प्राण शक्ति का उपयोग करती है। यह मुख्य रूप से शिकार की गंध से शिकार का पता लगाती है, किंतु पास के शिकार को पकड़ने के लिए अपनी आंखों का उपयोग करती है। मैकरल को शिकार पकड़ने में इसके पेट के मीनपंख बड़ा सहयोग करते हैं। इसके पेट के मीनपंख आगे होने के कारण यह छोटे से गोल घेरे में घूम जाती है तथा अपने शिकार को सरलता से पकड़ लेती है।
मैकरल अंडे देने के लिए लंबा प्रवास करती है तथा एक निश्चित स्थान पर जाकर अंडे देती है। मैकरल का एक बहुत बड़ा प्रजनन स्थल आयरलैंड के दक्षिण में है। यहां काफी दूर-दूर से मैकरल मछलियां प्रजनन के लिए आती हैं। 
मैकरल का लारवा लगभग 2.25 मिली मीटर लंबा होता है। इसके साथ एक योल्क थैली होती है। यह 9 दिनों तक योल्क थैली का योल्क खाता है और अपना शारीरिक विकास करता है। इसके बाद यह प्लेंकटन के छोटे-छोटे जीव खाने लगता है। नवजात मैकरल की आयु के साथ इसका भोजन बदलता जाता है और यह 2 वर्षों में वयस्क अर्थात् प्रजनन योग्य हो जाती है। इस समय इसकी लंबाई लंगभग 30 सेंटीमीटर होती है। मैकरल के शत्रु बहुत कम हैं। 
इसकी प्रमुख शत्रु हैं तेज तैरने वाली मांसाहारी मछलियां। ये इसके नवजात बच्चों को बहुत बड़ी संख्या में अपना आहार बनाती है। मैकरल अपने प्राकृतिक शत्रुओं से तो बच जाती है, किंतु मानव से नहीं बच पाती। मानव इसका प्रबलतम शत्रु है। मानव प्रतिवर्ष 2 वर्ष तक की आयु की लाखों मैकरल मछलियां पकड़ता है और भोजन के रूप में इनका उपयोग करता है। इसका शिकार प्राय: जालों हुक तथा लंबे डोरों की सहायता से किया जाता है। इसे मार्च से जून तक जालों द्वारा और जुलाई से अक्तूबर तक हुक और डोरी की सहायता से पकड़ा जाता है। मैकरल हैरिंग के बाद दूसरी प्रमुख व्यावसायिक उपयोग की मछली है।
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