दक्षिण के तीन राज्यों में अकेले चुनाव लड़ेगी कांग्रेस

कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा का एक बड़ा संकेत यह है कि दक्षिण भारत के तीन राज्यों में पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी। दक्षिण भारत के पांच राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में से तीन जगह पहले से कांग्रेस का गठबंधन है। तमिलनाडु और केंद्र शासित पुड्डचेरी में उसका डीएमके से गठबंधन है और अगले चुनाव में भी दोनों पार्टियां साथ रहेंगी। इसी तरह केरल में दशकों से कांग्रेस के नेतृत्व वाला यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट है। इसलिए इन तीन प्रदेशों में यथास्थिति रहेगी, लेकिन आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में कांग्रेस अकेले लड़ेगी। राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की यात्रा इस समय तेलंगाना में चल रही है और सोमवार को रंगारेड्डी जिले में राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रैंस में दो टूक अंदाज़ में कहा कि तेलंगाना में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति जिसका नाम अब भारत राष्ट्र समिति हो गया है, के साथ कांग्रेस का कोई संबंध नहीं है। कांग्रेस ने आंध्र प्रदेश से अलग तेलंगाना राज्य का गठन कराया और कायदे से उसे इसका फायदा मिलना चाहिए था लेकिन अलग राज्य बनने के बाद हुए दोनों चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। इस बार कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि उसका प्रदर्शन सुधरेगा। कांग्रेस को पता है कि के. चंद्रशेखर राव की पार्टी के साथ तालमेल करके कांग्रेस नहीं बच पाएगी, उससे लड़ कर ही कांग्रेस को बचाया जा सकता है। 
तब प्रधानमंत्री नहीं दिखाते थे ट्रेनों को हरी झंडी!
एक समय था जब देश के किसी भी शहर से नई ट्रेन शुरू होती थी तो रेल मंत्री या रेल राज्यमंत्री उसे रवाना करते थे। कई बार ऐसा भी होता था कि कोई मंत्री नहीं जाता था और संबंधित क्षेत्र के सांसद ही ट्रेन को हरी झंडी दिखा कर रवाना कर देते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता है। अब तो प्रधानमंत्री खुद हर जगह ट्रेनों को हरी झंडी दिखाने जाते हैं और आमतौर पर ऐसे मौकों पर रेल मंत्री या रेल राज्यमंत्री कहीं दिखाई भी नहीं देते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मोरबी में हुए पुल हादसे के एक दिन बाद 31 अक्तूबर को अहमदाबाद में दो नई रेल लाइन की शुरुआत की। इतनी बड़ी दर्दनाक घटना के बावजूद यह कार्यक्रम हुआ और इसके बाद 3 नवम्बर को चुनाव आयोग ने वहां के चुनाव की तारीखें घोषित कीं। इससे पहले 13 अक्तूबर को प्रधानमंत्री ने हिमाचल प्रदेश के ऊना और दिल्ली के बीच चलने वाली वंदे भारत ट्रेन को हरी झंडी दिखाई थी। प्रधानमंत्री द्वारा इस ट्रेन को रवाना करने के एक दिन बाद ही 15 अक्तूबर को चुनाव आयोग ने हिमाचल प्रदेश में चुनाव की घोषणा की थी। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले कई नई ट्रेनें शुरू हुईं। राजधानी, शताब्दी या जन शताब्दी को छोड़ दें तो पिछले 20 साल में ही सम्पर्क क्रांति, सम्पूर्ण क्रांति, गरीब रथ जैसी कई नई ट्रेनें चलीं लेकिन किसी को हरी झंडी दिखाने न तो अटल बिहारी वाजपेयी गए थे और न ही मनमोहन सिंह गए।
आज़म खान पर इतनी जल्दी क्यों?
उत्तर प्रदेश में सरकार ही नहीं, विधानसभा अध्यक्ष भी कानून-कायदों और अदालत को ठेंगे पर रखते हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापकों में से एक और हर चुनाव जीतने वाले नेता आज़म खान को ऩफरती भाषण का दोषी ठहरा कर सज़ा का ऐलान किया गया और 24 घंटे में उनको अयोग्य घोषित करके उनकी विधानसभा सीट खाली होने की अधिसूचना जारी कर दी गई। इस बात का भी इंतजार नहीं किया गया कि वह फैसले के खिलाफ  हाईकोर्ट जा सकते हैं और हाईकोर्ट सज़ा पर रोक भी लगा सकता है। ज़ाहिर है कि या तो स्पीकर को पता है कि हाईकोर्ट में क्या होना है या कुछ भी हो, उसकी परवाह उनको नहीं है। यह संभवत: पहला मामला है जब ऩफरती भाषण के मामले में किसी को सज़ा हुई है और वह भी इतनी सख्त। 
पिछले दिनों भाजपा के एक सांसद ने एक पूरे समुदाय के सम्पूर्ण बहिष्कार की अपील कर डाली थी लेकिन उनके खिलाफ  ऩफरती भाषण का मुकद्दमा भी दर्ज नहीं हुआ, जबकि आज़म खान ने सिर्फ  कलेक्टर पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगाया था। सवाल यह भी है कि खतौली के भाजपा विधायक विक्रम सैनी का क्या हुआ, जिनको 11 अक्तूबर को दो साल की सज़ा सुनाई गई थी? जन प्रतिनिधित्व कानून के तहत किसी को दो साल या उससे ज्यादा की सज़ा होती है तो उसकी सदस्यता खत्म हो जाती है लेकिन विक्रम सैनी की सीट अभी तक खाली घोषित नहीं की गई है।
ममता बनर्जी की राजनीति का बदला हुआ अंदाज़
पिछले कुछ समय से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का राजनीति करने का अंदाज़ बहुत कुछ बदला हुआ सा है। अपने सूबे के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ के साथ उनका जैसा अनुभव रहा, उसे देखते हुए उन्होंने राज्य के कार्यकारी राज्यपाल गणेश के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाना शुरू कर दिया है। वैसे गणेश भी पूर्णकालिक राज्यपाल नहीं होने की वजह से पश्चिम बंगाल में ज्यादा सक्रिय नहीं हैं। उनको मणिपुर और पश्चिम बंगाल दोनों साथ-साथ देखने हैं। सो, जुलाई में उनके कार्यकारी राज्यपाल बनने के बाद सरकार और राजभवन के बीच सद्भाव दिख रहा है। यह सद्भाव इतना है कि ममता बनर्जी जो केंद्र सरकार के कार्यक्रमों के लिए दिल्ली आने से भी परहेज करती हैं, वह राज्यपाल गणेश के बड़े भाई के जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल होने चेन्नई चली गईं। सवाल है कि इससे वह क्या संदेश देना चाहती हैं? क्या कार्यकारी राज्यपाल के साथ अच्छे संबंध रखने से उनकी पार्टी के नेताओं को केंद्रीय एजेंसियों से राहत मिल जाएगी? या यह किसी सौदेबाजी का हिस्सा है जिसके आरोप पिछले कुछ दिनों से लग रहे हैं? ममता बनर्जी ने पिछले दिनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भी तारीफ  की थी और इन दिनों उन्होंने विपक्षी पार्टियों से भी दूरी बना रखी है। सो, ऐसा लग रहा है कि वह अपने राज्य में हिंदू मतदाताओं को पूरी तरह से अपने खिलाफ  होने से रोकने की राजनीति कर रही हैं और साथ ही केंद्रीय जांच एजेंसियों से कुछ राहत हासिल करने का प्रयास भी कर रही हैं।