शशिकला के अनसुने किस्से


शशिकला जावलकर, जो अपने पहले नाम शशिकला से अधिक विख्यात हैं, का जन्म 4 अगस्त, 1933 को शोलापुर (महाराष्ट्र) के मराठीभाषी परिवार में हुआ था। अपने 6 भाई बहनों में वह सबसे सुंदर व प्रतिभावान थीं और 5 वर्ष की आयु से ही स्टेज पर नृत्य, गायन व अभिनय करने लगी थीं। उनके पिता सफल कपड़ा व्यापारी थे, लेकिन जब वह किशोरावस्था में ही थीं तो दुर्भाग्य से उनके पिता दिवालिया हो गये। वह अपने परिवार को लेकर बॉम्बे (मुंबई) आ गये इस उम्मीद में कि शशिकला को फिल्मों में काम मिल जायेगा और परिवार की रोटी का इंतज़ाम हो जायेगा। 
मात्र 14 वर्ष की आयु में शशिकला पर परिवार का बोझ तो आ गया, लेकिन फिल्मों में काम मिलना आज की तरह उस समय भी आसान नहीं था। शशिकला के परिवार के लिए कठिन दिन थे, रिश्तेदारों के सहारे बस गुज़ारा हो रहा था, मामूली-सा काम भी उन्हें मिल जाता था। ऐसे में उनकी मुलाक़ात उस समय की ‘पर्दे की देवी’ नूरजहां से हुई, जिनके पति शौकत हुसैन रिज़वी ने शशिकला को फिल्म ‘ज़ीनत’ की क़व्वाली में शामिल किया, 25 रुपये मेहनताना मिला, जो उस समय के हिसाब से बहुत अच्छा था और शशिकला का फिल्मी सफर जारी हो गया।
शशिकला को काम मिल रहा था, पैसे भी आ रहे थे, लेकिन वह स्थापित नाम नहीं बना पा रही थीं। 1959 में उन्हें बिमल रॉय की फिल्म ‘सुजाता’ में काम करने का अवसर मिला और फिर 1962 में उन्होंने ताराचंद बडजात्या की फिल्म ‘आरती’ में नेगेटिव रोल किया, जिसमें मीना कुमारी प्रमुख भूमिका में थीं। इस फिल्म में शशिकला के अभिनय की ज़बरदस्त प्रशंसा हुई और उन्हें अच्छी नकारात्मक व सहायक भूमिकाएं मिलने लगीं। फिर तो जैसे सफल फिल्मों का दौर ही शुरू हो गया- खूबसूरत, वक्त, गुमराह, आयी मिलन की बेला, फूल और पत्थर, अनुपमा, जंगली आदि। इस तरह शशिकला एक प्रमुख व कुशल कलाकार के रूप में स्थापित हो गईं। अपने बाद के करियर में शशिकला बहन व सास की भूमिकाओं में आने लगीं और फिर उन्होंने कुछ टीवी धारावाहिकों में भी काम किया जैसे सोन परी, दिल देके देखो, अपनापन, जीना इसी का नाम है आदि। 4 अप्रैल 2021 को मुंबई में अपने निधन से पहले वह कभी-कभी फिल्मों में भी नज़र आ जाती थीं- जैसे चोरी चोरी, मुझसे शादी करोगी, कभी खुशी कभी ग़म, बादशाह, परदेसी बाबू और मदर 98। लेकिन अमूमन वह अपने परिवार के साथ रिटायर्ड जीवन ही व्यतीत कर रही थीं।
उनकी दो बेटियों में से एक का कैंसर के कारण निधन हो गया। उनके पति ओम प्रकाश सैगल ने 1961 में एक फिल्म का निर्माण किया था। एक दिलचस्प बात यह है कि शशिकला पर कुछ बहुत ही यादगार गाने भी फिल्माए गये थे, जिन्हें अधिकतर आशा भोंसले ने ही गाया था,जैसे ‘ज़िन्दगी में प्यार करना सीख ले’, ‘भीगी भीगी फिज़ा’ और ‘शीशे से पी’ आदि। शशिकला ने अपने शानदार व प्रभावी अभिनय के बल पर अनेक पुरस्कार व नामांकन भी हासिल किये। 1962 में उन्हें ‘आरती’ के लिए फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री पुरस्कार मिला और फिर यही पुरस्कार इसके अगले वर्ष ‘गुमराह’ फिल्म के लिए भी मिला। इन दोनों फिल्मों के लिए उन्हें बंगाल फिल्म पत्रकार संघ का भी पुरस्कार मिला और यही पुरस्कार उन्हें 1970 में फिल्म ‘राहगीर’ के लिए भी मिला। 
भारतीय सिनेमा में योगदान के लिए उन्हें 2007 में पदम् श्री व 2009 में वी शांताराम अवार्ड से सम्मानित किया गया। ये दोनों ही पुरस्कार उन्हें काफी देर से दिए गये जबकि वह इनकी बहुत पहले से हकदार थीं। उन्हें इस बात की शिकायत भी हुई। फिल्मफेयर पुरस्कारों के लिए उन्हें 8 बार नामांकित किया गया था। शशिकला को 83 वर्ष की आयु में महाराष्ट्र सरकार ने राजकपूर पुरस्कार से सम्मानित किया। लेकिन तब तक शशिकला को अभिनय से अधिक अपनी बेटी की पोती के साथ समय गुज़ारना अधिक अच्छा लगने लगा था।
उन्हें इस बात पर भी संतोष था कि उस आयु में भी उनकी आंखें व स्वास्थ ठीक था। गैर फिल्मी पृष्ठभूमि की होने के बावजूद शशिकला ने फिल्मों में प्रवेश किया, अपने को स्थापित किया और सफलता पायी। शशिकला को नूरजहां की वजह से फिल्मों में काम मिलता था, लेकिन देश विभाजन के समय नूरजहां पाकिस्तान चली गईं और शशिकला के लिए फिर से संघर्ष का दौर शुरू हो गया। ऐसे में उन्हें सैगल से प्रेम हो गया और 19 वर्ष की आयु में उन्होंने शादी कर ली। वह गृहणी का जीवन व्यतीत करना चाहती थीं, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था। उनके पति का व्यापार भी फ्लॉप हो गया। इसलिए उन्हें फिर कैमरा के सामने आना पड़ा। लेकिन उस समय वह कुंठित व गुस्से में थीं। क्यों? उनके अनुसार, ‘श्यामा जैसी अभिनेत्री जिन्हें मैंने फिल्म ‘ज़ीनत’ में क़व्वाली के मुकाबले में हराकर 25 रुपये का ईनाम जीता था, को लीड भूमिका मिल रही थी जबकि मुझे अपने चूल्हे की आग जलाए रखने के लिए डबल शिफ्ट में छोटी-छोटी भूमिकाएं करनी पड़ रही थीं। ‘शशिकला ने जब अपनी बच्चियों को बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया तो उनके अपने पति से मतभेद बढ़ गए। फिर अपनी फिल्म ‘गुमराह’ की तरह वह भी गुमराह हो गईं और अपने पति, बच्चों व करियर को छोड़कर वह एक व्यक्ति के साथ भाग गईं,जिसकी उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी।
कई दिन के अपमान व यातनाओं के बाद वह सड़कों पर पागल औरत की तरह घूमने लगीं, फुटपाथ पर सोतीं, जो मिल जाता, खा लेतीं और शांति की तलाश में आश्रमों व मंदिरों के चक्कर लगतीं। विपश्यना पाठ्यक्रम से उन्हें शांति मिली और वह फिर फिल्मों में लौट आयीं। शशिकला ने अपनी कुंठा के कारण कई बार फिल्म संसार को छोड़ा, लेकिन वह हर बार लौटकर वापस आयीं, क्योंकि जहां भी वह जातीं, लोगों की दिलचस्पी एक्टर शशिकला में होती न कि व्यक्ति शशिकला में। इस बीच उनकी मुलाकात मदर टेरेसा से हुई और उनके जीवन में स्थाई शांति आयी।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर