गेहूं के अधिक उत्पादन के लिए पिछेती किस्मों की बिजाई की जाए


धान के अवशेष की संभाल कुछ किसानों ने एसएमएस कम्बाइनों का इस्तेमाल करके की और कुछ ने आग लगा कर निपटान किया। कई किसानों ने पराली, अवशेष की गांठें बांध कर प्लांटों को देकर खेत साफ करके गेहूं की बिजाई कर ली। कृषि व किसान कल्याण विभाग के निदेशक डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार अधिक रकबे पर बिजाई समय पर  कर ली गई है। अनुमानित 34.50 लाख हैक्टेयर (जिस पर गेहूं की काश्त की जानी है) रकबे में से लगभग 95 प्रतिशत रकबे पर बिजाई हो चुकी है। डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार जो 5 प्रतिशत रकबा शेष रहता है, वह या तो ऐसा रकबा है जिस पर किसानों ने आलू, मटर आदि की बिजाई कर तीसरी फसल ली है या फिर जो रकबा गन्ने एवं नरमे की काश्त के अधीन आया था, उस में से कुछ रकबे पर अभी बिजाई होनी है। 
पीएयू से सम्मानित धर्मगढ़ (अलमोह) के प्रगतिशील किसान बलबीर सिंह जड़िया के अनुसार आलु की पुटाई इस वर्ष दिसम्बर में देर से की जाएगी क्योंकि बारिश होने के कारण इस की बिजाई अक्तूबर में कुछ देरी से हुई थी। गन्ने की फसल तैयार है। किसानों द्वारा मांग की जा रही है कि सभी गन्ना मिलें चलाई जाएं। निदेशक गुरविन्दर सिंह के अनुसार किसानों ने अधिकतर पीएयू द्वारा सिफारिश की गईं किसमों की ही बिजाई की है। चाहे उनमें से डी.बी.डब्ल्यू.-303, डी.बी.डब्ल्यू.-222 तथा डी.बी.डब्ल्यू.-187 किस्में आई.सी.ए.आर.-भारतीय गेहूं एवं जौ के अनुसंधान करने वाले करनाल स्थित संस्थान द्वारा विकसित की गई हैं। किसानों ने वहीं किस्में अपनाईं जिनका अन्य के मुकाबले उत्पादन अधिक है। 
कृषि विशेषज्ञ कहते हैं कि अब किसानों को पिछेती बिजाई करने के लिए सिफारिश की गईं पी.बी.डब्ल्यू.-752, पी.बी.डब्ल्यू.-173 तथा पी.बी.डब्ल्यू.-771 किस्में लगानी चाहिएं। दिसम्बर में देर से लगाने के लिए सबसे सफल किस्म (आज़माइयों के आधार पर) एच.डी.-3298 है जो आई.सी.ए.आर.-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान ने विकसित की है और सर्वभारतीय फसलों की किस्मों को प्रमाणिकता देने वाली सब-कमेटी ने नोटिफाई करके बिजाई के लिए जारी की है। यह किस्म पीली कुंगी से रहित है। पोष्टिकता की मात्रा अधिक है। उत्पादन भी अधिक है। बहुत पिछेती दिसम्बर के अंत या जनवरी में बिजाई के बाद भी इसका उत्पादन 18 क्ंिवटल प्रति एकड़ मिल जाता है। अन्य बहुत-सी पिछेती बिजाई वाली किस्मों जैसे एच.डी.-3271, एच.आई.-1621 तथा पी.बी.डब्ल्यू.-757 का उत्पादन भी 15-16 क्ंिवटल प्रति एकड़ तक आ जाता है। पिछेती लगाने के लिए पी.बी.डब्ल्यू.-757 (औसत उत्पादन19 क्ंिवटल प्रति एकड़) तथा डी.बी.डब्ल्यू.-173 (औसत उत्पादन 18.5 क्ंिवटल प्रति एकड़) किस्में हैं। एच.डी.-3298 किस्म बहुत पिछेती बिजाई वाली किस्मों में सर्वोत्तम मानी गई है। पिछेती बिजाई के लिए सिफारिश की जा रही किस्मों को मार्च का अधिक तापमान भी प्रभावित नहीं करता। गेहूं की पिछेती बिजाई में उगने की शक्ति बढ़ाने की आवश्यकता है। इसलिए बीज को 46 घंटे के लिए भिगो कर सुखा लेना चाहिए और फिर इस्तेमाल करना चाहिए। 
बिजाई के समय बीज की सही मात्रा डालनी बहुत ज़रूरी है जो मुख्य तौर पर 40 क्ंिवटल प्रति एकड़ है। दीमक के हमले वाली ज़मीन में बिजाई हेतु बीज को पहले क्लोरोपाइरोफास दवाई से संशोधित कर सूखा लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीज के प्रोवैक्स या वीटावैक्स से भी ट्रीट करना ज़रूरी है। बिजाई 4 से 6 सैंटीमीटर गहरी, सियाड़ों के मध्य 20 से 22 सैटीमीटर की जगह अंतराल कम करके 15 सैंटीमीटर कर देना चाहिए। बिजाई के लिए बीज को इस्तेमाल करने से पहले सही जगह पर स्थापित करना आवश्यक है ताकि ड्रिल के माध्यम से बीज की सही मात्रा गिराई जाए। बीज 4 सैंटीमीटर गहरा गिराना चाहिए। अधिक उत्पादन लेने के लिए दो तरफा बिजाई करनी चाहिए। खादों का इस्तेमाल मिट्टी की जांच के आधार पर करना चाहिए। यदि मिट्टी की जांच न की गई हो तो मध्यम उपजाऊ भूमि के लिए 110 किलो यूरिया, 55 किलो डीएपी तथा 20 किलो म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ डालना चाहिए। लेट दिसम्बर में बोई गई गेहूं को समय पर बोई गई गेहूं से 25 प्रतिशत नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिए। 
प्रगतिशील किसान राज मोहन सिंह कालेका बिशनपुर छन्ना (पटियाला) कहते हैं कि वर्ष 2018 से लेकर अब तक कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने 90422 मशीनें धान के अवशेष एवं पराली को आग लगाने से रोकने के लिए 1145 करोड़ रुपये की सब्सिडी देकर किसानों की भारी लागत करवा दी। इनमें हैपी सीडर मशीनें सबसे अधिक हैं। बहुत-से किसानों ने इस मशीन के इस्तेमाल से संतुष्ट न होने के कारण सुपरसीडर मशीन ले ली और लाखों रुपये खर्च कर दिये। सुपरसीडर से बिजाई के लिए ज़मीन में नमी की मात्रा अधिक होनी चाहिए, परन्तु सुपरसीडर का इस्तेमाल नमी को खींचता है जिसके बाद गेहूं कम नमी में बीजी गई और बहुत-से किसानों की जर्मीनेशन बहुत कम हुई।