जेल की चारदीवारी के पीछे फाइव स्टार सुविधाएं


पहले लोग परस्पर धमकी दिया करते थे, जब जेल की हवा खाओगे, तब पता चलेगा, जेल की चक्की पिसोगे, तब पता चलेगा। तब हमारे मनोमस्तिष्क में जेल का बहुत ही डरावना चित्र बनता था। बाद में जब इसे फिल्मों में देखा, तो वहां की अव्यवस्था देखकर दहल उठे। पर अब जेल में कथित वीआईपी लोगों को मिलने वाली फाइव स्टार सुविधाएं देखकर ऐसा लगता है, मानो जेल नहीं पिकनिक करने जा रहे हों।
हाल ही में आम आदमी पार्टी के मंत्री सत्येंद्र जैन को तिहाड़ जेल में मिलने वाली सुविधाओं को देखकर ऐसा लगता है, मानों उनके लिए जेल जाना किसी तीर्थस्थल से कम नहीं है। यहां अपराधियों को इसीलिए लाया जाता है कि वह कभी ऐसा अपराध न करें, जिससे उसे यहां आना पड़े। पर अब लोगों में जेल जाने का खौफ नहीं रहा। विशेषकर उन नेताओं के लिए जो आए दिनों जेल की यात्रा करते ही रहते हैं। इस मामले में नेताओं का तर्क होता है कि जेल जाना कोई बड़ी बात नहीं है, नेताओं के लिए जेल दूसरे घर की तरह है। पर ये नेता यह भूल जाते हैं कि पहले नेताओं के जेल जाने के पीछे देश प्रेम की भावना थी। आज उन्हें उनकी काली-करतूतों के कारण जेल भेजा जाता है।
जेल में कैदियों को मिलने वाली तमाम सुविधाओं के बारे में जेल में सुधार का आंदोलन चलाने वाली भूतपूर्व पुलिस अधिकारी किरण बेदी का कहना है कि जेल प्रशासन के हाथ बंधे हुए होते हैं। तिहाड़ जेल का प्रशासन दिल्ली सरकार के हाथ में होता है। जब दिल्ली सरकार के ही मंत्री जेल के मेहमान बन गए हों, तो उनका जोरशोर से स्वागत तो होगा ही, उसके अलावा उन्हें वे सभी सुविधाएं भी मिलेंगी, जो एक पांच सितारा होटल में मिलती है। उनका कहना है कि जेल में सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं, उसमें सब रिकॉर्ड हो रहा है। फिर भी कोई कुछ नहीं कर पाता। आपको याद होगा कि तिहाड़ जेल में रहते हुए किरण बेदी ने जेल में जो सुधार किए थे, उसके लिए 1994 में उन्हें ‘द रेमन मैग्सेसे’ अवार्ड से विभूषित किया गया था।
इन दिनों आप के मंत्री सत्येंद्र जैन को जेल में घर जैसी सुविधाएं मिल रही हैं। जिसके कारण वे चर्चा में हैं। उनके व्यवाहार से ऐसा लग रहा है, मानो उन्होंने जेल में ही अपना आफिस खोल लिया है। यही कारण है कि आज भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच तीखे संवादों का दौर जारी है। इन संवादों के बीच हकीकत दबी हुई कहीं अंतिम सांसें ले रही हैं। देश के नेताओं और माफिया के लोगों को जेल में कई सुविधाएं मिल रही हैं, इसे सभी जानते हैं। इनके लिए बाहर से भोजन आ जाता है, यही नहीं, इन्हें मादक द्रव्य भी आसानी से मिल जाता है। हद तो तब हो जाती है, जब यह पता चलता है कि कोई रसूखदार जेल से ही किसी को भी मार डालने की सुपारी ले लेता है और उसे अंजाम तक पहुंचा भी देता है। यह हमारे देश में अपराधियों को संरक्षण देने की पराकाष्ठा है।
मामला सत्येंद्र जैन का ही नहीं है। जयललिता की खासम खास शशिकला को जेल में वीआईपी ट्रीटमेंट मिलता था। उनके लिए जेल में अलग से भोजन बनाया जाता था। यहां तक तो ठीक है, पर जेल में रहकर वे राजनीति भी कर लेती थीं। कहा तो यहां तक जाता है कि जेल में तमाम सुविधाएं प्राप्त करने के लिए शशिकला ने जेल प्रशासन को दो करोड़ रुपए भी दिए थे।
प्रजा के 20 हजार करोड़ का भुगतान नहीं करने वाले सहारा इंडिया के सुब्रतो रॉय को 2014 में जब जेल में रखा गया था, तब उनके लिए एयर कंडीशन्ड कमरे, वेस्टर्न टॉयलेट, मोबाइल फोन, वाई-फाई, वीडियो कांफ्रेंसिंग फेसिलिटी के लिए उन्होंने 31 लाख रुपए चुकाए थे। तिहाड़ जेल में सुब्रतो पहले ऐसे कैदी थे, जिन्हें एयर कंडीशन्ड की सुविधा दी गई थी। इस सुविधा के लिए कोर्ट ने मंजूरी दी थी। इसी तरह चारा घोटाले के आरोप में बिरसा मुंडा जेल की शोभा बढ़ाने वाले बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के लिए अलग से सब्जी आती थी। उन्हें बाहर से लोग मिलने आ सकते थे। सच्चाई तो यह है कि राजनीति से जुड़े कैदियों को सामान्य कैदियों की अपेक्षा अधिक सख्त सजा दी जानी चाहिए। इसके लिए केंद्र सरकार को सख्त कानून बनाना चाहिए, पर ऐसा हो नहीं पाता। लाख विरोध के बाद भी सभी राजनीतिक दल आपस में मिले हुए होते हैं। इस कारण उनके खिलाफ  ऐसा कोई कानून बन पाएगा, यह सोचना भी गलत है। प्रजा के प्रतिनिधि बनकर ये नेता कई सुविधाएं प्राप्त करते हैं। पर प्रजा से दूर ही रहते हैं। प्रजा भी यह अच्छी तरह से जानती है कि जेल जाने के बाद भी ये नेता वहां जाकर जश्न ही मनाते हैं। उन्हें जेल जाने का कोई डर होता ही नहीं। अब यह धारणा पूरी तरह से निर्मूल साबित होती है कि जेल में सभी कैदियों से समान व्यवहार होता है। अब हमें इस मुगालते से दूर हो जाना चाहिए। जेल रसूखदारों के लिए आरामगाह है। जहां वे तनाव से दूर होकर अपना जीवन जी सकते हैं। वहां रहकर वे वह सब कुछ कर सकते हैं, जो जेल से बाहर रहकर नहीं कर पाते। जेल से निकलकर वे अब शर्मसार भी नहीं होते, बल्कि उस पर गर्व करते हैं। यह तो जेल के बाहर आते ही उनके स्वागत में तैयार समर्थकों को देखकर ही लग जाता है। एक आम आदमी यदि जिंदगी में एक बार जेल चला गया, तो वह पूरी जिंदगी पछतावे में जीता है। दूसरी ओर जेल जाकर नेता और भी अधिक कद्दावर हो जाता है। ये कैसी विडम्बना है? यह स्थिति हमें और देश को किस दिशा में ले जाएगी, कभी सोचा आपने?
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