लाटरी, चैरिटी और सम्मान



उन्होंने मुझे साहित्यिक सम्मान के लिए चुन लिया है। समझ में नहीं आ रहा है कि खुशी के मारे रोऊँ या दुख के मारे हंसूँ? मेरे लेखकीय जीवन के तीन दशक पूरे कर लेने के बाद किसी साहित्य पारखी गुणग्राही व्यक्ति की संस्था ने असली साहित्य पहचाना और मुझे ‘इमरती देवी साहित्य चक्र वर्ती सम्मान’ से नवाजने का न्यौता भेजा है। जो व्यक्ति जीवनभर चक्र वृद्धि ब्याज के तले दबा रहा हो, उसे चक्र वर्ती सम्मान मिलने लगे तो वह कैसे जिए? ओहो। कितनी उदारता भरी है दुनिया में। मैं बेमतलब इसे बुरा समझता रहा। इतना बड़ा सम्मान और इतनी आसान शर्तों पर। ऐसे तो पहले नहीं मिलता था।
बकौल सम्मानदायी संस्था, इस महान सम्मान के लिए मुझे बस दो आसान-सी शर्तें पूरी करनी हैं। एक तो उन्हें यह बताना है कि मैंने किस विधा में और क्या लिखा है। क्या मेरी कोई पुस्तक या रचना अभी तक प्रकाशित हुई है? यदि हाँ, तो उसका उल्लेख करूँ। अब मैं इतनी आसान शर्त पर क्यों न भावुक होऊँ? जो बिना यह जाने ही कि मैंने क्या लिखा है, मुझे इतना भयंकर सम्मान देने पर उतारू हैं। वे यदि जान जाते तो पता नहीं क्या करते। दूसरी शर्त, मैं अपनी पात्रता सुनिश्चित करने हेतु मात्र पाँच हजार रुपये पंजीयन शुल्क के रूप में भेज दूँ। इस कार्य में मेरी सुविधा का ध्यान रखते हुए उन्होंने अपनी खाता संख्या, बैंक का पूरा विवरण भी न्यौते के साथ ही संलग्न कर दिया है। बताता चलूँ कि यह न्योता मेरे व्यक्तिगत नाम और पते पर पारंपरिक डाक सेवा द्वारा प्राप्त हुआ है।
खुशियाँ अभी और भी बाकी हैं। दूसरे नंबर की खुशी ईमेल से प्राप्त हुई है। सम्मान की तरह ठीक पहली बार मेरा ईमेल व नंबर लकी ड्रा में चुना गया है। अभी तक यही समझता रहा कि यह नाचीज किसी लकी घटना के लिए बना ही नहीं है लेकिन मेरा नंबर किसी ‘ग्लोबल युनिवर्सल वर्ल्ड नेटवर्क’ के लकी ड्रा में निकला है। वे मुझे बिना किसी देर के एक सौ पचास करोड़ डालर की राशि सौंप देना चाहते हैं। पहले तो आँखों ने इस ईमेल पर भरोसा नहीं किया, बाद में मेरी कमजोर गणित ने। एक सौ पचास करोड़ डालर की गिनती आसान नहीं। पसीने छूट जाते हैं, कैलकुलेटर की लिमिट खत्म हो जाती है। सर्वप्रथम गुणा करके डालर को रुपये में बदला। जिस हिसाब से रुपया डालर के सामने गिर रहा है, उससे हिसाब-किताब करने में कम दिक्कत नहीं। वैसे भी दिन-ब-दिन गिरती हुई चीजों और आदमियों की संख्या में जिस तरह बढ़ौतरी हो रही है, गिनती गड़बड़ा गई है। फिर एक सौ पचास करोड़ डालर को इकाई-दहाई-सैकड़ा-हजार की तर्ज पर गिनकर हिसाब लगाना उससे भी मुश्किल। शर्तें उनकी भी बहुत आसान हैं। बस अपनी खाता संख्या, बैंक विवरण दे दूँ और साथ में मात्र पचास हजार रुपये उनके खाते में डाल दूँ जिससे मेरा बैंक खाता सत्यापित हो जाए। बाद में वे एक कोड नंबर भेजेंगे तथा पैसे स्वीकार करने के लिए किसी विकल्प को ‘यस’ करना होगा। उसके बाद मेरे खाते में इतनी धनराशि आ जाएगी जिसके शून्यों की संख्या मुझे अभी तक याद नहीं हो पाई है। वास्तविक बैंकीय लेन-देन के बाद तो मैं जीवनभर के लिए शून्यमय हो ही जाऊँगा।
अभी तीसरी खुशी बताना बाकी है, जो डबल धमाका है। इसमें पैसा भी है, रोमांस भी। तीसरी खुशी वाया फेसबुक आई है। यह खुशी सीरिया में राष्ट्रसंघ की शांति सेना में कार्यरत किसी विधवा मिस एलीना के मार्फत आई है। पहले उन्होंने फेसबुक मित्रता का सप्रेम अनुरोध भेजा। अहा। क्या वर्दी पहनी है मोहतरमा ने। एयरफोर्स के तमगे मैडम के हृदयस्थल पर लटक रहे हैं। सम्मान तो करना ही चाहिए तमगों का। तमगों और चमचों को उपेक्षित करना हानिकारक होता है। मैंने मित्रता स्वीकार कर ली। मित्रमंच पर संवाद भी स्थापित हो गया। यहीं से मेरी कुंडली में रूठे शृंगार व धनाचार के सितारे जागने लगे। उनका कहना है कि नकदी मिलाकर अमरीका में उनकी एक सौ करोड़ से ऊपर की संपत्ति है। उनके मूर्ख पति ने उन्हें छोड़ दिया है। अब वे अशांत सीरिया को छोड़कर मुझ शांतिदूत की बाहों में शेष जीवन गुजारना चाहती हैं। उनका धन से मोह समाप्त हो गया है। भारत ‘योगा’ का देश है। वे अपनी सारी संपत्ति एक झटके में मुझे सौंपकर मेरे प्रेम में डूबी हठयोग से अपने प्राणों को मेरे आलिंगन में न्यौछावर कर देना चाहती हैं।
उनकी तलाश पूरी हो चुकी है। बस, मैं अपना खाता नंबर और बैंक विवरण भेज दूँ। मेरे हाँ करते ही वे इंडिया आ जाएँगी। इस बीच मैं अपने आवास का पता भी दे दूँ तो उनके आदमी हीरे-जवाहरात की गठरी मेरे पास रख जाएँगे।
मैं हैरान हूँ कि इतनी खुशियाँ एक साथ पाकर मैं मर क्यों नहीं गया? इतने पर भी जिंदा रहना। हद है यार बेशर्मी की। (अदिति)