बिहार में घटित दुखांत

बिहार में ज़हरीली शराब पीने से जहां मौतों की संख्या 39 हो गई है, वहीं इस घटना ने समूचे राजनीतिक तंत्र को भी हिला कर रख दिया है। इसके लिए मुख्यमंत्री नितीश कुमार को भाजपा तथा अन्य विपक्षी पार्टियों द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। नितीश ने इसके जवाब में अपनी ओर से अनेक स्पष्टीकरण दिए हैं तथा यह भी कहा है कि ज़हरीली शराब पीने से अन्य प्रदेशों में भी मौतें होती रहती हैं परन्तु उनके इस जवाब को सन्तोषजनक नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस प्रदेश में उन्होंने ज़ोर-शोर से शराबबंदी की घोषणा की थी तथा इसके लिए दोषी पाये जाने वाले व्यक्तियों को कड़ी सज़ा दिलाने की भी बात की गई थी।
नितीश कुमार की सरकार ने 2016 में अपने चुनावी वायदे को पूरा करने के लिए शराबबंदी लागू की थी परन्तु यह नीति क्रियात्मक रूप में बुरी तरह असफल सिद्ध हुई है। इस संबंध में प्रशासन द्वारा उठाये गये कड़े कदमों के कारण आज हज़ारों की संख्या में मामले अदालतों में लटक रहे हैं। वहीं कई बार तो यह प्रतीत होता है कि जैसे शराबबंदी संबंधी मामलों की सुनवाई के बिना अदालतों को और कोई काम ही न रहा हो। परन्तु इसके बावजूद इस मसले को हल नहीं किया जा सका। बिहार में आज व्यापक स्तर पर बड़े-बड़े तस्कर गिरोहों द्वारा लोगों में शराब बेची जाती है। इस अवैध शराब को तैयार करने का कोई तयशुदा पैमाना नहीं होता, इसलिए अक्सर इसके सेवन से लोग अपनी जान देकर कीमत अदा करते हैं, इस समस्या को नियन्त्रित करने में सरकार बुरी तरह असफल हुई है। अकेले बिहार ही नहीं, अपितु आज गुजरात, मिज़ोरम तथा नागालैंड में भी पूर्ण शराबबंदी लागू की गई है, परन्तु वहां पर भी अवैध शराब की बिक्री या तस्करी के लगातार समाचार मिलते रहते हैं। महाराष्ट्र के चंद्रपुर ज़िले में 2015 में प्रयोग के तौर पर शराबबंदी की गई थी, परन्तु यह सफल न हो सकी। इसके परिणाम ठीक न निकलने के कारण जांच करके सरकार द्वारा यह फैसला 2021 में वापिस ले लिया गया। बिहार में अवैध शराब पीने से लोगों के जानी नुकसान होने के समाचार तो लगातार मिलते ही रहते हैं। इसी वर्ष अगस्त माह में छपरा में ही ज़हरीली शराब पीने से 11 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी तथा जो बीमार हो गए थे, उनमें से 17 व्यक्तियों की आंखों की रोशनी चली गई थी। अब भी ऐसा प्रदेश के सरन ज़िले में हुआ है। इस संबंध में विपक्षी पार्टियों ने पूरी तरह नितीश कुमार को निशाने पर लिया हुआ है। प्रशांत किशोर जिन्हें देश भर में बड़ा राजनीतिक अनुमान लगाने वाला माना जाता है तथा जो कभी नितीश कुमार के विश्वासपात्र रहे हैं, ने भी शराबबंदी के कानून को बेहद गलत बताते हुए इसे समाप्त कर शराब संबंधी कोई पुख्ता नीति लागू करने की बात की है। उन्होंने यह भी कहा है कि नितीश कुमार इस संबंध में गलत ढंग से महात्मा गांधी के नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके लिए कोई ठोस नीति बनाना ज़रूरी है।
हम नितीश कुमार की इस बात से सहमत हैं कि शराब से उन प्रदेशों में भी मौतें होती हैं, जिनमें शराबबंदी की नीति लागू नहीं है। देश में सदियों से ही शराब किसी न किसी रूप में उपयोग की जाती रही है तथा इसके चलन को कभी भी रोका नहीं जा सका परन्तु संबंधित प्रशासनों को इस बात के लिए प्रयासरत रहने की ज़रूरत है कि वह इसकी बिक्री को नियन्त्रण में रखने हेतु प्रभावशाली नीतियां लागू करने में सफल हों। आज तो नशों के सौदागरों के कारण व्यापक 
स्तर पर ऐसे नशों की भी बिक्री शुरू हो गई है, जिनका बुरा प्रभाव शराब से भी कहीं अधिक है। यदि ऐसे नशों की लत लग जाए तो उनसे पीछा छुड़वाना बेहद कठिन होता है। पंजाब तथा हरियाणा में भी व्यापक स्तर पर ऐसे नशों की बिक्री होने लगी है जो समाज के लिए बड़ी चिन्ता का कारण बने हुए हैं। नि:सन्देह जहां ऐसे नशों को हर प्रयास से रोका जाना चाहिए। इसके साथ ही शराब संबंधी ज़ब्त भरपूर नीति बना कर इसकी बिक्री को सीमित रखने के लिए भी प्रयासरत रहना चाहिए, क्योंकि पूर्ण शराबबंदी की नीति अक्सर नाकारात्मक परिणामों का कारण बनती है। हरियाणा में चौधरी बंसी लाल ने मुख्यमंत्री रहते हुए यह नीति लागू की थी, जो उस समय भी बुरी तरह असफल साबित हुई थी, जिस कारण उन्हें इसे बदलना पड़ा था। बिहार से लगातार ऐसी घटनाओं के समाचार मिलने के कारण देश के अन्य प्रदेशों को भी शराब संबंधी गम्भीर सोच-विचार करके पुख्ता नीतियां अपनाने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द