फर्नीचर का पर्याय है शीशम का पेड़


अपने देश में यूं तो शीशम, साखू, सागौन, महुआ, देवदार, कैल, चीड़, सिरसा, आबनूस, तून, पडौक, आम, नीम आदि सभी पेड़ों की लकड़ियों से स्थानीय उपलब्धता के आधार पर फर्नीचर बनता है, लेकिन जो बात शीशम की लकड़ी से बने फर्नीचर में होती है, वह बात दूसरे गिने चुने पेड़ों की लकड़ियों से बने फर्नीचर में ही पायी जाती है। शीशम की लकड़ी से स्लीपिंग बेड, किचन कैबिनेट्स, सोफा सेट्स, डाइनिंग सेट्स और फर्श आदि सब कुछ बनता है। ज्यादातर म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट्स भी शीशम की लकड़ी के ही बनाए जाते हैं। शीशम की लकड़ी से बना फर्नीचर देखने में खूबसूरत, मजबूत और टिकाऊ होता है। इसकी लकड़ी के फर्नीचर में विशेष रूप से जो चमकती हुई धारियां दिखती हैं, उस कारण इसका कुछ अलग ही आकर्षण नज़र आता है। बेहद मजबूत होने के कारण इसकी लकड़ी से बना फर्नीचर न केवल सालोंसाल चलता है बल्कि दीमक भी इसका कुछ बिगाड़ नहीं पाती। इसके साथ ही शीशम की लकड़ी से बने फर्नीचर को अलग-अलग पॉलिश और फिनिशिंग में भी यूज किया जा सकता है।
अपनी इन अनगिनत खूबियों के कारण ही शीशम की लकड़ी फर्नीचर के लिए सबसे उपयोगी समझी जाती है और शीशम के पेड़ को फर्नीचर का पर्याय माना जाता है। इसे अंग्रेजी में इंडियन रोजवुड कहते हैं। हिंदुस्तान में यह केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक सहित सारे भारत में शीशम के लगाये हुये अथवा स्वयं उगे पेड़ मिलते हैं। शीशम के पेड़ का वानस्पतिक नाम डलबेर्गिया सिस्को है। भारत के अलावा यह पाकिस्तान, बांग्लादेश और दक्षिणी ईरान में ही मुख्यत: पाया जाता है। शीशम की लकड़ी फर्नीचर के अलावा अपने औषधीय तेल के लिए भी जानी जाती है। शीशम के बीजों और लकड़ी के तेल का आयुर्वेदिक दवाइयां बनाने में उपयोग किया जाता है। आमतौर पर शीशम का पेड़ करीब 30 मीटर ऊंचा और भूरे रंग का होता है। शीशम के पेड़ की लकड़ी का ईंधन के रूप मे भी उपयोग होता है। नीम की तरह लोग इसकी टहनियों से दातून भी करते हैं। निर्माण उद्योग मे भी इसका कई तरह से उपयोग होता है। ग्रामीण समाज में शीशम के पेड़ की पत्तियों, छाल और दूसरे हिस्सों का उपयोग विभिन्न बीमारियों में इलाज के लिए किया जाता है। शीशम के पेड़ की पत्तियां पशुओं के लिए प्रोटीनयुक्त चारा होती हैं। इसकी जड़ें भूमि को अधिक उपजाऊ बनाती हैं। इसकी पत्तियां पेस्टीसाइड के रूप में भी इस्तेमाल होती हैं। शीशम के पेड़ की पत्तियां व शाखाएं वर्षा-जल की बूंदों को धीरे-धीरे ज़मीन पर गिराकर भू-जल भंडार बढ़ाती हैं।
शीशम के बीज दिसम्बर-जनवरी माह में इसके पेड़ों से प्राप्त होते हैं। एक पेड़ से एक से दो किलो बीज मिल जाते हैं। बीजों से नर्सरी में पौधे तैयार होते हैं। बीजों को दो तीन दिन पानी में भिगोने के बाद बोने से अंकुरण जल्दी होता है। इन्हें दस-पंद्रह सेमी की दूरी पर कतार में 1-3 सेमी के अंतर से व 1 सेमी की गहराई में बोया जाता है। नर्सरी में बीज लगाने का उपयुक्त समय फरवरी-मार्च है। पौधों की लंबाई 10-15 सेमी होने पर इन्हें सिंचित क्षेत्र में अप्रैल-मई व असिंचित क्षेत्र में जून-जुलाई में रोपा जाता है। शीशम के पेड़ सड़क-रेल मार्ग के दोनों ओर, खेतों की मेड़, स्कूल व पंचायत भवनों के परिसर, कारखानों के मैदान तथा कॉलोनी के पार्क में लगाना उपयुक्त रहता है। शीशम के पौधे को रोपने के लिए पहले से ही 1 फीट गोलाई व 1 फुट गहरा गड्ढ़ा खोदकर उसमें पौध मिश्रण भर दिया जाता है। हल्की मिट्टी में शुरू में बढ़वार कम होती है।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि इमारती लकड़ी के लिए मशहूर शीशम अब टूटी हुई हड्डी को सबसे तेज़ जोडने वाला पौधा भी बन गया है। देश के केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान (सीडीआरआइ) लखनऊ के वैज्ञानिकों ने शीशम में हड्डी को जोडने वाले महत्वपूर्ण गुण की तलाश की है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस फ्रेक्शन को ‘रैपिड फ्रैक्चर हीलिंग एजेंट’ के रूप में प्रयोग किया गया है, उसे शीशम की पत्तियों से प्राप्त किया गया है।अमूमन फ्रैक्चर होने पर हड्डी जुडने में तीन सप्ताह का समय लगता है, लेकिन इस औषधि के इस्तेमाल से आधे समय में हड्डी जुड़ जाती हैं। आगे चलकर यह एजेंट रजोनिवृत्ति के उपरांत महिलाओं में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले फ्रैक्चर की समस्या से निपटने में भी कारगर होगा।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर