फुटबाल के शहंशाह थे ब्राज़ील के पेले

 

जब भी फुटबाल का विश्व कप होता था मुझे पेले याद आ जाते थे। वह फुटबाल के शहंशाह थे। जब उसने 1000वां गोल किया था तो लगा था जैसे उसने चांद पर पांव रख दिया हो। जिस दिन 1250वां गोल किया था तो उन्हें फुटबाल के गोल्डन बूट भेंट किए। ब्राज़ील द्वारा बढ़िया खिलाड़ी के लिए पेले अवार्ड रखा गया। वह अंत तक फुटबाल के खेल से जुड़े रहे। पेले खिलाड़ी ही नहीं ब्राज़ील के खेल मंत्री भी रह चुके हैं। वह फुटबाल के मैचों की कमैंटरी करते और विशेषज्ञ के रूप में टिप्पणी भी देते रहे हैं। 
पेले के तीन विवाह हुए थे, 2 तलाक, एक पार्टनरशिप पर सात बच्चे। पीठ के आप्रेशन के बाद वह व्हीलचेयर पर सवार रहते थे। उसकी एक गुर्दे के साथ गाड़ी चलती थी। कैंसर के साथ सांस की तकलीफ थी। वह 83 वर्ष के थे। मैंने दुआ की थी कि वह स्वस्थ हों और लम्बा समय जीवन व्यतीत करे परन्तु यह नहीं हुआ।
कुछ साल पहले मैंने उसकी जीवनी पढ़ी थी। उसके जीवन पर फिल्म भी बनी। खेल पत्रकारों ने पेले को 20वीं शताब्दी का सर्वोत्तम खिलाड़ी का ऐलान किया था। उसने पहले दर्जे के फुटबाल के 1363 मैच खेलने पर 1283 गोल करने का रिकार्ड बनाया था। वह 20 वर्ष उच्चस्तरीय फुटबाल खेले और तीन बार विश्व कप जीता था। 92 इंटरनैशनल मैचों में उसने 77 इंटरनैशनल गोल किये थे। उसने अपने खेल से करोड़ों डालर कमाये और करोड़ों दर्शकों का दिल जीता। मैक्सिको के एक क्लब ने उसके आगे खाली चैक रख दिया था कि जितनी चाहे रकम भर लें परन्तु उस क्लब की तरफ से खेलने के लिए मान जाए। उसके ... बालों, घिसी हुई जुराबें, टूटे हुए बूट और खेलने वाली जर्सी लोगों ने अनमोल निशानियों के तौर पर सम्भाल कर रखी हैं। पेले ने विश्व के 100 देश घूमे थे। वह 2 पोपां, पांच शहंशाही, 10 बादशाहों, 70 देशों के प्रधानों और 40 देशों के प्रधानमंत्रियों से मिले थे। शाह इरान उसे मिलने के लिए एक हवाई अड्डे पर उसका तीन घंटे इंतजार करते रहे। लाल चीन के सीमावर्ती रक्षक चौकी छोड़कर हांगकांग उसको देखने गये थे। नाईजीरिया में उसका खेल देखने के लिए लड़ाई दो दिन बंद रही। वह कई देशों का सम्मानित सिटीज़न था। उसके आटोग्राफ लेने के लिए सब जगह भीड़ इकट्ठी रहती थी। विभिन्न भाषाओं के 90 गीतों में पेले का नाम गाया गया। अपने समय के वह सबसे ज्यादा पैसे कमाने वाले खिलाड़ी थे। उसने देश-विदेश की कई बोलियां सीखी थीं। उसकी मातृ भाषा पुर्तगेज़ी थी लेकिन वह स्पैनिश और अंग्रेजी भी बोल लेते थे। उनका जन्म ब्राज़ील के एक गरीब फुटबाल खिलाड़ी के घर 23 अक्तूबर 1940 को हुआ था। पेले के पिता ने उसकी टांगें देखकर पत्नी से कहा था ‘टांगें तो अच्छी है, यह फुटबाल का अच्छा खिलाड़ी बन सकता है’ पत्नी ने कहा था, ‘इसको फुटबाल खिलाड़ी बनने का श्राप न दें। फुटबाल खेलकर आपने क्या ले लिया?’
पेले का पूरा नाम एडसन अरेंटस डो नासीमैटो था। पेले उसको 9 वर्ष की आयु में कहा जाने लगा जब वह पैरों के साथ हर चीज़ को चलाता रहता था। पुर्तगेज़ी में पेले का अर्थ है पांव। 
जब वह 16 वर्ष का हुआ तो सैंटोस क्लब ने उसको अपनी टीम का सदस्य बना लिया था। वहां उसको अच्छी खुराक मिलने लगी। मां उसको फुटबाल खेलने से रोकती थी। उसने मां के साथइकरार किया था कि क्लब से मिलने वाले पैसों से वह पहले मां-बाप को घर खरीदकर देगा। मां को फिर भी यकीन नहीं था कि पुत्र फुटबाल खेलकर भरपेट रोटी कैसे खाएगा?
सैंटोस क्लब में 20 माह खेलने के बाद वह फुटबाल के विश्व कप के लिए ब्राज़ील की टीम में चुना गया था। 18 वर्ष की आयु में वह ब्राज़ील की तरफ से 1958 का विश्व कप खेलने गए। दर्शक उसका खेल देखकर दंग रह गये। मैच के बाद स्वीडन की नीली आंखों वाली अंग्रेज लड़कियां उससे आटोग्राफ लेने आईं। पेले के काले रंग पर उन्होंने हाथ लगाकर देखा कहीं ये पालिश तो नहीं? पेले के साथियों ने मज़ाक में कहा, ‘यह रंग असली है। आप बेशक उसको गले लगा लें, कोई रंग नहीं लगेगा।’
सैंटोस में वह लड़कियों का बास्केटबाल मैच देखने गए। रिज़र्व खिलाड़ी के तौर पर बैंच पर बैठी एक लड़की ने उसका ध्यान खींच लिया। वह पेले की तरफ देख रही थी। पेले ने समझा वह सुंदर लड़की उसके पीछे बैठे किसी सुंदर लड़के की तरफ देख रही होगी। परन्तु पेले के पीछे तो कोई भी नहीं बैठा था। मैच के बाद वह लड़की पेले के पास आई। लड़की का नाम रोज़मेरी था, रंग गोरा। जब प्यार होता है तो रंग, नस्ल और बड़ा छोटा नहीं देखता। पहली बार देखने पर ही वह एक दूसरे के हो गये और बाद में दोनों का विवाह हो गया। 
1962 के विश्व कप के लिए पेले फिर ब्राज़ील की टीम में चुने गए। ब्राज़ील दूसरी बार फिर विश्व कप जीत गया, जिसमें पेले के गोलों का विशेष योगदान था। 1966 का विश्व कर खेलने के लिए वह तीसरी बार ब्राज़ील की टीम के सदस्य बने। घायल होने के कारण एक मैच उसको खिलाया नहीं गया और वही मैच ब्राज़ील की टीम हार गई। पेले को इस हार का बहुत दुख हुआ। परन्तु उसने हिम्मत नहीं हारी और इस हार का बदला 1970 का विश्व कप तीसरी बार जीतकर लिया। फाईनल मैच ब्राज़ील और इटली के मध्य हुआ था। दोनों देश 2-2 बार विश्व कप जीत चुके थे। जो देश तीसरी बार जीत जाता जूलस रीमे ट्राफी पक्के तौर पर उसकी हो जानी थी। 
मैक्सिको स्टेडियम में हो रहा वह फाईनल मैच एक लाख दस हजार दर्शक देख रहे थे। ब्राज़ील ने इटली को बुरी तरह हरा कर फीफा ट्राफी हमेशा के लिए अपने कब्ज़े में कर ली। 14 वर्ष ब्राज़ील की वर्दी डालने के बाद फिर उसने ब्राज़ील के लिए अंतिम मैच खेलने का ऐलान कर दिया। वह मैच 18 जुलाई 1971 को यूगोस्लाविया के विरूद्ध खेला गया। एक लाख अस्सी हजार दर्शक ‘फीका फीका’ का राग अलाप रहे थे जिसका अर्थ था, पेले रुक जा। वह मैच 2-2 गोलों की बराबरी पर समाप्त हुआ। पेले ने आंसू भरी आंखों से हाथ ऊपर उठाकर स्टेडियम का चक्कर लगाया। वह बाजू लहरा कर दर्शकों का धन्यवाद कर रहे थे, दर्शक खड़े होकर उसके सम्मान में तालियां बजा रहे थे। उसने ब्राज़ील की पीले हरे रंग की जर्सी उतारी और फिर कभी नहीं डाली। जिस मैदान को उसने पसीने से सींचा था, उसको आंसू के साथ सींचता स्टेडियम से बाहर चला गया।  उस दिन स्टेडीयम से बाहर जाते हुए पेले के आंसू बह रहे थे, अब उसकी मौत पर लाखों करोड़ों फुटबाल प्रेमियों के आंसू बह रहे हैं।**