बहुपक्षीय शख्सियत के मालिक थे डा. साधु सिंह हमदर्द



़गरीबी-़गुरबत और सामाजिक मुश्किलों की गुढ़ती ले कर पहली जनवरी, 1916 ईस्वी को जन्मे डा. साधु सिंह हमदर्द का  जन्म पद्दी मट्टवाली (तहसील बंगा) अब जिला नवांशहर में श्री लब्भू राम जी के घर हुआ। साधु सिंह का परिवार पहले ‘मीयां चन्नू’ और फिर मिंटगुमरी चला गया। पारिवारिक मुंिश्कलों और ़गरीबी के कारण लगभग चार वर्ष की बाल आयु में इन्हें अपनी बूआ के पास ‘उच्चा लधाना’ जाना पड़ा। प्राथमिक शिक्षा भी यहीं पर पूर्ण की। 
पंजाब के इस महान सिख शख्स की शख्सियत का निर्माण करने में सिख सिद्धांतों, सिख परम्पराओं, सिख सदाचारक नैतिक-मूल्यों का बहुत बड़ा योगदान है। सातवीं कक्षा में पढ़ते हुए इनकी पहली कविता प्रकाशित हुई जो कवि मन की साक्षी देती है। सत्य-संतोष, संयम  आदि सद्गुणों के धारणी सिख शख्सियत साधु सिंह हमदर्द बहुत संजीदा और शर्मीले थे। तत्कालीन हालात के दृष्टिगत दीये की रोशनी में पढ़ कर ज्ञान के अनेक दीये जलाए। उद्देश्य की प्राप्ति के लिए वह बहुत दृढ़ निश्चयी थे।
1935 ईस्वी के चुनावों के अवसर पर ‘प्रकाश’ और ‘उपकार’ नाम के दो साप्ताहिक मैगज़ीन शुरू हुए तो उनमें लिखने का अवसर मिला। कविता लिखने और कविता बोलने का शौक भी यहीं से ही पड़ा। अमृतसर आने पर साधु सिंह हमदर्द का सम्पर्क धनी राम चात्रिक और स. दीवान सिंह कालेपानी के साथ हुआ। उन्हें साहित्य को समझने और सृजन करने की शिक्षा मिली। पहली रचनाएं उर्दू में लिखीं। लाहौर में ‘अजीत’ में नौकरी शुरू करने के समय साप्ताहिक ‘फुलवाड़ी’ पत्रिका शुरू की। 1947 ईस्वी तक इस तरह लाहौर में कार्यशील रहे। इस दौरान ही उनको लाल सिंह कमला अकाली, मास्टर तारा सिंह और ज्ञानी करतार सिंह जैसी शख्सियतों के साथ काम करने का अवसर मिला। वह देश भक्ति और सिख धर्म के पूरी तरह पाबंद पैरोकार थे। सिख इतिहास से उनको सदा सम्बल मिला। उर्दू ़गज़ल के माध्यम से उन्होंने मन के उद्गार सांझे करने शुरू किये। धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक स्वतंत्रता उनका लक्ष्य था। लाहौर और अमृतसर उस समय शिक्षा का केन्द्र होने से साथ समकालीन ज्ञान के मठ, साहित्य और समाचारों का केन्द्र थे। पढ़ने-लिखने की रुचि, आज़ादी के जज़्बे के कारण इन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र को चुना। 20-21 वर्ष की आयु तक हमदर्द साहिब को यही महसूस हुआ कि पत्रकार का अर्थ उर्दू पत्रकारिता या अखबार-नवीसी है। उर्दू अजीत में नौकरी करते समय पता चला कि ‘पंजाबी अकाली’ समाचार पत्र प्रकाशित होता है परन्तु उस में काम करने वाले सिर्फ दो ही व्यक्ति थे जो स्वयं ही लिखते एवं स्वयं ही प्रूफ- रीडिंग करते थे। पंजाबी में ‘खालसा  एडवोकेट’, ‘खालसा समाचार’, चीफ खालसा दीवान की ओर से साप्ताहिक प्रकाशित किए जाते थे, जिनमें उनको सेवा करने का अवसर मिला। 
सिखों की शिरोमणि संस्था, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी, श्री अमृतसर में उन्होंने प्री-आडीटर, फिर गुरुद्वारा इन्स्पैक्टर और फिर सहायक पब्लिसिटी के रूप  में सेवा निभाई। फिर ‘गुरुद्वारा गज़ट’ के सम्पादक बन गए। ज्ञानी करतार सिंह की प्रेरणा से 1941-1943 में डा. साधु सिंह हमदर्द ने शहीद सिख मिशनरी कालेज श्री अमृतसर से दो वर्षीय प्रचारक (मिशनरी) कोर्स किया। उस समय प्रिं. गंगा सिंह और ज्ञानी लाल सिंह इनके अध्यापक थे। 1944 ई. से 1954 ई. तक शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के चुने हुए सदस्य के रूप में इन्होंने सेवा की। 1944, 1948 और 1954 में महा अधिवेशन के समय साधु सिंह हमदर्द उपस्थित रहे। फिर शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी की नौकरी छोड़ कर अकाली समाचार पत्र में स. लाल सिंह कमला अकाली मुख्य सम्पादक के साथ सहायक सम्पादक का कार्य करने लगे। फिर मुख्य सम्पादक के रूप में वर्ष 1957  तक कार्यशील रहे। वर्ष 1951-52 में ‘प्रभात’ उर्दू के सम्पादक भी रहे। नीली दस्तार के धारणी स़ाफ, सादा पोशाक, पाजामा-कमीज़ से प्रकटतया अकाली लगते परन्तु गम्भीर सिख शख्यित के धारणी थे। वर्ष 1944 से  वर्ष 1953 तक प्रैस सलाहकार कमेटी के सदस्य रहे। गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी, श्री अमृतसर की सिंडीकेट के सदस्य, पंजाब भाषा विभाग के सदस्य रहे।
वर्ष 1955 में उन्होंने वैसाखी वाले दिन पंजाबी ‘अजीत’ समाचार पत्र प्रकाशित करने की घोषणा कर दी। पंजाबी ‘अजीत’ समाचार पत्र शुरू करने एवं स्थापित करने में उन्होंने अपनी पूरी उम्र लगा दी। बस एक ही शौक था कि मातृ भाषा का स्थापित समाचार पत्र हो। पंजाबी पत्रकारिता के क्षेत्र में डाले गये निष्पक्ष-विलक्ष्ण विशेष योगदान हेतु वर्ष 1968 में स. साधु सिंह हमदर्द को ‘शिरोमणि पत्रकार’ के सम्मान से सम्मानित किया गया। पढ़ने-लिखने के जुनून के कारण ही उन्होंने एम.ए., एल.एल.बी. एवं फिर पी.एच.डी. भी की। ‘अजीत’ समाचार पत्र को लोकप्रिय बनाने हेतु डा. साधु सिंह हमदर्द ने समाचारों के अलावा अन्य बहुत तजुर्बे किये जैसे समाचार पत्र के विशेष अंकों में खेल अंक, कहानी अंक, राजनीति अंक, धर्म-संस्कृति अंक, रविवारीय अंक, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय, क्रमानुसार लेख, कहानियां आदि प्रकाशित करने की नई परम्पराएं स्थापित कीं। प्राथमिक रूप में स. हमदर्द कवि मानसिकता के धारणी थे। पंजाबी साहित्य की काव्य विधा ़गज़ल को प्रकाशित करने में उन्होंने अहम योगदान डाला। ‘अजीत’ समाचार पत्र को हमदर्द साहिब से अलग रूप में नहीं देखा जा सकता। ‘अजीत’ समाचार पत्र को हमदर्द साहिब ने इतना म़कबूल कर दिया कि अब पंजाब के सपूतों, मातृ भाषा को प्यार करने वालों को ‘अजीत’ पढ़े बिना संतुष्टि-सुकून नहीं मिलता। पंजाबी जन-भावनाएं ‘अजीत’ के साथ भीतर से जुड़ गई हैं। ‘अजीत’  का संरक्षण एवं पहचान डा. साधु सिंह हमदर्द ने बनाई, जिसकी लोकप्रियता को डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द ने निरन्तर कायम रखा। ़गज़ल लिखने तथा ़गज़ल शैली के बारे में लिखने  हेतु स. हमदर्द को दिल से लगाव था। ़गज़ल काव्य शैली के प्रति अथाह प्यार और मोह की अभिव्यक्ति के दृष्टिगत डा. साधु सिंह हमदर्द ने पंजाबी ़गज़ल का निकास-विकास विषय पर 1982 में पी.एच.डी. की। ़गज़ल दे रंग, रंग-सुगन्ध, काकटेल, माडर्न ़गज़ल आदि डा. हमदर्द के लिखे चुनिंदा  ़गज़ल संग्रह हैं।
नानक निर्मल पंथ की निर्मल विचारधारा से डा. साधु सिंह हमदर्द बहुत प्रभावित थे। उन्होंने सिख इतिहास एवं सिख दर्शन को खूब पढ़ा, मनन किया तथा इस संबंध में लिखा भी। भाई वीर सिंह के उपरांत हमदर्द साहिब ने ऐतिहासिक नावल लिख कर सिख धर्म के प्रति अपनी भावनाओं को रूपायमान किया। ज़ीनत बघेल सिंह, टक्कर, अणख एवं सटैला बहादुर सिंह नावल इस क्षेत्र में बहुत ही लोकप्रिय हुए।
1932 से 1984 तक हमदर्द साहिब पंजाब से संबंधित, धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भाषायी एवं जन-समस्याओं से जुड़े रहे और इन सरोकारों के बारे में ही अध्ययन किया तथा निर्भीक होकर लिखा। दोस्तों-दुश्मनों, दुश्वारियों के साथ दो-चार होते हुए निर्मल जीवन व्यतीत किया। ‘अजीत’ समाचार के सम्पादक के रूप में उनको रूस, इंग्लैंड, जमायका आदि देशों में भ्रमण करने का अवसर मिला। ‘आंखों देखा रूस’ उनके स़फर की साक्षी देता स़फरनामा है। ‘याद बनी इतिहास’ साधु सिंह हमदर्द की जीवन यात्रा संबंधी वृहद् पुस्तक है जो आत्म-कथा जैसी उत्तम रचना है। इसमें समकालीन लहरों, विशेष रूप में अकाली लहर अंग्रेज़ों के विरुद्ध सिख जगत के संघर्ष को रूपमान करती है। 
डा. साधु सिंह हमदर्द का एक ही स़फरनामा पुस्तक रूप में  प्रकाशित हुआ। शेष ‘अजीत’ अखबार में धारावाहिक रूप से प्रकाशित होते रहे। ‘आंखों देखा रूस’ स़फरनामा लेखन शैली की अनूठी पहचान है। इस स़फरनामे को पढ़ कर पाठक ऐसे महसूस करता है कि स्वयं स़फर कर रहा है। इस स़फरनामे में अंकित धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, भाषाई जानकारी इतनी बारीकी से दी गई है कि पाठक की समझ में साकार रूप में आ जाती है। भाषा बहुत सरल, स्पष्ट एवं विशुद्ध हंसी-मज़ाक से परिपूर्ण है। कहीं भी स़फरनामे में स़फर की थकावट महसूस नहीं होती। हमदर्द साहिब अपनी प्रतिभा की अभिव्यक्ति काव्य शैली ़गज़ल के माध्यम से बखूबी करते हैं। वह मानते हैं कि करता पुरुख ने तो उन्हें कवि मन से भरपूर किया था, परन्तु हालातवश वह सम्पादक बन गए :
बनाया कवि रब्ब ने हमदर्द नूं,
एडीटर ओह खाह-म़खाह हो गया।
डा. साधु सिंह हमदर्द की शादी बलाचौर निवासी बीबी नरिन्दर कौर के साथ हुई। उनके तीन सुपुत्रों में डा. बरजिन्दर सिंह हमदर्द मुख्य सम्पादक ‘अजीत’ विश्व की जानी-पहचानी शख्सियत हैं। डा. साधु सिंह हमदर्द को देश-विदेश से बहुत से सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें 1984 में उनको ‘पद्मश्री’ के साथ सम्मानित किया गया परन्तु जून, 1984 में घटित तीसरे घल्लुघारे, श्री हरिमंदिर साहिब श्री अमृतसर पर भारतीय सेना द्वारा की गई सैनिक कार्रवाई के दौरान उनकी भावनाओं को इतनी ठेस पहुंची कि उन्होंने भारत सरकार को ‘पद्मश्री’ का सम्मान रोष स्वरूप उसी वर्ष ही वापिस लौटा दिया। सरकार ने बोलने-लिखने की आज़ादी पर ‘सैंसरशिप’ लागू कर दी थी जिसके रोष स्वरूप हमदर्द साहिब ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व राज्यपाल को रोष पत्र लिखे। श्री दरबार साहिब पर हुए सैनिक हमले तथा प्रैस की आज़ादी पर पाबंदी ने उनकी मानसिकता को झिंझोड़ कर रख दिया। शारीरिक एवं मानसिक रूप से गहरे सदमे के कारण 29 जुलाई,  वर्ष 1984 को परिवार, मित्रों, प्रेमी-पाठकों को हमेशा के लिए अलविदा कह गए। पंजाब, पंजाबी एवं पंजाबियत का हमदर्द, सिखी भावनाओं से ओत-प्रोत, डा. साधु सिंह हमदर्द अपनी कथनी एवं करनी के सुमेल सदका सदाबहार बहुपक्षीय शख्सियत बन कर उभरे। 
-पूर्व सचिव, शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी।
-मो. 98146-37979