गिलहरी के बच्चे

 

पंकज आठ साल का था। वह दूसरी कक्षा में पढ़ता था। वह पढ़ने में होशियार लड़का था और बोलने में भी मधुर और सियाना लड़का था। वह किसी से कटु वचन नहीं बोलता था। वे जब भी बोलता तो बहुत ही सधी हुई और मधुर वाणी में बात करता था।
कुछ दिनों से उनके घर में राजमिस्त्री लगे हुए थे। घर उनका पक्का बना हुआ था। मकान बने हुए चार-पांच साल हो गए थे, लेकिन प्लसतर अभी भी एक ही कमरे को हुआ था। बाकी के दो कमरों एक बरांडे और एक छज्जे पर प्लास्टर करने के लिए राजमिस्त्री और मजदूरों को अब लगाया गया था। पंकज स्कूल से आकर राजमिस्त्रियों के पास बैठ गया। वह दीवारों पर हो रहा प्लास्टर देख रहा था। राजमिस्त्री पहले मसाले को कन्नी से दीवार पर चिपका देता था और बाद में लकड़ी के बने फट्टो नुमा गज़ से मसाले को समतल कर देता था। फिर वह लकड़ी का एक गुरमाला घिसता और अधिक समतल करने के लिए उसको घुमाता था और अंत में वह लोहे के गुरमाले को घुमाकर दीवार को एक ही बार में चिकना कर देता था। पंकज बैठा राजमिस्त्री को काम करते देख रहा था। ये सब देखकर उसे बहुत मज़ा आ रहा था।
दोपहर में राजमिस्त्री व मजदूर रोटी खाने कहीं चले गए। पंकज वहीं बैठ गया और खेलने लगा। खेलते-खेलते पंकज का ध्यान दीवार के चक्कर लगाती हुई गिलहरी पर गया। वह बड़ी बेचैनी से इधर-उधर चक्कर काट रही थी। वह दीवार पर चढ़ने की असफल कोशिश भी कर रही थी। पंकज का ध्यान खेलने से हटकर गिलहरी पर केंद्रित हो गया। वह उसकी बेचैन हरकतों को बड़े ध्यान से देखने लगा। उसे याद आया कि दीवार की दरार में गिलहरी के बच्चे थे। वह दरार (छेद) प्लसतर हो जाने के कारण बंद हो गई थी। बच्चे गड्ढे के अंदर ही थे। इसी लिए बच्चों तक पहुंचने की लालसा ही गिलहरी की बेचैनी का कारण थी। वह रोज़ गिलहरी को देखा करता था। उनके घर में कई गिलहरीयां घूमती रहती थी। कभी-कभी वह उनके आंगन में उगे शहतूत के पेड़ पर चढ़ जाती थी। कभी वे पड़ोसियों के घर चली जाती थी। अधिकांश समय वे पंकज के घर की दीवारों में बनी दरारों में छिपी रहती थी। दीवारों पर प्लास्टर नहीं होने के कारण दीवारों में कई जगह छोटे-बड़े छेद थे। उन खोखली दर्जों में गिलहरियों के घर थे। ऊपर लेंटर के साथ एक बड़ी मोरी में गिलहरी के बच्चों का उसे पता था। अब वह मोरी प्लसतर होने के कारण बंद हो गई थी। उसने सोचा, अगर प्लसतर सूख गया तो बच्चे मोरी के अंदर ही दम घुटने से मर जाएंगे। वह किसी तरह गिलहरी के बच्चों को बचाने के बारे में सोचने लगा कि गिलहरी के मासूम बच्चों को कैसे बचाया जाए? मोरी काफी ऊंची छत्त के साथ ऊपर बनी हुई थी। पंकज अभी बहुत छोटा था। उसके लिए छेद तक पहुंचना बहुत मुश्किल था। उसने सोचा कि वह राजमिस्त्री और मजदूरों से कह कर गिलहरी के बच्चे वाली मोरी को खुलवा देगा। राजमिस्त्री जब रोटी खाकर लौटे तो वह बोला, ‘अंकल जी वहाँ ऊपर बिल में गिलहरी के बच्चे हैं! प्लास्टर से मोरी बंद हो गई है!’
‘.... फिर हम क्या करें? गिलहरी के बच्चे ही तो हैं, और तो कुछ नहीं?’ मिस्त्री ने उसे बीच में रोकते हुए भद्दे अंदाज में हंस कह दिया। मिस्त्री की बात से पास खड़े मजदूरों में भी हँसी मच गयी। पंकज की सूरत रोने जैसी हो गई। वह कोई चारा ना चलता देख उदास मन से अपने पिता के पास आ गया। उसे जो मजदूर कुछ समय पहले काम करते अच्छे दिखाई पड़ रहे थे, अब वही मजदूर अभद्र बोल बानी के कारण बुरे-बुरे से लगने लगे थे। उसके पिता कुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे। आते ही वह नम्रता से बोला, ‘पापा!’ ‘यस बेटा जी?’ कहकर उसके पिता ने अखबार से ध्यान हटा लिया और उसके कंधे पर हाथ रख दिया। उसके पिता के मीठे बोल और अपने कंधे पर प्यार से प्रोत्साहित करने वाले हाथ ने उसे बोलने की हिम्मत दी। वह बोला, ‘पिता जी वहां पर एक छेद में गिलहरी के बच्चे हैं, उस छेद को राजमिस्त्री ने सीमेंट से बंद कर दिया है। बच्चे अभी भी अंदर हैं, विचारे मर जाएंगे!’ पापा पंकज की बात की हकीकत को समझ गए। वह बोले, ‘चलो बेटा, हम चलते हैं.... चलो, चलो...!’ तब उसके पिता उठे और उसके साथ दूसरे कमरे में चले गए। पंकज ने अपनी छोटी सी उंगली से इशारा किया और बच्चों के बारे में बता दिया। पापा ने पास पड़ी लकड़ी की सीढ़ी को दीवार से सटा दिया उन्होंने राजमिस्त्री से प्लास्टर हटाने को कहा। फिर डंडे से दरार को कुरेदकर उसमें फंसा गीला मसाला भी निकाल दिया। गिलहरी के बच्चे बिल्ल से बाहर निकल आए। वह पहले से बेचैन घूम रही अपनी मां के साथ वहां से बाहर चले गए। राजमिस्त्री और मजदूर चुपचाप खड़े पंकज की दया के बारे में सोच रहे थे। पंकज के पिता ने मिस्त्री को संबोधित करते हुए कहा, ‘मिस्त्री साहब ऊपर फिर से प्लास्टर लगा देना!’ ‘हाँ’ कहकर मिस्त्री तस्ले में रखे मसाले को कांडी से हिलाने लगा। पंकज अपने पिता के साथ किसी विजेता की तरह मुस्कुराते हुए से बाहर निकल आया। उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा किसी खिले हुए गुलाब की पंखुड़ी के जैसा लग रहा था। -मो. 9654036080