वास्तुकला का जादू है नीली मस्जिद

 

मैं इस्तांबुल (तुर्किए) के सुल्तान अहमत क्षेत्र में हूं। यहां आकर यह तो संभव ही नहीं था कि नीली मस्जिद को देखा न जाये। सन् 1616 में निर्मित यह ऐतिहासिक मस्जिद आज भी एक पूजास्थल के रूप में इस्तेमाल होती है, लेकिन पर्यटकों के लिए भी विशेष आकर्षण है। इस मस्जिद में सभी के लिए प्रवेश नि:शुल्क है और चूंकि इसमें आज भी नियमित नमाज़ होती है इसलिए दिन में पांच बार आधा-आधा घंटे के लिए गैर-मुस्लिम पर्यटकों के लिए यह बंद रहती है, शुक्रवार को जुमे की नमाज़ के लिए दोपहर में 90 मिनट के लिए बंद रहती है।
सुबह के लगभग 10 बज रहे हैं, मैं नीली मस्जिद के पश्चिमी द्वार पर हूं। सभी को इसी द्वार से अंदर प्रवेश करना होता है। मस्जिद में प्रवेश करने से पहले सभी की तरह मैंने भी अपने जूते उतारकर एक प्लास्टिक बैग में रख लिए जोकि प्रवेश द्वार पर मुफ्त में उपलब्ध कराया गया था। महिला पर्यटकों को अपने सिर के बाल ढकने के लिए एक दुपट्टा नुमा कपड़ा मुफ्त में दिया गया। नीली मस्जिद में शॉर्ट्स पहनकर प्रवेश वर्जित है, सभी को फुल पैंट (या लॉन्ग स्कर्ट) पहनना ज़रूरी है। मस्जिद से बाहर निकलते समय प्लास्टिक बैग को डस्टबिन में डालना होता है और महिलाओं को हेड-कवर ड्यूटी स्टाफ को वापस करना होता है। एक अन्य शर्त यह है कि मस्जिद के भीतर खामोश रहना होता है। आप फ़्लैश फोटोग्राफी का प्रयोग भी नहीं कर सकते हैं। चूंकि यह पूजा स्थल भी है इसलिए जो लोग नमाज़ अदा कर रहे हों उन्हें घूरने या उनकी तस्वीर खींचने से बचें।
हां, एक बात का और ध्यान रखें। उन लोगों से बचें या उन्हें अनदेखा कर दें जो आपको बिना लाइन के नीली मस्जिद में अंदर ले जाना ऑफर करें। यह लोग आपको कोई चीज़ बेचने का प्रयास करेंगे या आपको किसी शॉपिंग स्थल पर ले जायेंगे। बेहतर तरीका लाइन में खड़े होकर मस्जिद में प्रवेश करने का है, जैसा कि अन्य पर्यटक करते हैं। लाइन अगर लम्बी है तो भी चिंता न करें क्योंकि यह बहुत तेज़ चलती है। नीली मस्जिद को तुर्की भाषा में सुल्तानअहमत कामी भी कहते हैं। खलीफा अहमद-1 के शासन के दौरान इसका निर्माण 1609 व 1616 के बीच हुआ था। कुछ अन्य मस्जिदों की तरह इसमें भी इसके संस्थापक का मज़ार, एक मदरसा व एक होस्पिस (मृत्यु के निकट पहुंचने वाले व्यक्तियों की देखभाल व सेवा करने के लिए छोटा सा अस्पताल) है।  
यह तुर्किये (तुर्की) की इकलौती मस्जिद है जिसमें छह मीनारें हैं। हर एक मीनार 64 मीटर ऊंची है। जब इसका निर्माण पूरा होने के बाद खलीफा को इसमें छह मीनारें होने का पता चला तो वह बहुत नाराज़ हुए क्योंकि उस समय तक केवल मस्जिदे हराम में ही छह मीनारें थीं, जिसकी वह बराबरी नहीं करना चाहते थे। अब नीली मस्जिद का निर्माण पूरा हो चुका था, इसलिए समस्या का हल यह निकाला गया कि मस्जिदे हराम की मीनारों में वृद्धि करते हुए उनकी संख्या सात कर दी गई। बहरहाल, नीली मस्जिद के मुख्य हॉल में पहुंचने पर मैंने देखा कि उस पर अनेक गुबंद हैं, जिनके बीच में एक केन्द्रीय गुबंद है जिसका व्यास 33 मीटर और ऊंचाई 43मीटर है। मस्जिद के अंदरूनी हिस्से की दीवारों पर हाथ से तैयार की गईं 20,000 टाइल्स लगी हैं, जोकि नीले रंग की हैं, जिसकी वजह से इसका नीली मस्जिद नाम पड़ा है। दीवारों के ऊपरी हिस्से पर रंग हुआ है। मस्जिद में शीशे की 200 से अधिक खिडकियों से प्राकृतिक हवा व रोशनी अंदर आ रही थी जिससे उसकी सुंदरता में चार चांद लग गये थे। मस्जिद की दीवारों पर कुरान की आयतें लिखी हुई हैं, जिन्हें अपने समय के विख्यात खआ सैय्यद कासिम ने लिखा है। मेरे गाइड ने मुझे बताया कि नीली मस्जिद की वास्तुकला की एक विशेष बात यह है कि जुमे की नमाज़ से पहले जब इमाम अपना साप्ताहिक खुतबा (उपदेश) देता है तो उसे इस विशाल मस्जिद के हर कोने से आसानी से सुना व देखा जा सकता है।
मस्जिद की हर मीनार में तीन छज्जे हैं। कुछ समय पहले तक मुअज्जन (अज़ान देकर नमाज़ के लिए पुकारने वाला) मीनार पर चढ़कर ही अज़ान देता था, लेकिन आजकल इस काम के लिए आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण प्रयोग किये जाते हैं, जिससे पुराने शहर की हर गली कूचे में अज़ान सुनायी देती है। रात के समय रंगीन इलेक्ट्रॉनिक कुमकुमे इस महान, सुंदर व दिलकश नीली मस्जिद की ख़ूबसूरती में इज़ाफा करते हुए दोनों श्रद्धालुओं व पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सच, अगर आपने इस्तांबुल में नीली मस्जिद को नहीं देखा तो आपने कुछ नहीं देखा। यह मस्जिद दुनिया की महान सल्तनतों में से एक का जीता जागता इतिहास है, लेकिन इससे भी बढ़कर यह दोनों श्रद्धालुओं व पर्यटकों को समान रूप से आध्यात्मिक सुख भी प्रदान करती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर