मूर्ख जुलाहा

 

आज से बहुत समय पहले की बात है, एक जुलाहे को घोड़ा खरीदने की धुन सवार हुई। चूंकि एक घोड़े की कीमत कम से कम सौ रुपये थी, इसलिए उसने अपने सारे बुने हुए कपड़े पचास रुपये में बेच दिये। बाकी के पचास रुपये अपनी मां से लड़-झगड़कर ले लिये और अपने एक दोस्त के साथ उस स्थान पर पहुंचा जहां सुंदर-सुंदर घोड़े बिकने आते थे।
वहां उन्होंने कई लोगों से घोड़ा खरीदने के संबंध में बातचीत की। जल्दी ही वे कुछ धूर्त लोगों के चुंगल में फंस गये। उन धूर्तों को यह समझने में देर नहीं लगी कि घोड़े के खरीददार जुलाहे होने के साथ ही बुद्धू भी है। जुलाहों का कृपा पात्र बनने में उन धूर्तों को अधिक समय नहीं लगा। धूर्तों ने जुलाहों को सलाह दी कि वे घोड़े की जगह एक अण्डा खरीद लें। अण्डे से जल्दी ही एक सुंदर बच्चा निकलेगा। उन्होंने जुलाहों को यह भी विश्वास दिलाया कि वे उन्हें इस संबंध में हर संभव मदद देंगे। उन्होंने कहा, ‘यदि तुम भूरे रंग का घोड़ा चाहते हो तो हम तुम्हें वैसा ही अण्डा खरीदवा देंगे, जिससे कि भूरे रंग का बच्चा निकलेगा। इस तरह तुम्हें बहुत ही कम कीमत पर एक अच्छा घोड़ा मिल जाएगा।’
जुलाहे झट राजी हो गये। एक कद्दू पर सुंदर कपड़ा लपेटकर खूब सावधानी पूर्वक जुलाहों के सामने पेश किया गया। जल्दी ही सौदा पक्का हो गया और भुगतान कर दिया गया। धूर्तों ने जुलाहों को यह सलाह दी कि वे अण्डा अपने कंधों पर ढोकर लें जाएं और किसी भी स्थिति में उसे जमीन पर न रखें।
जुलाहे बहुत खुश थे। अंडा लेकर वे अपने गांव की ओर चल पड़े। दोपहर को उनकी इच्छा किसी पेड़ के नीचे विश्राम करने की हुई। इसलिए उन्होंने पेड़ के पास ही केवड़े की झाड़ पर वह अंडा रख दिया और पेड़ के नीचे बैठकर खाना खाने लगे।
दुर्भाग्यवश उस अण्डे का बोझ उस झाड़ के लिए कुछ अधिक ही था। अत: वह अण्डा जमीन पर गिर पड़ा।
वह भारी कद्दू धमाके के साथ जमीन पर गिरा था, जिससे डरकर वहीं झाड़ी में छिपकर बैठी एक लोमड़ी भागी।
वे दोनों लोमड़ी को घोड़े का बच्चा समझकर उसके पीछे दौड़ पड़े। लेकिन वह लोमड़ी जल्दी ही उनकी नज़रों से ओझल हो गयी। (सुमन सागर)