झूठ के मेरे प्रयोग !

 

दुनिया में झूठ से बढ़कर कुछ भी नहीं ‘साधु-महात्माओं से पूछ लो। वे छूटते ही कहेंगे, ये सारा संसार झूठा, रिश्ते-नाते झूठे, धन-सम्पत्ति झूठा! बुद्ध ने तो कह दिया ‘दु:खमसत्यम, जगन मिथ्या।’ इस तरह सब प्रबुद्ध जनों ने जगत में झूठ की अपार महिमा का बखान किया! जो मदबुद्धि इसके बाद भी झूठ के आगे सत्य की महिमा का बखान करता है और उसे बड़ा बताता है, उसके लिए हम मान लें कि वह डबल निमोनिया के ताप में आंय-बांय-सांय बक रहा है!
हर एक देश में आज राजनीति सर्वोपरि है। राजनीति में झूठ सर्वोपरि है। बिना झूठ के राजनीति हो ही नहीं सकती। जब राजनीति के सॉफ्ट ड्रिंक में झूठ का फ्लेवर ज्यादा हो जाए तो उसे कूटनीति कहते है। नेतागण विकास की जो माया रचते हैं! रोटी, कपड़ा और मकान का जो स्वप्न दिखाते हैं, वह नब्बे प्रतिशत झूठ ही तो होता है। हम उस झूठ के ग्लैमर में हर पांच साल बाद बड़ी आशा के साथ उन्हें हंसते-मुस्कुराते अपना बहुमूल्य वोट दे आते हैं! फिर उनके झूठ को सच मान सीप की तरह चोंच खोले विकास के स्वाति नक्षत्र वाली वर्षा की बूंद की कामना करते रहते हैं! 
महाभारत में कुरुक्षेत्र का युद्ध, झूठ बोलकर ही तो जीता गया था। भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा नाम के हाथी को भीम के हाथों पहले मरवा दिया फिर युद्ध-भूमि में द्रोणाचार्य के पास युधिष्ठिर को भेजकर ‘अश्वत्थामा तो का जोरदार झूठा नारा लगवा, द्रोणाचार्य को प्राण छोड़ने पर विवश कर दिया। द्रोणाचार्य जीते रहते तो क्या पांडवों को विजय मिल पाती? ये है एक ‘फेक न्यूज’ यानी झूठे समाचार का कमाल।
बिनाझूठदेव की पूजा के कोई सफल नेता बन नहीं सकता! बड़ा नेता बनने के लिए बड़ा झूठा बनना जरूरी है! जिसे झूठ की महिमा का ज्ञान न हो, वह कदापि अच्छा और सफल जनप्रतिनिधि बन ही नहीं सकता! जो जितना बड़ा झूठा, वह उतना बड़ा सफल नेता! इस देश में सच बोलने का मतलब है, अपने पाँव पर खुद कुल्हाड़ी मारना। सच बोलने वाला ज्यादा से ज्यादा मास्टर बन जाएगा, परन्तु जो झूठ बोलने की कला में माहिर होगा वह एम.एल.ए., एम.पी. से प्रगति करता एक दिन मंत्री बनकर बैकुंठ का स्वर्गीय सुख जरूर भोगेगा!
जो गुरुजन अपने शिष्यों को सदा सत्य बोलने की शिक्षा देते हैं वे अव्यवहारिक किस्म के जीव हैं। वे अपना जीवन तो बर्बाद कर ही चुके, अब शिष्यों को भी अंधे कुएं में धकेलना चाहते हैं। मेरा तो मानना है की विद्यालयों में छात्र-छात्राओं को भूगोल, इतिहास, रसायन शास्त्र, भौतिक-शास्त्र, राजनीति-शास्त्र के साथ झूठ-शास्त्र का भी सांगोपांग ज्ञान दिया जाना चाहिए। इसमें झूठ बोलने की कला के साथ उसके तात्कालिक लाभ के बारे में बताया जाए। मीठा-मीठा, मनोहर झूठ कैसा बोला जाता है? झूठ को सत्य की तरह बोलते वक्त झूठे की भाव-भंगिमा कैसी होनी चाहिए? एक झूठ को बार-बार बोलकर सत्य की तरह कैसे स्थापित किया जा सकता है? झूठ बोल-बोलकर पब्लिक को मूर्ख बना, उसके कीमती वोट को कैसे झटका जा सकता है? जनता से झूठ बोल-बोलकर नेता और फिर मंत्री बनने के कौन-कौन से गुर हो सकते हैं ? 
यदि हम विद्यालय-महाविद्यालयों के सिलेबस में झूठ-शास्त्र को शामिल करवा सके तो हमारा देश झूठों का सर्वश्रेष्ठ देश होगा! झूठ बोल-बोलकर हम विदेशों से अकूत आर्थिक सहायता ले सकेंगे। इस तरह हमारे इस प्यारे देश को, विकास की राह में हनुमान छलांग मारकर एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने से कोई माई का लाल रोक नहीं सकेगा। 
ऐसा हो सकता है कि गांधी और बुद्ध का देश होने के कारण हमारे देश में तकनीकी रूप से झूठ बोलने का ज्ञान देने वाले कुशल अध्यापक-प्राध्यापक न मिलें। इसके लिए हम चीन और पाकिस्तान जैसे देशों से सम्पर्क कर वहां के श्रेष्ठकोटि के परम झुठेरे विद्वानों को कुछ रूपये खर्च करके विसिटिंग प्रोफेसर के रूप में अपने होनहार छात्र-छात्राओं के प्रशिक्षण के लिए बुला सकते हैं ! 
(सुमन सागर)