जल्दबाज़ी में लिया गया फैसला

भगवंत मान के नेतृत्व वाली पंजाब सरकार की नाकामियों वाले पहले से ही लम्बे हो रहे क्रम को ज़ीरा की शराब फैक्टरी को बंद करने के मुख्यमंत्री के जल्दी में किये गये ऐलान ने और भी लम्बा कर दिया है। इस फैक्टरी को निकट के गांव में बोर करने पर निकले गंदे पानी के लिए फैक्टरी को जिम्मेदार मानते हुए संबंधित गांव और अन्य भी कई गांवों के लोगों ने फैक्टरी के सामने धरना देकर बंद करवा दिया था। फैक्टरी में 5000 लोगों को रोज़गार मिला हुआ था। यह 300 करोड़ रुपये की लागत से वर्ष 2006 को शुरू की गई थी। फैक्टरी का काम बंद होने पर प्रबंधकों ने हाईकोर्ट के पास पहुंच की। उसके बाद हाईकोर्ट ने सरकार को यह आदेश दिया कि यह धरना फैक्टरी से 300 मीटर की दूरी पर लगाया जाये।
धीरे-धीरे इसमें कई किसान यूनियनें और राजनीतिक पार्टियां जुड़ गईं जिसको देखते पिछले वर्ष 18 अगस्त को नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की मानिटरिंग कमेटी के सदस्यों के साथ राज्य सभा के सदस्य बलबीर सिंह सीचेवाल वहां पहुंचे और वहां पानी के नमूने लिए गये। उसके बाद 7 सितम्बर को केन्द्रीय पर्यावरण नियंत्रण बोर्ड और संबंधित डी.सी. ने मौके का निरीक्षण किया। इन सब ने फैक्टरी से प्रदूषण न होने की बात कही। इन रिपोर्टों के आधार पर ही हाईकोर्ट ने 20 अक्तूबर को पंजाब सरकार को फैक्टरी न चलने देने संबंधी 5 करोड़ रुपये देने के आदेश दिये और उसके बाद धरना न उठा सकने के कारण सरकार को 15 करोड़ रुपये और जुर्माना किया गया। यह 20 करोड़ की राशि पंजाब सरकार को देनी पड़ी परन्तु धरनाकारियों द्वारा इसके बावजूद अपना विरोध जारी रखने के कारण और सरकार द्वारा इस संबंधी हाथ खड़े करने के बाद हाईकोर्ट द्वारा गठित जस्टिस आर.के. नेहरू (रि.) पर आधारित कमेटी बनाई गई जिसने फैक्टरी को हो रहे नुकसान तथा अन्य विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए मालब्रोस इंटरनैशनल प्राइवेट लिमिटेड मन्सूर कलां की फैक्टरी का दौरा किया। कमेटी सदस्य एडवोकेट बबर भान सहित अन्य सरकारी तथा गैर-सरकारी सदस्यों के अतिरिक्त प्रशासन के उच्चाधिकारियों ने जस्टिस नेहरू तथा कमेटी सदस्यों द्वारा क्षेत्र के लोगों, किसान यूनियनों, किसानों के वकीलों तथा फैक्टरी के अधिकारियों के साथ लम्बा विचार-विमर्श किया और उनके बयान कलमबद्ध किये तथा कमेटी ने कहा कि वह अपनी समूची रिपोर्ट हाईकोर्ट को सौंप देगी। परन्तु पूरा मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद मुख्यमंत्री भगवंत मान द्वारा पहले ही बंद पड़ी फैक्टरी को बंद करने के एकाएक आदेश किस आधार पर दिये गए, इस बात की समझ नहीं आई? चाहे इस आदेश का प्रदूषण की समस्या को लेकर कई किसान यूनियनों के नेताओं ने स्वागत किया है। कई राजनीतिज्ञों ने भी इसका समर्थन किया है। चाहे जांच-पड़ताल में संबंधित फैक्टरी से प्रदूषण होने की अभी पुष्टि नहीं हुई और हाईकोर्ट द्वारा बनाई गई कमेटी अभी इस संबंधी जांच कर रही है और उसकी ओर से रिपोर्ट अभी दी जानी है। इस संदर्भ में मुख्यमंत्री द्वारा जल्दबाज़ी में की गई घोषणा की समझ नहीं आती। 
जहां तक प्रदूषण का संबंध है, इसे फैलाने में आज बढ़-चढ़ कर हमारे सभी पक्ष ही शामिल हैं। इसीलिए ही अक्सर कई-कई महीने पंजाब से लेकर दिल्ली तक का आसमान काला हो जाता है। उस समय कोई प्रभावशाली कार्रवाई करने के स्थान पर पंजाब की पूर्व सरकारें तथा मौजूदा सरकार हाथ पर हाथ रख कर बैठी रहती हैं। अभी तक भी सरकार प्रत्येक पक्ष से फैलाए जा रहे प्रदूषण पर किसी प्रभावशाली ढंग से नियंत्रण करने के लिए कोई पुख्ता योजना सामने नहीं ला सकी। परन्तु सरकार की ऐसी कार्रवाइयों ने आम लोगों को, उद्योगपतियों को, व्यापारियों को तथा छोटे-मोटे व्यवसाय करने वाले लोगों को बेहद परेशानी में डाल दिया है। यह निर्णय लेने से पहले सरकार को और अधिक तथ्यों की जांच करने तथा पूरी प्रक्रिया का पालन करने की आवश्यकता थी। विशेषकर उच्च न्यायालय में चल रहे केस के पहलू पर भी विचार करना बनता था, परन्तु सरकार के निरर्थक बयानों तथा की जा रही नौटंकियां इस गम्भीर मामले का समाधान नहीं कर सकतीं। हां, इससे पहले ही आर्थिक तौर पर पूरी तरह थक चुके प्रदेश के शेष रहते प्राण अवश्य निकल सकते हैं। 
                —बरजिन्दर सिंह हमदर्द