साईबर अपराधों का फैलता जाल


देश में अपराध और आपराधिक जगत की एक नई प्रक्रिया ने न केवल देश के आम लोगों के लिए चिंता और परेशानियों की एक नई लहर पैदा की है, अपितु शासन और प्रशासन के लिए भी नई समस्याओं का द्वार खोला है। यह प्रक्रिया है साईबर अपराध अर्थात ऑन-लाइन धोखाधड़ी की। विज्ञान की उन्नति और तकनीक के विस्तार ने एक ओर जहां मनुष्य की ज़िन्दगी को काफी सरल और सहज करने में मदद की है, वहीं इसने इसी मानव के लिए अनेकानेक समस्याएं और परेशानियां भी खड़ी की हैं। नि:सन्देह रूप से इस प्रकार की घटनाओं में हाल के दिनों में हुई वृद्धि इसी वैज्ञानिक उन्नति और तकनीकी प्रसार का ही परिणाम है। ठगी और धोखाधड़ी की घटनाएं तो पहले भी होती रही हैं किन्तु इस प्रकार की ऑन-लाइन घटनाएं विगत दो-तीन दशकों के तकनीकी विस्तार के बाद ही सामने आना शुरू हुई हैं, और कि विगत एक-डेढ़ दशक से तो जैसे इस प्रकार की घटनाओं की बाढ़-सी आ गई है। यह समस्या कितना गम्भीर होती जा रही है, इसका प्रमाण इस एक प्रशासनिक रिकार्ड तथ्य से ही लगाया जा सकता है कि विगत वर्ष 2022 में इस प्रकार के लगभग एक लाख 84 हज़ार आपराधिक मामले दर्ज किये गये जबकि वर्ष 2018 में इनकी संख्या इनसे एक तिहाई कम पाई गई थी। यहां तक कि वर्ष 2021 में इन अपराधों की संख्या डेढ़ लाख के करीब थी।
नि:सन्देह इस प्रकार के साईबर आपराधिक मामलों में इतने बड़े स्तर की वृद्धि का एक बड़ा कारण देश की आबादी में अथाह वृद्धि का होना भी है। बहुत स्वाभाविक है कि आबादी के अनुपात से अपराध की संख्या भी अवश्य बढ़ेगी। तथापि, इस समस्या का बड़ा आधार देश में तकनीकी प्रसार और विस्तार में निहित प्रतीत होता है। यह एक बड़ा तथ्य है कि तकनीकी विस्तार में भारत भी आज विश्व के कुछ बड़े देशों की कतार में आ खड़ा हुआ है। भारत तकनीकी उत्पादों का एक बड़ा वैश्विक बाज़ार बन कर उभरा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा वर्ष 2016 में की गई मुद्राबंदी के बाद से देश में नकदी के ऑन-लाईन अथवा ई-मुद्रा के ज़रिये आदान-प्रदान में भारी वृद्धि हुई है। बैंकों में ए.टी.एम. के प्रचलन और यहां तक कि मोबाइल फोन के ज़रिये धन-राशि के लेन-देन ने बेशक जन-साधारण को बड़ी सुविधाएं दी हैं, किन्तु इस प्रणाली ने साईबर अपराधियों के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया है। इस प्रकार के अपराधों के प्रति देश के प्रशासनिक तंत्र की अज्ञानता और सरकारी अमले की अदूरदर्शिता के कारण भी  आपराधिक तत्वों के हौसले बुलन्द होते हैं।  सरकारों की ओर से आम लोगों में इस बाबत सतर्कता और जागरूकता पैदा किये जाने के यत्न भी विगत कुछ वर्षों से तेज हुए हैं। नई पीढ़ी के युवाओं ने इस समस्या के निदान हेतु स्वयं भी जागरूकता का दामन थामा है, तो भी इस धरातल के अपराधी भी ‘तू डाल-डाल, मैं पात-पात’ की कहावत के अनुरूप अपराध को सृजित करने के लिए नये-नये तरीकों का आविष्कार करते रहते हैं। स्थिति इतनी गम्भीर भी हुई है कि देश की सरकार ने कई मामलों को हल करने के लिए इंटरपोल की भी मदद ली है।
शिक्षा और ज्ञान के धरातल पर प्रतिशतता की कमी और जागरूकता के अभाव के कारण भी इस प्रकार के अपराधों में वृद्धि हुई है। यही कारण है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कम शिक्षित दर के कारण इन अपराधों की सूचि में पहले और दूसरे स्थान पर हैं। हालांकि देश की राजधानी दिल्ली इन दोनों प्रदेशों के बाद तीसरे स्थान पर आती है।  पंजाब बेशक इस प्रकार के अपराधों की सूचि के मामले में सातवें स्थान पर  है, परन्तु पंजाब में भी विगत पांच वर्षों में इस तरह के अपराधों की संख्या में तीन गुणा तक की वृद्धि दर्ज हुई है। यहां तक कि हिमाचल, चंडीगढ़ और जम्मू-कश्मीर भी इन अपराधों से अछूते नहीं हैं हालांकि यहां ऐसे अपराध नाममात्र को ही हुए हैं। तथापि, हरियाणा पंजाब से दो पायदान ऊपर पाया गया है। इस प्रकार के अपराधों एवं इनसे पीड़ित लोगों पर किये गये एक सर्वेक्षण से यह भी आश्चर्यजनक तथ्य प्रकाश में आया है कि शिक्षित वर्ग के लोगों का एक बड़ा प्रतिशत वर्ग भी इन शातिर अपराधियों का बड़ा शिकार बनते आया है। इसका कारण यह भी बताया जाता है कि प्राय: शिक्षित वर्ग ही बैंकिंग लेन-देन हेतु कम्प्यूटर और मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं। 
हम समझते हैं कि इस प्रकार के साईबर आपराधिक जगत से बचाव हेतु एकमात्र उपाय निरन्तर सतर्कता और जागरूकता को अपनाना ही हो सकता है। नि:सन्देह सरकारों, प्रशासनिक तंत्र और खास तौर पर रिज़र्व बैंक की ओर से इस हेतु बार-बार और निरन्तर यत्न किये जाते रहते हैं, परन्तु जन-साधारण के धरातल पर स्वयं की जागरूकता भी उतना ही ज़रूरी है। थोड़े से बड़ा हासिल करने की प्रवृत्ति और अनजान लोगों से मुफ्त की रेवड़ियों का लालच भी इस प्रकार के अपराधों की ज़मीन तैयार करता है। अपरिचित, अज्ञात फोन आवाज़ों से यथासम्भव संकोच किया जाना चाहिए।  रिज़र्व बैंक की ओर से इस प्रकार के अपराधों से बचाव हेतु एक विशिष्ट टैलीफोन सेवा भी उपलब्ध कराई गई है। रिज़र्व बैंक समय-समय पर इस हेतु निर्दिष्ट सूचनाएं भी प्रसारित करता रहता है।  सरकारों और प्रशासनिक तंत्र की लापरवाही का आलम तो बेशक वही बाबा आदम के युग वाला ही है। अक्सर ऐसे अपराधों के प्रति सरकारें कुम्भकर्णी नींद सोई रहती हैं। इसका बड़ा प्रमाण इस तथ्य से साक्षात मिल जाता है कि 2017 से 2021 के बीच लगभग दो लाख मामलों में से केवल 2615 लोगों को दंड और न्याय के अधीन लाया जा सका है।  ऐसी स्थिति में, बेशक आपराधिक वर्ग जहां नये-नये तरीकों को ईजाद करता है, किन्तु हम समझते हैं  प्रत्येक सम्भव तरीके की सतर्कता एवं जागरूकता अपना कर ही इस आपराधिक जाल से बचा जा सकता है।