आधी सदी पहले के अंडमान व निकोबार द्वीप 

 

मैं अप्रैल, मई 1973 में एक महीना अंडमान व निकोबार रह कर आया था। वर्तमान सरकार ने वहां के 21 द्वीवों का नाम का परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखने की घोषणा की है। इसका वहां के निवासियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा, यह तो समय ने बताना है, परन्तु इस समाचार ने मुझे अपनी आधी सदी पहले वाली यादगारी यात्रा याद करवा दी है। वहां की खूबसूरती तथा वहां के निवासियों की समस्याएं। न अधिक गर्मी व न सर्दी। न धूल-मिट्टी, न चोरी-चकारी। न मंगते-भिखारी और न ही जात-पात का विभाजन।
समुद्री जहाज़ से वहां पहुंचने में तीन दिन तथा रातें लगती हैं। इसमें मेरी मुलाकात कर्नल दूबे नामक उस व्यक्ति से भी हुई जो ग्रेट निकोबार के निचले कोने कैपबेल्वे में आदिवासियों के लिए 56 किलोमीटर लम्बी सड़क बनवा रहा था तथा लक्ष्मण सिंह के साथ भी जो कई द्वीपों का सहायक कमिश्नर रह चुका था। उनका विचार था कि यहां के लोग बड़े सुस्त हैं। किसी को कोई जल्दबाज़ी नहीं। उनकी जीवनशैली ही ऐसी है। 
फिर जब हमारे जहाज़ ने पूरी रफ्तार पकड़ ली तो सुबह के सूर्य की किरणों से पानी में सफेद झाग पैदा होने लगी। सूर्य की किरणें इस झाग के आकार में बढ़ौतरी कर रही थीं। इस आकार के बड़े स्वरूप को सफेद घोड़े कहा जाता है। इनका जवान होना सागर के गुस्से का सूचक था। इस रोष के कारण 98 प्रतिशत यात्री उल्टियां करने लगे। डाक्टरों द्वारा वितरित की जा रही एवोमीन भी असर नहीं कर रही थी। कर्मचारी नाक पर पट्टी बांध कर पोंछों से सफाई करते थे तो अगला ग्रुप तैयार हो जाता था। किसी कारण मैं बचा रहा। डैक्क पर गया तो बादल सूर्य की पेश नहीं जाने देते थे। परन्तु सूर्य भी कम नहीं था। बादलों को चकमा देकर पुन: निकल आता। 
अगली सुबह लक्ष्मण सिंह ने इशारा करके रॉस नामक द्वीप, वहां की सैलुलर जेल व टुरिस्ट होम ही नहीं, लैफ्टिनैंट ब्लेयर द्वारा निर्मित बालरूम, बुच्चड़खाना, बेकरी, काल-कोठरियां, अस्पताल तथा चीफ कमिश्नर की कोठी के खंडहर भी दिखाए, जिन्हें 1929 के भूकम्प ने तबाह कर दिया था। वह कोहलू भी जिसे 300 कैदी बारी-बारी चला कर तेल निकालते थे। इन कैदियों से इस बेआबाद धरती को आबाद करने का काम भी लिया जाता था, जो इमारत लकड़ी, रबड़, कॉफी तथा गर्म मसालों का खज़ाना था। 
युगों-युगों से इन द्वीपों पर आदिवासी मानव रहते रहे हैं। सिर के बाल घुंगराले, रंग के काले, नंग-धड़ंग तथा पत्थर पर पत्थर मार कर आग जलाने वाले। माचिस की आमद ने उन्हे सुस्त भी बनाया और भारत वासियों के गुलाम भी। वैसे अभी तक 225 द्वीपों में से सिर्फ तीन दर्जन द्वीप आबाद हुए हैं। इममें से 21 द्वीपों के नाम बदलना वहां के स्थाई निवासियों की विरासत के अस्तित्व को समाप्त करने से कम नहीं। पंजाब के जलियांवाला बाग जिसे नवीकरण का नाम देकर भावी पीढ़ियों की आंखों में धूल झोंकी गई थी। इस सरकार द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह जी के चार साहिबज़ादों की शहीदी को छोड़ तक सिर्फ बहादुरी नाम देकर व्यापक स्तर पर ‘बाल वीर दिवस’ मनाना भी इसी क्रम में ही आता है। 
1973 वाली सरकार ऐसे नहीं करती थी। वह आदिवासियों के लिए सिर्फ सड़कें ही नहीं बनाती थी, अन्य कल्याणकारी कार्य भी करती थी।  उस यात्रा के समय मुझे बिमला नामक समाज सेविका भी मिली जिसे इस समय की सरकार ने एक विशेष मिशन के तहत वहां भेजा था। अंडमानियों की नस्ल का खात्मा रोकने के लिए। 
स्ट्रेट द्वीप में एक बीए नाम आदिवासी का परिवार था। उसकी दो बेटियां थीं तथा 6 नाती-नातिन। एक नातिन का नाम सुरमई था। जिरके नामक आदिवासी सुरमई के साथ शादी करके इस नस्ल को बचाए रख सकता था, परन्तु सुरमई अधिक आयु वाले जिरके के साथ विवाह करवाने को नहीं मान रही थी। कबीले के बेऔलाद राजा के हस्तक्षेप करने पर भी नहीं, जो जिरके की बेटी को अपनी बना कर उसका पालन कर रहा था। भातर सरकार द्वारा भेजी गई समाज सेविका अपने पति सहित वहां इसलिए पहुंची थी कि बिमला अपनी कला-कौशलता से दोनों परिवारों को जिरके-सुरमई गठबंधन के लिए मनाए। उसे सफलता मिली थी या नहीं, मैं नहीं जानता। परन्तु यह जानता हूं कि 1973 वाली सरकार इतनी ड्रामेबाज़ नहीं थी, जितनी उन द्वीपों को परमवीर विजेताओं का छुनछना देने वाली। उन्होंने इन नामो से क्या लेना जो उस मिट्टी के नहीं और न ही कभी उन में विचरण करते हैं। निंदर घुगियानवी की नियुक्ति 
महाराष्ट्र की महात्म गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी यूनिवर्सिटी वार्धा ने पंजाबी के प्रसिद्ध नौजवान लेखक निंदर घुगियानवी को यूनिवर्सिटी की रैज़ीडैंट राइटर चेयर पर विज़िटिंग प्रोफैसर नियुक्त किया। अब हमारा निंदर उस यूनिवर्सिटी की हिन्दी साहित्य संस्कृति तथा कला विभाग के विद्यार्थियों को पंजाबी भाषा तथा कला से संबंधित लैक्चर दिया करेगा। इस चेयर पर विराजमान होने वाले रैज़ीडैंट लेखकों की संख्या बीस से अधिक है परन्तु निंदर घुगियानवी उनमें से सबसे कम आयु का है। इस प्रकार जैसे भारतीय साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जाने वाला शिव कुमार बटालवी था। वार्धा यूनिवर्सिटी द्वारा इस प्रकार से सम्मानित किये जाने वाले लेखकों में पदम विभूषण हबीब तनवीर भी हो गुज़रा है। 
इधर निंदर घुगियानवी एम.एस. रंधावा द्वारा स्थापित की पंजाबी आर्ट्स कौंसिल चंडीगढ़ का मीडिया कोआर्डिनेटर भी है। आशा की जा सकती है कि आगामी समय में आदान-प्रदान भी होगा। यदि वहां महात्मा गांधी का नाम बोलता है तो यहां एम.एस. रंधावा का!
अंतिका
—मिज़र्ा गालिब—
मंज़र एक बुलंदी पर और हम बना सकते
काश कि इधर होता अर्श से मकां अपना