अडानी प्रकरण : उल्टी पड़ गयीं सब तदबीरें

विश्व कॉर्पोरेट जगत में इस समय भारतीय उद्योग जगत के अडानी समूह को लेकर कोहराम मचा हुआ है। नाथन एंडरसन द्वारा 2017 में गठित हिंडनबर्ग रिसर्च नामक वित्तीय शोध करने वाली एक प्रतिष्ठित संस्था है जोकि  इक्विटी, क्रेडिट और डेरिवेटिव मार्किट के आंकड़ों का विश्लेषण करती है। हिंडनबर्ग रिसर्च को कॉरपोरेट जगत की गतिविधियों के बारे में शोध व इनका खुलासा करने के लिए जाना जाता है। इसका नाम ‘हिंडनबर्ग’ उस आपदा पर आधारित है, जो 1937 में तब हुई थी जब हिंडनबर्ग नामक एक जर्मन यात्री हवाई पोत में आग लग गई थी, जिसमें 35 लोग मारे गए थे। हिंडनबर्ग रिसर्च का मुख्य कार्य यह पता करना है कि शेयर मार्किट में कहीं गलत तरीके से पैसों की हेरा-फेरी तो नहीं हो रही है? क्या कोई कंपनी एकाउंट मिसमैनेजमेंट की आड़ में स्वयं को हकीकत से बड़ा तो नहीं दिखा रही है और यह भी कि कहीं कोई कंपनी केवल अपने मुनाफे के लिए शेयर मार्किट में गलत तरीकों से दूसरी कंपनियों के शेयर को बेट लगाकर उन्हें क्षति तो नहीं पहुंचा रही है? इसी हिंडनबर्ग ने गत 25 जनवरी को अडानी गु्रप के संबंध में 32 हज़ार शब्दों की एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के निष्कर्ष में अडानी समूह के जवाब के लिये 88 प्रश्नों शामिल किये गये थे। इसी रिपोर्ट में हिंडनबर्ग रिसर्च ने यह दावा किया है कि यह अडानी समूह दशकों से शेयरों के हेरफेर और अकाउंट की धोखाधड़ी में शामिल है। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि तीन साल में लगातार शेयरों की कीमतें बढ़ने से अडानी समूह के संस्थापक गौतम अडानी की संपत्ति एक अरब डॉलर से बढ़कर 120 अरब डॉलर हो गई है। और इसी दौरान समूह की 7 कंपनियों के शेयर औसत 819 प्रतिशत बढ़े हैं। इसी रिपोर्ट में यह आरोप भी लगाया गया है कि मॉरीशस से लेकर संयुक्त अरब अमीरात तक ‘टैक्स हेवन’ देशों में अडानी परिवार की कई मुखौटा कंपनियों का विवरण है। हिंडनबर्ग रिसर्च के अनुसार इनका उपयोग भ्रष्टाचार, मनी लांड्रिंग के लिए किया गया। इन मुखौटा कंपनियों के ज़रिए फंड की हेराफेरी भी की गई। 
 हिंडनबर्ग रिसर्च द्वारा अडानी समूह पर लगाये गये आरोपों व इस पर किये गये रहस्यमयी खुलासे के बाद अडानी साम्राज्य का पतन कुछ ऐसे हुआ कि विश्व अर्थ जगत में दिन दूनी रात चौगुनी की दर से बुलंदी पर पहुंच कर विश्व के तीसरे व दूसरे नंबर तक पहुँचने वाले अडानी समूह प्रमुख गौतम अडानी को न केवल अपनी कंपनियों में भारी शेयर गिरावट का सामना करना पड़ा बल्कि वे विश्व के दस प्रमुख अमीरों की सूची से भी बाहर हो गये। अडानी को कॉर्पोरेट जगत में अपनी साख बचाने के लिये अपनी कम्पनी प्रवक्ता के अतिरिक्त स्वयं भी सफाई देनी पड़ी। अडानी को अपना एफ.पी.ओ. भी वापस लेना पड़ा। और इंतेहा तो यह कि अपनी ही गलतियों व अनियमिताओं के चलते अपनी साख पर बड़ा हमला होते देख अडानी को ‘राष्ट्रवाद’ के नकाब में भी अपना मुंह छुपाने की असफल कोशिश करनी पड़ी। परन्तु राष्ट्रवाद की आड़ लेने का भी अडानी फार्मूला उस समय उल्टा पड़ गया जबकि हिंडनबर्ग ने चीन के एक विवादित व्यवसायी चांग चुंग लिंग के अडानी समूह से गहन संबंधों का पर्दाफाश करते हुये इन संबंधों पर भी सवाल खड़े किये और कहा कि धोखाधड़ी को राष्ट्रवाद से नहीं ढक सकते।  
यदि हम अडानी के पिछले मात्र एक दशक की उड़ान पर नज़र डालें तो देखेंगे कि 2012 से 2014 के बीच जिस समय नरेंद्र मोदी को भाजपा ने चुनाव अभियान समिति का प्रमुख बनाया था उन दिनों मोदी, गौतम अडानी का विशेष विमान लेकर पूरे देश का दौरा करते दिखाई देते थे। 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद यही गौतम अडानी, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ कई बार विमान में विदेश यात्रायें करते दिखाई दिये। पिछले दिनों श्रीलंका में नरेंद्र मोदी के दबाव में अडानी को विद्युत् संबंधी बड़ा ठेका देने का रहस्योद्घाटन भी हुआ। दो वर्ष पूर्व तीन कृषि क़ानूनों के विरुद्ध चले किसान आंदोलन की जड़ में भी कथित तौर पर सत्ता का अडानी प्रेम बताया जा रहा था। किसानों का आरोप था कि सरकार इन काले कानूनों के द्वारा जहां किसानों की ज़मीनें हड़पना चाह रही है, वहीं आम लोगों के पेट की रोटी भी ‘अडानी की तिजोरी’ में कैद करना चाहती है। केंद्रीय सत्ता व अडानी की जुगलबंदी का एक और उदाहरण देखिये। एन.डी.टी.वी. जोकि पत्रकारिता का दायित्व निर्वाहन करने वाला देश का एकमात्र चैनल था, जो सत्ता से सवाल पूछने का साहस करता था। अडानी ने केवल उस चैनल का मुंह बंद करने के लिये टी.वी. चैनल का स्वामित्व ही खरीद लिया। निश्चित रूप से यह उस सत्ता के प्रति अडानी की वफादारी नहीं तो और क्या है जिसने मात्र दस वर्षों में अडानी के साम्राज्य को फर्श से अर्श तक पहुंचा दिया?
 अडानी-सत्ता की जुगलबंदी को लेकर विपक्ष हमेशा हमलावर रहता है। विपक्षी दलों के नेता कहते रहते हैं कि भारत में एक नहीं बल्कि एक हज़ार अडानी चाहिए। परन्तु सरकार केवल एक ही अडानी पर ही क्यों मेहरबान रहती है, यह अडानी-मोदी के निजी संबंधों से भली भांति समझा जा सकता है। प्रधानमंत्री का वरदहस्त होने के बावजूद और इसी सत्ता संरक्षण में विश्व का सबसे रईस आदमी बनने का सपना देखने वाले गौतम अडानी के कॉर्पोरेट साम्राज्य का धड़ाम से मुंह के बल गिर जाना इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिये काफी है कि झूठ का गुब्बारा टिकाऊ नहीं होता और एक न एक दिन फूटता ज़रूर है। सत्ता की घनिष्ठता व टी.वी. चैनल्स खरीदकर सत्ता की आलोचना के स्वर बंद करने जैसे सारे साम दाम दंड भेद धरे के धरे रह गये।