आर्थिक अवसान के किनारे पर 


संकटग्रस्त पाकिस्तान की ओर इस समय विश्व भर के देश देख रहे हैं। हर तरफ से हो चुकी बुरी स्थिति में से यह देश कैसे उभरेगा, यह एक बेहद कठिन सवाल बन चुका है जिसका उत्तर शीघ्र कहीं मिलना मुश्किल है। वैसे तो यह देश अपने अस्तित्व के समय से ही अनेक तरह की समस्याओं से जूझता आ रहा है। सेना ने आम जनता को लगातार लताड़ कर रखा है। तानाशाहों ने इसे बर्बाद करने में कोई कमी नहीं छोड़ी, जिसका परिणाम आज वहां ़गरीबी के साथ-साथ फैले आतंकवाद के रूप में देखा जा सकता है। इसके अपने ही पैदा किए आतंकवादी आज इसे आंखें दिखा दे रहे हैं। 
पिछले दशकों में इसकी नीति बुरे एवं अच्छे आतंकवादियों की पहचान करने पर आधारित रही है। अभिप्राय यह कि पाकिस्तान से उठ कर पड़ोसी देशों में हिंसा करने वाले आतंकवादी अच्छे हैं तथा पाकिस्तान के भीतर हिंसा करने वाले बुरे हैं, परन्तु आज इसे स्वयं ही अपनी इस नीति की समझ नहीं आ रही है। आरम्भ में इसने अ़फगानिस्तान में सोवियत यूनियन के कब्ज़े के विरुद्ध बड़ी अमरीकी सहायता लेकर तालिबानों को प्रशिक्षण दिया तथा लगातार अ़फगानिस्तान में उन्हें  सोवियत सैनिकों के विरुद्ध लड़ने हेतु भेजता रहा। पाकिस्तान की धरती से लड़े जा रहे सोवियत संघ के विरुद्ध इस युद्ध का अमरीका ने भरपूर लाभ उठाया। इस तरह की सहायता से तालिबान ने सोवियत सैनिकों को पछाड़ कर स्वयं अ़फगानिस्तान पर कब्ज़ा कर लिया, परन्तु बाद में तालिबान अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादी संगठन अल-कायदा के साथ मिल गये। अल-कायदा के नेता ओसामा-बिन लादेन ने अमरीका के साथ-साथ यूरोपियन देशों को भी धमकियां देनी शुरू कर दीं तथा अमरीका पर हवाई हमला कर दिया। दूसरी बार फिर अमरीका ने पाकिस्तान को बड़ी आर्थिक सहायता देकर अ़फगानिस्तान से अल-कायदा को निकालने के लिए युद्ध छेड़ दिया। इस तरह उसका तालिबान के साथ भी टकराव शुरू हो गया। अल-कायदा तथा तालिबान को अमरीका द्वारा वहां से निकालने के लिए भी पाकिस्तान की धरती का ही उपयोग किया गया। इस दौरान ही पाकिस्तानी तालिबान ने अपने देश में अड्डे स्थापित कर लिए। इस तरह पाकिस्तान अपनी ही बनाई नीतियों के चक्रव्यूह में फंस गया। तालिबान द्वारा अमरीकी सैनिकों को पछाड़ने तथा अ़फगानिस्तान में काबिज़ होकर सरकार बनाने के लिए भी पाकिस्तान की धरती का ही उपयोग किया गया। आज चाहे तालिबान अ़फगानिस्तान पर काबिज़ हो चुका है परन्तु इसके साथ ही उन्होंने पाकिस्तानी तालिबान की सहायता शुरू करके पाकिस्तान को भी एक बड़ी चुनौती दे दी है। अपने ही बुने जाल में फंसा पाकिस्तान पूरी तरह कंगाल हो चुका है। जब अमरीका ने उसे सहायता देना बंद कर दिया तो उसने चीन की तरफ हाथ बढ़ाये। चीन ने अपनी योजनाओं के ज़रिये उस पर भारी ऋण चढ़ा दिया तथा उसके बहुत-से क्षेत्रों में वे योजनाएं भी शुरू कर दीं, जो पाकिस्तान के लिए अभी तक लाभदायक साबित नहीं हो सकीं। अब जब चीन ने भी इसकी बुरी हालत देखते हुए तथा अपने द्वारा दिया गया ऋण वापिस न मिलने की सम्भावनाओं को देखते हुए उससे अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं, तो शहबाज़ शऱीफ की सरकार ने कटोरा पकड़ कर अरब देशों तक पहुंच की है। इन देशों द्वारा उपलब्ध करवाई गई बड़ी सहायता भी कम पड़ गई है जिस कारण उन्होंने भी इसकी  और सहायता करने से हाथ पीछे खींचने शुरू कर दिए हैं। देश में अत्यधिक महंगाई हो जाने तथा पैट्रोल एवं गैस की कीमतों के लगातार बढ़ते जाने के कारण यहां आवश्यक खाद्य पदार्थों का मिलना भी कठिन होता जा रहा है। अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने भी इसकी वास्तविकता को पहचानते हुए अपने हाथ पीछे खींच लिए हैं। अब इसकी बेहद बुरी हालत को देख कर विगत दिवस अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ.) की टीम ने दो सप्ताह के लिए यहां का दौरा किया था। उसने यहां के प्रशासकों को पैट्रोल तथा बिजली की कीमतें और महंगी करने हेतु कहा है तथा इसके साथ ही अन्य टैक्स लगाने तथा सबसिडियों में कटौती करने का भी आदेश दिया है। 
पहले ही मंदी के दौर से गुज़र रहे इस देश में लोगों पर ऐसे भार डालना कठिन ही नहीं, अपितु असम्भव प्रतीत होता है। सरकार अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के इन निर्देशों पर क्रियान्वयन नहीं कर सकती, परन्तु दूसरी तरफ इसे और कहीं से सहायता मिलना भी कठिन हो गया है। इसलिए जहां अब प्रत्येक तरह की आवश्यक वस्तुओं तथा खाद्य पदार्थों की भारी कमी हो गई है, वहीं वस्तुओं का आयात करने हेतु इसके पास विदेशी करंसी भी समाप्त हो चुकी है। ऐसी स्थिति के कारण यह अन्तर्राष्ट्रीय मानवीय विकास के आंकड़ों में भी निम्न स्तर पर पहुंच गया है जबकि इस गणना के अनुसार बंगलादेश तथा भारत मध्यम दर्जे पर खड़े दिखाई देते हैं। प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह भारत से दो तिहाई नीचे के आस-पास पहुंच चुका है जबकि समूची विकास दर की तुलना (जी.डी.पी.) में यह भारत से 70 प्रतिशत नीचे दिखाई दे रहा है। यहीं बस नहीं, आज भी इसकी आय का ज्यादातर हिस्सा सेना के पास पहुंच जाता है। यहां कभी भी उद्योग विकसित नहीं हो सके, त्रुटिपूर्ण राजनीति तथा ़गैर-ज़रूरी सुरक्षा व्यय के कारण आज यह ऐसे अवसान तक पहुंच चुका है, जिसमें से इसकी वापसी वर्तमान में कठिन प्रतीत होती है जो यहां के करोड़ों लोगों के लिए एक बहुत ही बुरा सन्देश कहा जा सकता है। इस लिहाज़ से आज पाकिस्तान के बड़ी संख्या में लोग बदकिस्मती वाले हालात में से गुज़र रहे हैं।


—बरजिन्दर सिंह हमदर्द