मोदी न अडानी पर बोले, न ज्वलंत समस्याओं पर

 

जब देश की जनता अपने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा उन पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट को लेकर लगाये गये आरोपों का जवाब सुनने के लिए बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे, तब इन आरोपों का ज़िक्र तक नहीं हुआ। मोदी से यह उम्मीद की जाती थी कि काफी गंभीर होने के कारण वह राहुल द्वारा लगाये गये आरोपों से बचने के लिए इस अवसर का उपयोग करेंगे, परन्तु इसके बजाय उन्होंने जुमलेबाजी करने की अपनी सामान्य शैली का सहारा लेना उचित समझा। 
राहुल प्रधानमंत्री से अडानी के साथ उनके संबंधों के बारे में जानना चाहते थे। वास्तव में हिंडनबर्ग के खुलासे के बाद दुनिया भर के लोग, विशेष रूप से भारतीय, इस मामले की सच्चाई जानने के इच्छुक थे। राहुल ने आरोप लगाया कि मोदी के संरक्षण में अडानी ने अकूत दौलत जमा कर ली और वह दुनिया का तीसरा सबसे अमीर कारोबारी बन गया था। इसके बजाय मोदी ने अपने आरोपों को कुंद करने के लिए अपनी चुनावी जीत के पीछे शरण लेना पसंद किया। राहुल ने अडानी की कामयाबी के कारणों की जांच करने की बात कही थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि लोगों का जनादेश एक प्रमुख कारक है। लेकिन एक बार सत्ता में आने के बाद जो लोकतांत्रिक मानदंड और लोकाचार होते हैं, वह सरकार के कामकाज का मार्गदर्शन और निर्देशन करते हैं। मोदी ने अपनी चुनावी जीत का इस्तेमाल विपक्षीयों की आवाज़ दबाने के लिये किया। उनके गैर-प्रतिबद्ध रुख ने फिर भी यह स्पष्ट कर दिया कि उनके लिए भ्रष्टाचार या सार्वजनिक जीवन में सत्यनिष्ठा से इनकार ने अपनी प्रासंगिकता खो दी है।तथ्यों को सदन के सामने रखने की उनकी अनिच्छा ने यह भी प्रकट किया कि चुनावी जनादेश उन घोटालों और धोखाधड़ी पर आंख मूंदने के लिए पर्याप्त था, जो कथित दोस्तों द्वारा किए जा रहे थे। फिर भी किसी न किसी स्तर पर उनके लापरवाह रवैये ने राहुल के इस आरोप का समर्थन किया।
पूरी निष्पक्षता में मोदी किसी एजेंसी या संयुक्त संसदीय समिति के माध्यम से जांच की अनुमति देकर संकट को आमंत्रण नहीं कर सकते थे। उनके एक घंटे के भाषण संकेत देते हैं कि राहुल ने जो कहा उसमें कुछ सच्चाई है आरोप निराधार नहीं थे। क्या उनकी चुप्पी दर्शाती है कि वह राहुल के आरोप का मुकाबला करने की स्थिति में नहीं थे। हास्य का लुत्फ  उठाने के बीच वह सच्चाई बताकर देश की जनता को अपने भरोसे में लेने से बचते रहे। मोदी ने राहुल गांधी पर उनके 7 फरवरी के भाषण पर कटाक्ष किया, जहां उन्होंने आरोप लगाया था कि सरकार ने अडानी के पक्ष में नियमों को तोड़-मरोड़ कर बिना किसी पूर्व अनुभव के ही उनको हवाई अड्डों के विकास का काम दिया गया। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मोदी ने गेंद जनता के पाले में डाल दी है। इसी को ध्यान में रखते हुए मोदी संप्रग के दिनों में वापस गये और जी-2 और कोयला जैसे घोटालों की गिनती की।
उन्होंने कहा कि भाजपा के शासन में 3 करोड़ से अधिक लोगों को मुफ्त घर मिला है, 9 करोड़ को मुफ्त गैस कनेक्शन मिला है, 11 करोड़ महिलाओं को शौचालय मिला है, 8 करोड़ परिवारों को समुचित जलापूर्ति मिली है और आयुष्मान भारत योजना से 2 करोड़ परिवार लाभान्वित हुए हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि संप्रग शासन के दौरान देश की अर्थव्यवस्था में गिरावट आयी। खुद को आम लोगों के रक्षक के रूप में पेश करने के लिए उन्होंने पिछली कांग्रेस नेतृत्व वाली संप्रग सरकार के दौरान देश की आर्थिक विकास दर को भी कम करके बताया। मोदी ने कहा कि भारत 2014 से पहले के दशक को खोये हुए दशक के रूप में हमेशा याद रखेगा। इस संदर्भ में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह की बातों का स्मरण करना चाहिए, जिन्होंने कहा था कि मोदी की अपनी भविष्य की योजनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने की प्रवृत्ति रही है। उन्होंने ध्यान दिलाया कि मोदी ने अक्सर कहा है कि उनके प्रधानमंत्री बनने से पहले 70 वर्षों में कुछ भी नहीं किया गया था, लेकिन सत्य यह है कि इन वर्षों में औसत आयु 31 से बढ़कर 71 वर्ष हुई, साक्षरता 18 से बढ़कर 76 प्रतिशत हुई और भारत ने भोजन में आत्म-निर्भरता प्राप्त की।
 राहुल के सवाल करने से मोदी कुछ चिंतित लगे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत जोड़ो यात्रा ने उनके उत्साह को कुंद किया है। यह जानकर हैरानी हुई कि मोदी को अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ  ईडी, सीबीआई और आईटी के इस्तेमाल पर कोई पछतावा नहीं है। उन्होंने कहा, ‘विपक्षी नेताओं को उन्हें एकजुट करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को धन्यवाद देना चाहिए।’ यह समझ से परे है कि कोई प्रधानमंत्री ऐसा कैसे कह सकता है। (संवाद)