पंजाब के आर्थिक हितों को आघात पहुंचा रही है केन्द्र सरकार

 

जिस ़खेत से दहिकां को मयस्सर न हो रोज़ी,
उस ़खेत के हर गोशा-ए-गंदुम को जला दो।।
शायर-ए-मशरिक अलामा इकबाल का यह शे’अर कि जिस खेत से किसानों को रोज़ी नसीब नहीं, उस खेत की गेहूं के हर दाने को जला दो का अर्थ यह नहीं समझा जाना चाहिए कि सचमुच ही पूरी गेहूं को जला दिया जाए। अपितु आज के युग में इसका अर्थ यह लिया जाना चाहिए कि जिस खेत के अनाज से किसानों का पेट नहीं भरता तथा अनाज पैदा करने वाले प्रदेश का पर्यावरण दूषित, पानी समाप्त होने की कगार पर हो तथा प्रदेश दीवालिया हो और किसान आत्महत्या के रास्ते पर हों, उस प्रदेश की सरकार का फज़र् बनता है कि वह इस अनाज की बिक्री के लिए ज़रूर कुछ नए रास्ते ढूंढे ताकि पंजाब तथा पंजाबियों को आर्थिक मंदी से बचाया जा सके। एक तरफ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के पत्र के जवाब में केन्द्रीय उपभोक्ता मामलों तथा खाद्य वितरण संबंधी मंत्री पीयूष गोयल बड़ी मीठी-सी भाषा में एक पत्र लिखते हैं तथा सलाह देते हैं कि पंजाब सरकार अनाज के एम.एस.पी. (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर सिर्फ 2 प्रतिशत तक कर लगाने की कार्रवाई करे।  वास्तव में यह पत्र एक तरह से पहले से ही आर्थिक मंदी के शिकार तथा कज़र् में ग्रस्त हुए पंजाब के सिर पर लाठी मारने की तरह प्रतीत होती है। इस समय पंजाब आढ़त को छोड़ कर गेहूं तथा धान की फसल पर 6 प्रतिशत कर वसूल रहा है। 
इसमें 3 प्रतिशत ही मंडी फीस है। मंडी फीस पंजाब का मंडीकरण ढांचा चलता रखने तथा इसके विकास के लिए है। जबकि ग्रामीण विकास फंड गांवों की सड़कों तथा अन्य विकास के लिए है। यदि केन्द्र सरकार इसे सिर्फ 2 प्रतिशत तक लेकर आने के लिए विवश करेगी तो पंजाब कृषि कर से होने वाली आय का 66 प्रतिशत भाग खो बैठेगा। जो पंजाब के लिए सिर्फ बड़ा आर्थिक नुकसान ही नहीं होगा, अपितु पंजाब के मंडीकरण ढांचे को समाप्त करने की ओर उठाया गया अंतिम कदम साबित होगा।
यहां केन्द्र सरकार का नीयत स्पष्ट दिखाई देती है कि उसने किसान मोर्चे से मिली हार के बाद भी कार्पोरेट घरानों को अनाज का व्यापार सम्भालने से परहेज नहीं किया, अपितु अभी भी इसके लिए सरेआम प्रयास जारी हैं। केन्द्रीय मंत्री पीयूष गोयल स्पष्ट लिखते हैं कि इससे सरकार तथा ़गरीबों को दिये जाने वाले अनाज की सबसिडी का भार कम होगा तथा यह निजी व्यापारियों को प्रदेश से अनाज खरीदने हेतु उत्साहित करेगा। ठीक है केन्द्र से बोझ कम होगा, परन्तु पंजाब का क्या होगा? पंजाब जो केन्द्र के लिए अनाज खरीदता है, और घाटे में चला जाएगा।
पंजाब के लिए हालात साज़गार?
सूरज के इर्द-गिर्द भटकने से फायदा,
दरिया हुआ है गुम तो समन्दर तलाश कर।
(निदा ़फाज़ली)
इस समय विश्व में गेहूं तथा अन्य अनाज की कीमतें आसमान छू रही हैं। इसके रूस-यूक्रेन युद्ध, मौसम की गर्मी सहित कई कारण हैं परन्तु भारत में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उनके अनुसार चाहे भारतीय कृषि अनुसंधान के निर्देशक ज्ञानइन्द्र सिंह यह दावा कर रहे हैं कि इस बार भारत में गेहूं का क्षेत्रफल बढ़ने तथा अन्य कारणों के दृष्टिगत गेहूं का उत्पादन पिछले वर्ष से 50 लाख टन अधिक होगा। परन्तु जिस तरह इस बार उत्तरी भारत में गर्मी फरवरी के मध्य में ही शुरू हो गई है तथा बारिश का दूर-दूर तक कोई निशान नहीं दिखाई देता। उससे भारतीय मौसम विभाग के अनुसार गेहूं की फसल पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। गेहूं की फसल का दाना सिकुड़ने, चमक कम होने तथा परिणामस्वरूप झाड़ कम होने की सम्भावना है। प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में बिजाई की जाती गेहूं की कई फसलें तो 40 डिग्री से अधिक तापमान सहन करने में समर्थ ही नहीं होतीं।
दूसरी तरफ गेहूं की अच्छी कीमतों के दृष्टिगत भारत सरकार ने खुली मंडी बिक्री योजना (ओ.एम.एस.एस.) के तहत 50 लाख टन गेहूं बेच दी है। यह योजना 31 मार्च तक जारी रहेगी। हालांक इस बिक्री के बाद लाभ बड़े व्यापारियों, बेकरी निर्माताओं को तो हुआ है परन्तु निम्न स्तर पर गेहूं, आटा तथा आटा निर्मित वस्तुओं के मूल्य में भी कोई अधिक कमी नहीं हुई। इसलिए सम्भावनाएं हैं कि केन्द्र को अभी और गेहूं खुली मंडी में बेचनी पड़ेगी। 
हमारी जानकारी के अनुसार जनवरी में पंजाब में सिर्फ 16 लाख टन गेहूं के भंडार थे, जिनमें 10 लाख टन पंजाब की तथा 16 लाख टन एफ.सी.आई. की गेहूं थी। परन्तु इसमें से तीन बार 3-3 लाख टन करके 9 लाख टन गेहूं के टैंडर लग चुके हैं। भाव पंजाब में सिर्फ 7 लाख टन गेहूं ही शेष है तथा 31 मार्च तक पंजाब के गोदामों के लगभग खाली होने की सम्भावनाएं हैं। फिर केन्द्र सरकार जिसके पास आम तौर पर 135 लाख टन गेहूं पड़ी होती है, के पास इस समय मात्र 110 लाख टन के लगभग ही गेहूं बची बताई जा रही है। जिसके अभी और कम होने की सम्भावना है। जबकि दूसरी तरफ भारत सरकार खाद्य सुरक्षा कानून को अहम रूप देने हेतु चावल तथा गेहूं के ब़फर स्टाक को 60 प्रतिशत बढ़ाने के प्रस्ताव पर भी विचार कर रही है।
इन सभी स्थितियों संबंधी लिखने का उद्देश्य मात्र यह है कि गेहूं की ज़रूरत केन्द्र सरकार को अधिक है। यदि पंजाब सरकार कुछ समझदारी तथा सहजता से काम ले तो पंजाब सरकार केन्द्र सरकार को पंजाब द्वारा लगाए जाते 6 प्रतिशत टैक्स तथा आढ़त देने के लिए ही नहीं विवश किया सकता, अपितु फसलों को पंजाब सरकार की आय का बड़ा स्रोत भी बना सकती है।
ज़रूरत है मुख्यमंत्री के हौसले की
इश्क को हौसला है शर्त वरना,
बात का किस को ढब नहीं आता।
(मीर तकी मीर)
बात तो हौसले की ही होती है, वरना बातें तो सभी कर लेते हैं। अब यदि पंजाब सरकार उपरोक्त सभी स्थितियों को ध्यान में रखे तथा हौसले से काम ले सके तो हमारे सामने है कि केन्द्र सरकार को अपना 60 प्रतिशत अधिक ब़फर स्टाक पूरा करने के लिए, कम उत्पादन के अलावा विश्व भर में अनाज की कमी और बढ़ी हुई कीमतों के दृष्टिगत गेहूं की खरीद तो करनी ही पड़ेगी।
इसलिए पंजाब सरकार के पास अवसर है कि वह कानूनी विशेषज्ञों के साथ विचार-विमर्श करविभिन्न सम्भावनाओं पर विचार करे कि पंजाब का लाभ किस में है तथा यह कैसे हासिल किया जा सकता है?
इनमें एक सम्भावना यह भी हो सकती है कि पंजाब सरकार बैंकों से पैसा लेकर गेहूं केन्द्र के लिए खरीदने के स्थान पर स्वयं खरीदे तथा इस समय लगभग खाली पड़े गोदामों तथा पलिंथां में स्टोर करके कुछ ही समय बाद महंगे मूल्य पर बेचे या फिर अपनी 6 प्रतिशत कर प्राप्ति पर ही अडिग रहे, अपितु कानूनी सलाह उपरांत केन्द्र को पंजाब सरकार द्वारा खरीद की गई गेहूं, जिस पर वह पड़ते खर्च तो वह पहले ही देता है से कुछ प्रतिशत लाभ लेने का फैसला भी करे। क्योंकि किसी भी खरीदार का अधिकार है कि वह जो खरीदता है आगे लाभ लेकर बेचे। इस तरह यह कदम पंजाब की अर्थ-व्यवस्था को कम करने में सहायक होगा।
पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान चाहे यह स्पष्ट घोषणा कर चुके हैं कि पाकिस्तान जो हमारे देश में ज़हर तथा हथियार भेजता है, के साथ व्यापार करने के वह पक्ष में नहीं हैं। परन्तु उन्हें अपनी सोच पर पुन: दृष्टिपात करना चाहिए क्योंकि विश्व भर में लड़ाई तथा बातचीत साथ-साथ चलती रहती है। प्रत्येक देश अपने व्यापारिक हितों को देखता है। क्या भारत के लिए चीन पाकिस्तान  से कम ़खतरनाक है? परन्तु चीन के साथ तो भारत का व्यापार प्रत्येक वर्ष बढ़ता ही जा रहा है। मुख्यमंत्री जी हम समुद्र से हज़ारो किलोमीटर दूर हैं। हमारे पंजाब की अर्थ-व्यवस्था को समर्थन देने के लिए हमें पाकिस्तान के साथ तथा पाकिस्तान के माध्यम से अन्य देशों के साथ व्यापार करना हमारी खुशहाली के लिए ज़रूरी है। पाकिस्तान इस समय भुखमरी का शिकार है। भारत में आटा इस समय 25 से 30 रुपए प्रति किलो है, जबकि पाकिस्तान में यह 145 से 160 रुपए अर्थात भारत से 45 से 51 रुपए अधिक प्रति किलो पर बिक रहा है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि पंजाब पाकिस्तान के साथ व्यापार करके कितने लाभ में रह सकता है। देश की सुरक्षा तथा व्यापार दोनों का ध्यान हम चीन के साथ संबंधों  में भी तो रख ही रहे हैं, परन्तु इसमें एक समस्या यह है कि इसके लिए भी पंजाब को इजाज़त केन्द्र सरकार से ही लेनी पड़ेगी।
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