वृक्षों के पो यों झड़ते हैं ?

बहुत सारे वृक्षों के पो झड़ने के कारण इन पर अकेली टहनियां ही शेष रह जायें तो इस मौसम को पतझड़ की ऋतु के रूप में जाना जाता है। वैसे तो चाहे अलग-अलग समय वृक्षों के पो पकने के बाद थोड़ी-थोड़ी मात्रा में गिरते रहते हैं, लेकिन उारी भारत में इतने विशाल स्तर पर वृक्षों व पौधों के पो केवल सर्दी में आई पतझड़ के समय ही गिरते हैं। ऐसा देखकर हमारे मन में असर विचार आता है कि इस समय इतने बड़े स्तर पर इस तरह वृक्षों के पो यों झड़ते हैं? साधारण तरीके के साथ हमें लगता है कि ऐसा सर्दी के कारण होता है लेकिन विश्व के अलग-अलग हिस्सों, यहां तक की भारत के अलग-अलग हिस्सों में पतझड़ अलग-अलग समय पर आती है। उारी भारत में सर्दी का मौसम आने के बाद धीरे-धीरे ज्यादातर वृक्षों के पो पीले, लाल, भूरे होकर गिरने शुरू हो जाते हैं। वास्तव में इस प्रकार वृक्षों के पो गिरना वृक्षों द्वारा अपने जीवन को सुरक्षित रखने का एक ढंग है। जिस प्रकार मनुष्य और दूसरे जीव अपनी भविष्य की शरीरिक ज़रूरतों के लिए चर्बी के रूप में ऊर्जा को अपने शरीर में इकट्ठा करके रखते हैं, उसी प्रकार वृक्ष भी ऊर्जा को अपनी ज़रूरतों के लिए इकट्ठा करके रखते हैं।
उारी भारत में जब गर्मी का मौसम होता है, तो वृक्षों को सूर्य से भरपूर प्रकाश मिलता है, जिसकी मदद से वृक्षों के पो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा वृक्षों के लिए भरपूर भोजन तैयार करते हैं। वृक्ष इसमें से कुछ हिस्सा उपयोग करने के बाद, बाकी को सर्दी जैसे मौसम के लिए जमा कर लेते हैं। सर्दी का मौसम आने पर वृक्षों को सूर्य का पूरा प्रकाश न मिलने के कारण वृक्षों के पो प्रकाश संश्लेषण की क्रिया पूरी नहीं कर पाते। इसके साथ वृक्षों के पाों को वृक्षों से मिलने वाला पानी और खाद्य तत्वों की ज़रूरत उसी तरह बरकरार रहती है। पाों के छेदों द्वारा पानी भी बर्बाद होता रहता है। वृक्षों के पो वृक्ष को खुराक तैयार करके देने की बजाय बल्कि स्वयं वृक्ष की जमा की खुराक को उपयोग करने लगते हैं।
प्रकृति द्वारा वृक्षों में पैदा की प्रणाली द्वारा वृक्ष पाों की तत्कालीन उपयोगिता न होने के कारण अपने पाों को इनकी डंडियों से पानी और खाद्य तत्व देना रोक देते हैं। ऐसा होने के कारण बहुत सारे वृक्षों के पो इस समय रंग-बिरंगे और कमजोर होकर झड़ जाते हैं। वृक्षों के पाों का इस समय पीले, भूरे या लाल होने का कारण इनमें कलोरोफिल की कमी होती है। कलोरोफिल नाम के रासायन के कारण ही पौधों के पो हरे दिखाई देते हैं। इस लोरोफिल से वृक्षों के पो वृक्षों द्वारा धरती से मिले खाद्य तत्वों, पानी, वायुमंडल में कार्बन डाईआसाइड और सूर्य प्रकाश की मदद से प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा शकर और आसीज़न तैयार करते हैं। लेकिन सर्दी के दिनों में सूर्य प्रकाश और वृक्षों की जड़ों से मिलते खाद्य तत्वों, पानी की कमी के कारण पाों के बीच लोरोफिल क्रियाहीन होकर अदृश्य हो जाते है और पौधों के पो पीले, लाल, भूरे होकर झड़ने लगते हैं। कुछ इसी तरह ही भारत और विश्व के विभिन्न हिस्सों में वृक्षों पर आये ऐसे हालात के समय वृक्षों पर पतझड़ आती है।
-गांव व डा. आदमके, तहसील : सरदूलगढ़ (मानसा)
-मो-त्त्क्ब्म्--ख्ब्त्त्