व्हेल की सेहत पर भारी पड़ता प्लास्टिक

व्हेल विश्व का सबसे विशालकाय जलीय स्तनधारी प्राणी है, जिसके बारे में जागरूकता फैलाने, व्हेल प्रजाति की समुचित देखभाल और संरक्षण करने के उद्देश्य से कुछ अभियान चलाए जाते हैं। 17वीं शताब्दी में कुछ बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा व्हेल को मारकर उसका मांस, तेल और परफ्यूम बनाने के लिए बड़े पैमाने पर व्हेल का शिकार किया जाने लगा था। हालांकि दुनियाभर के समुद्रों और महासागरों में अभी लाखों की संख्या में व्हेलें हैं लेकिन औद्योगिक पैमाने पर इनका शिकार होने से इनकी कई प्रजातियों पर हमेशा के लिए विलुप्त होने का संकट मंडराने लगा है। ‘अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग’ के एक अनुमान के अनुसार दुनिया में अभी करीब डेढ़ मिलियन व्हेल बची हैं। वर्ष 1986 में अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग द्वारा व्हेल के व्यावसायिक शिकार पर प्रतिबंध लगाया गया किन्तु फिर भी पूरी दुनिया में व्हेल का शिकार हो रहा है, जिससे व्हेल की कुछ प्रजातियों के अस्तित्व पर संकट के गहरे बादल मंडरा रहे हैं। 20वीं शताब्दी में जो व्हेल पृथ्वी के लगभग सभी महासागरों में बड़ी संख्या में थी, 21वीं शताब्दी में कुछ प्रजातियां विलुप्त होने के कगार तक पहुंच चुकी हैं।
सदियों से मानव सभ्यता के साथ जुड़ी व्हेल का समुद्र में 5 करोड़ वर्षों से अस्तित्व माना जाता है। स्पर्म व्हेल, किलर व्हेल, पायलट व्हेल, बेलुगा व्हेल इत्यादि व्हेल की कई प्रजातियां हैं, जिनमें धरती का सबसे विशाल और वजनदार प्राणी ब्लू व्हेल को माना जाता है। 1909 में दक्षिण अटलांटिक महासागर के दक्षिण जॉर्जिया के समुद्र तट पर मिली 110 फुट लंबी नीली व्हेल अब तक की सबसे विशालकाय व्हेल है। ब्लू व्हेल का वजन करीब 200 टन यानी 1.81 लाख किलोग्राम होता है, जो करीब 98 फुट चौड़ी होती है और गर्मी के मौसम में यह करीब चार करोड़ क्रिल (छोटे जलीय जीव) खा जाती है। इसके हृदय का वजन 600 किलोग्राम होता है। इसका मस्तिष्क करीब 7 किलोग्राम का होता है जबकि इसकी जीभ का वजन लगभग 3000 किलोग्राम होता है। ब्लू व्हेल के शरीर में सात हजार किलोग्राम तक रक्त होता है और जब यह जीव महासागरों में घूमता है तो बड़े-बड़े पनडुब्बी जहाज भी इसे देखकर अपना रास्ता बदल लेते हैं।
व्हेल के व्यवहार को लेकर वैज्ञानिकों ने जो जानकारियां जुटाई हैं, उसके अनुसार यह बहुत जिंदादिल जीव है, जो प्राय: समूह में रहना पसंद करती है। जब इसके बच्चे का जन्म होता है तो नन्हे ब्लू व्हेल की लंबाई 20.25 फुट होती है और वजन 2.7 टन होता है। बच्चा काफी तेज़ी से बड़ा होता है, जिसका वजन प्रतिदिन करीब 90 किलोग्राम तक बड़ जाता है और केवल 6 माह में ही यह बच्चा 40.50 फुट बड़ा हो जाता है। हालांकि विशालकाय होने के बावजूद व्हेल इंसानों के लिए खतरनाक नहीं होती। वैसे पिग्मी स्पर्म व्हेल जैसी व्हेल की छोटी प्रजातियां मात्र 11 फुट तक की ही होती हैं। व्हेल सभी महासागरों के गहरे पानी में औसतन 40 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से कहीं से कहीं पहुंच जाती हैं लेकिन जब बच्चे को जन्म देना होता है तो मादा ब्लू व्हेल सागर में गहरे गर्म पानी वाले क्षेत्र में चली जाती है। अनुमान है कि समुद्रों में ब्लू व्हेल की आबादी 5 हज़ार से 12 हज़ार तक हो सकती है और इनकी सर्वाधिक संख्या सबसे बड़े महासागर प्रशांत महासागर में ही है। इसके अलावा उत्तरी अटलांटिक महासागर में भी इनकी काफी आबादी है। 2002 में एक रिपोर्ट में बताया गया था कि पूरी दुनिया में केवल 5.12 हजार ब्लू व्हेल ही बची हैं जबकि आईयूसीएन का अनुमान है कि वर्तमान में इनकी संख्या करीब 10.25 हजार के बीच होगी। माना जाता है कि जब दुनिया में व्हेल के शिकार का चलन नहीं था, तब अंटार्कटिका में इनकी संख्या करीब 2.39 लाख के आसपास थी।
व्हेल का खून गर्म होता है और अन्य स्तनधारी प्राणियों की तरह यह हवा में सांस लेती है, बच्चे को जन्म देती है, उसे अपना दूध पिलाती है, जो टूथपेस्ट की तरह गाड़ा होता है। मादा व्हेल एक बार में एक बच्चे को जन्म देती है। पानी के अंदर सांस लेने के लिए व्हेल में अन्य मछलियों की भांति गिल्स नहीं होते बल्कि वह एक स्तनधारी प्राणी की भांति फेफड़ों से सांस लेती है और सांस लेने के लिए उसे पानी की सतह पर आना पढ़ता है। सांस लेने के लिए इसके सिर पर एक छिद्र होता है। सतह पर आने के बाद व्हेल पहले शरीर की अशुद्ध हवा बाहर निकालकर शुद्ध हवा अपने भीतर लेती है। जब वह अपने शरीर की हवा बाहर निकालती है, तब बहुत तेज़ आवाज़ आती है, जो बहुत दूर तक सुनी जा सकती है। एक बार सांस अंदर लेने के बाद व्हेल करीब 45 मिनट तक पानी के भीतर रह सकती है। अपने दूसरे साथियों से सम्पर्क करते समय व्हेल एक मधुर ध्वनि निकालती हैं, जिसे ‘व्हेल सांग’ कहा जाता है। 20 हजार वाट के बराबर यह ध्वनि इतनी तेज़ होती है कि इसे मीलों दूर तक सुना जा सकता है। व्हेल की गर्दन बहुत लचीली होती है, जो तैरते समय गोल घूम सकती है। इसकी पूंछ के अंत में दो सिरे इसके तैरते समय मुड़ने में सहायक होते हैं। व्हेल को लेकर सबसे विचित्र बात यह है कि यह कभी भी लंबे समय तक नहीं सो सकती। सोते समय इसके दिमाग का आधा हिस्सा जगा होता है और आधा सोता है, जिससे यह डूबने से बची रहती है। इसके शरीर का आकार इस तरह गोल होता है कि यदि यह सो जाए तो डूबकर मर जाती है, इसलिए इसका मस्तिष्क कुछ समय के लिए ही सोता है। व्हेल में अपने परिवार के साथ रहने की प्रवृत्ति होती है, जो महासागरों में अकेले या स्थायी समूहों में रहकर यात्रा करती है।
बहरहाल, दुनियाभर में व्हेल के संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ाने के साथ-साथ अब विश्वभर में दूषित होते महासागरों के बारे में भी जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, जो अब बुरी तरह प्रदूषित होते जा रहे हैं। व्हेल के शिकार के अलावा इंसानों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण का प्रभाव भी अब व्हेल सहित अन्य समुद्री जीवों पर भी पड़ रहा है। प्लास्टिक के छोटे-छोटे कण समुद्र की पारिस्थितिकी सेहत को खराब कर रहे हैं और वैज्ञानिकों के मुताबिक व्हेल अब भारी मात्रा में प्लास्टिक खा रही हैं क्योंकि समुद्र में प्लास्टिक प्रदूषण विकराल हो चुका है। इस संबंध में दुनियाभर के वैज्ञानिकों का कहना है कि व्हेल रोज़ाना कई किलो माइक्रोप्लास्टिक निगल रही हैं, जिससे व्हेलों के स्वास्थ्य पर असर पड़ रहा है। एक शोध के मुताबिक, ब्लू व्हेल प्रतिदिन करीब एक करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े (करीब 43.5 किलोग्राम) प्लास्टिक निगल सकती है जबकि फिन व्हेल रोज़ाना करीब 0.6 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े (करीब 26 किलोग्राम) निगल जाती है। शोध के मुताबिक हम्पबैक रोज़ाना करीब 0.4 करोड़ माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े (करीब 17 किलोग्राम) प्लास्टिक निगल सकती है जबकि बाकी मछलियां भी बहुत कम मात्रा में करीब 2 लाख माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े ले सकती हैं। कुल मिलाकर, दुनियाभर में व्हेल के साथ-साथ अन्य समुद्री जीवों के लिए भी उनके रहने के लिए सुरक्षित स्थान बनाने के लिए गंभीर कार्रवाई की नितांत आवश्यकता है।

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