औषधीय गुणों से भरपूर है पीपल

 

मोरासी परिवार का पीपल एक पवित्र व धार्मिक वृक्ष हैं इसका वनस्पतिक नाम फीकुस रेलिजिओसा लिनिअस है। मंदिरों, धर्मशालाओं, बावडियों तथा रास्ते के किनारों पर यह अमातौर पर उगाया जाता है। पीपल एक विशाल आकार का मानूसनी वृक्ष है। इसकी पत्तियां हृदयाकार होती है। इसका तना ललाई लिए हुए सफेद व चिकना होता है इसके फल छोटे गोल तथा छोटी शाखाओं पर लगते है। इसकी छाल भूरे रंग की होती है तथा तने एवं शाखाओं को गोदने पर इससे सफेद गाढ़ा दूध निकलता है।  पीपल धार्मिक रूप से ही नहीं औषधीय रूप से भी बहुत उपयोगी वृक्ष है। अनेक छोटी बड़ी बीमारियों के इलाज में पीपल बहुत उपयोगी होता है। पीपल के पांच पत्तों को दूध में उबालकर चीनी डालकर दिन में दो बार सुबह-शाम पीने से जुकाम, खांसी और दमा में बहुत आराम होता है। इसके सूखे पत्ते का चूर्ण भी खासा उपयोगी होता है। इस चूर्ण को जख्मों पर छिड़कने से फायदा होता है।  पीपल के अंकुरों को मिलाकर पतली खिचड़ी बनाकर खाने से दस्तों में आराम मिलता है। यदि रोगी को पीले रंग के दस्त जलन के साथ हो रहे हों तो इसके कोमल पत्तों का साग रोगी को खिलाना चाहिए। 
पेचिश, रक्तस्राव, गुदा का बाहर निकलना तथा बुखार में पीपल के अंकुरों को दूध में पकाकर इसका एनीमा देना बहुत लाभकारी होता हैं पीपल के फल भी बहुत उपयोगी होते है। इसके सूखें फलों का चूर्ण पानी के साथ चाटने से दमा में बहुत आराम मिलता है। खांसी होने पर इसी चूर्ण को शहद के साथ चाटना चाहिए। दो माह तक लगातार नियमित रूप से इस चूर्ण का सेवन करने से गर्भ ठहरने की संभावना बढ़ जाती है। पीपल की छाल के काढ़े या फॉट से कुल्ला करने से दांत दर्द में आराम मिलता है और मसूढे मज़बूत होते हैं। जख्मों को छाल के काढे से धोने से वे जल्दी भरते है। जख्मों पर यदि चमड़ी न आ रही हो तो बारीक चूर्ण बुरकाना चाहिए। हड्डी टूटने पर छाल को बारीक पीसकर बांधने से लाभ मिलता है। छाल को पीसकर लेप करने से रक्त-पित्त विकार शांत होता है। 
कान मे दर्द के उपचार के लिए पीपल के कोमल पत्ते पीसकर उसे तिल के तेल में हल्की आंच पर पका लें फिर इसे ठंडा कर लें और हल्का सा गुनगुना होने पर कान मे डालने से तुरंत आराम मिलता है। पैरो की एडियां फटने या त्वचा के फटने पर उसमें पीपल का दूध लगाना चाहिए। 
पीपल के फल, जड़ की छाल और कॉपलों को दूध में पकाकर छान लें। इससे शहद या चीनी मिलाकर पीने से पुरुस्त्व शक्ति बढ़ती है। पीपल की जड़ के काढे में नमक और गुड मिलाकर पीने से तीव्र कुक्षि शूल में शीघ्र लाभ होता हैं पीपल की सूखी छाल को जलाकर जल में बुझा लें। इस जल के सेवन से उल्टी तथा प्यास शांत हो जाती है। शुक्राणु क्षीण होने की स्थिति में पीपल की छाल के काढे में दूध पकाकर पी ले। यदि मूत्र नीले रंग का आता हो तो रोगी को पीपल की जड़ की छाल का काढा दे। प्रमेह विकारों में पीपल के 6 ग्राम बीज घोंट लें इसमें शहद मिलाकर छाछ के साथ इसका सेवन करें। गनोरिया में भी पीपल की छाल बहुत उपयोगी हैं विभिन्न यौन विकारों में पीपल के काढे से योनि प्रक्षालन को श्रेष्ठ माना गया हैं मूल तथा प्रजनन सहति से पैत्तिक विकारों में पीपल की छाल के काढे में शहद मिलाकर सेवन करने से तुरंत लाभ मिलता है। (सुमन सागर)