कृषि नीति संबंधी कुछ सुझाव

कृषि विकास दर का कम होना चिन्ता का विषय है। किसानों की आय दो गुणा करने के लिए यह दर 10.4 प्रतिशत वार्षिक होनी चाहिए। इसमें कोई अपेक्षित वृद्धि नहीं हो रही। कृषि उपज की कीमत किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार न मिलने के कारण कृषि का भविष्य धूमिल-सा नज़र आने लग गया है। किसानों की आय में वृद्धि करने के लिए कई चुनौतियां सामने हैं, जिन्हें दूर करना पड़ेगा। इसलिए कृषि अनुसंधान में परिवर्तन लाने की आवश्यकता है। 
पहले सब्ज़ इन्कलाब के बाद भारत अनाज पक्ष से आत्मनिर्भर ही नहीं हुआ, अपितु गेहूं व चावल निर्यात करने के भी योग्य हो गया। अब अन्न सुरक्षा के साथ-साथ पौष्टिक सुरक्षा की अधिक आवश्यकता है। गुणवत्ता की ओर अनुसंधानकर्ताओं का विशेष ध्यान होना चाहिए। 
भविष्य में अधिक तापमान एक बड़ी समस्या बन कर सामने आ रहा है। पर्यावरण गर्म होने से पहाड़ों में ग्लेशियर पिघल जाते हैं, जो सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध करने का स्रोत हैं। विशेषज्ञों के अनुमान के अनुसार एक डिग्री सैल्सियस तापमान बढ़ने से चावल का उत्पादन 10 प्रतिशत कम हो जाएगा। वर्ष 2050 तक तापमान 12 डिग्री सैल्सियस बढ़ने की संभावना है। विश्व की दो तिहाई आबादी भोजन के लिए चावल पर निर्भर है। अनुसंधान को ऐसे पर्यावरण को ध्यान में रखना पड़ेगा तथा किसानों को अपना फसली चक्कर तथा सिंचाई के साधन इसके दृष्टिगत अपनाने पड़ेंगे। वास्तव में पानी खड़ा रखने तथा अधिक पानी देने के स्थान पर तुपका एवं छिड़काव सिंचाई के साधन इस्तेमाल करने पड़ेंगे। 
प्रदेश की कृषि नीति संबंधी सुझाव देने के लिए बने सलाहकार बोर्ड के सदस्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर के चावल ब्रीडर डा. गुरदेव सिंह खुश ने सलाह दी है कि पानी की खपत कम करने के लिए ट्यूबवैलों को मुफ्त बिजली की सुविधा बंद कर दी जाए। इस कारण बड़ी मात्रा में पानी व्यर्थ जा रहा है। डा. खुश के अनुसार किसी अन्य ढंग से किसानों को मदद दी जा सकती है, चाहे दो-तीन एकड़ वाले छोटे व सीमांत किसानों को मुफ्त बिजली की यह सुविधा जारी रखी जाए। डा. खुश ने कहा है कि यह सुविधा बंद करके तुपका तथा छिड़काव सिंचाई के साधन उपलब्ध करने के लिए सब्सिडी दी जा सकती है। 
किसानों द्वारा आवश्यकता से अधिक नाइट्रोजन के इस्तेमाल से पानी प्रदूषित होने की समस्या आती है। यूरिया पर भारी सब्सिडी (अनुमानित सब्सिडी 2.5 लाख करोड़) होने के कारण किसान फसल को विशेषज्ञों की सिफारिश से अधिक यूरिया डाल रहे हैं। गेहूं की फसल में 110 किलो प्रति एकड़ यूरिया पीएयू द्वारा सिफारिश किया गया है परन्तु अधिकतर किसान 225 किलो यूरिया प्रति एकड़ तक फसल में डाल  रहे हैं। भारत सरकार ने थैले में 50 किलो यूरिया डालने की बजाय 45 किलो डालना शुरू कर दिया है ताकि किसान कम से कम यूरिया प्रति एकड़ इस्तेमाल करें। रसायन एवं उर्वरक मंत्री मनसुख मांडविया ने किसानों को आश्वासन दिया है कि खरीफ के मौसम में यूरिया आवश्यकता के अनुसार किसानों को उपलब्ध होगा। भारत विदेशों से यूरिया आयात कर रहा है। इसकी खपत घटने से विदेशी मुद्रा की भी बचत होगी। 
प्रदेश में अभी तक फसली विभिन्नता में कोई सफलता प्राप्त नहीं हुई। प्रत्येक वर्ष धान की काश्त के अधीन रकबा बढ़ रहा है। जो इस वर्ष भी 30 लाख हैक्टेयर के पार हो जाएगा। चाहे काफी बड़े रकबे पर बासमती किस्मों की काश्त किए जाने की सम्भावना है। गत वर्ष धान तथा बासमती की काश्त 31 लाख हैक्टेयर रकबे पर की गई थी। धान की काश्त के अधीन रकबा कम करके फसली विभिन्नता लाने की सख्त आवश्यकता है। गेहूं की काश्त में से कुछ रकबा निकाल कर सरसों की काश्त के अधीन लाया जा सकता है। भारत प्रति वर्ष तेल बीज फसलें तथा तेल आयात करता है। इस संबंधी यदि जीएम तकनीक (जो चर्चा का विषय बनी हुई है) अपनाई जाए तो बी.टी. नरमे की भांति लाभ होगा। नरमे में यह तकनीक अपनाने के बाद अब बी.टी. नरमे पर 12-13 दवाइयों के छिड़काव के स्थान पर दो छिड़काव ही करने पड़ते हैं। इस तकनीक के अपनाने से उत्पादन बढ़ा है और खर्च कम हुआ है। इसी प्रकार खरीफ में धान की काश्त के सफल विकल्प तलाश करने की ज़रूरत है।
किसानों का लाभ बढ़ने की बजाय कम हो रहा है, क्योंकि उत्पादन खर्च बढ़ रहा है। उत्पादन में कमी आ गई है। गत वर्ष मार्च में अधिक गर्मी पड़ने के कारण गेहूं के उत्पादन में भारी कमी आई। इस वर्ष भी मार्च में बारिश एवं तेज़ हवाएं चलने के कारण गेहूं की फसल को भारी नुकसान हुआ है। इस वर्ष भी उत्पादन कम होने की सम्भावना है। इससे किसानों की आय में भारी कमी आ सकती है। प्रदेश के किसानों पर औसतन दो लाख प्रति घर ऋण है। जबकि भारत में यह आंकड़ा 74000 रुपये का है। किसानों की आय इसलिए भी कम है कि खेत बहुत छोटे हैं। किसी कार्पोरेट फार्मिंग जैसी विधि की आवश्यकता है। किसानों के ऋण समाप्त करने के लिए कोई दीर्घकालिक नीति बनानी पड़ेगी, जिससे किसानों का बोझ कम होगा और उनके द्वारा कृषि उपज बढ़ाने के लिए किये जाने वाले प्रयास से उत्पादन बढ़ेगा, जिससे उनके लिए कृषि एक लाभदायक व्यवसाय बनने की संभावना है।