बेहद बुद्धिमान जलचर है फाल्स किलर व्हेल

फाल्स किलर व्हेल यह हिंसक व्हेल की निकट संबंधी है। इसकी संख्या बहुत कम है, यह कम दिखायी देती है, जिसके कारण इसकी बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। फाल्स किलर व्हेल धु्रवीय महासागरों को छोड़कर विश्व के सभी सागरों और महासागरों में पायी जाती है। यह सागर तटों से दूर गहरे पानी में रहती है और नियमित रूप से सागर तटों पर नहीं आती। यह भोजन और प्रजनन के लिए लंबी-लंबी यात्राएं नहीं करती। कभी-कभी अपने भोजन का पीछा करते हुए ही यह सागर तटों के पास आती है। 
यह झुंड में रहने वाला जलचर है। सागर तटों से दूर गहरे पानी में इसके कई-कई सौ के झुंड देखने को मिलते हैं। झुंड में नर और मादा दोनो साथ-साथ रहते हैं तथा इनकी संख्या बराबर-बराबर होती है। फाल्स किलर व्हेल की शारीरिक संरचना किलर व्हेल की तरह होती है, किंतु दोनो में कुछ अंतर भी होते हैं। फाल्स किलर व्हेल कुछ पतली होती है, इसकी लंबाई 4 मीटर से 4.5 मीटर तक होती है। नर और मादा के आकार में कम अंतर होता है। इसका रंग काला होता है और शरीर पर किसी तरह के निशान नहीं होते। जब कि किलर व्हेल के शरीर पर सफेद रंग के बड़े-बड़े निशान होते हैं। फाल्स किलर व्हेल का किलर व्हेल की तरह लंबा और पीठ का मीनपंख भी नहीं होता। किलर व्हेल का मीनपंख डालफिन की तरह छोटा, नुकीला और मुड़ा हुआ होता है। यह गहरे पानी में पाये जाने वाले छोटे-छोटे जीवों का ही शिकार करती है, इसका प्रमुख भोजन है कैटलफिश, यह एक बार में सैकड़ों कैटलफिश खा जाती है। यह स्तनधारी जलचर है। अन्य स्तनधारी जीवों के समान इसमें आंतरिक समागन और आंतरिक निषेचन पाया जाता है। फाल्स किलर व्हेल का समागम वर्ष भर चलता है तथा मादा वर्ष भर प्रजनन करती है। इसका समागम और प्रजनन गहरे पानी में होता है। यह प्राय: एक बच्चे को जन्म देती है, किंतु कभी-कभी ये जुड़वा बच्चे भी होते हैं। इसका नवजात बच्चा 1.8 मीटर लंबा होता है, यह लंबे समय तक मादा व्हेल का दूध पीता है और झुंड के साथ रहता है। 
फाल्स किलर व्हेल के बच्चे का विकास अन्य बच्चों से धीमा होता है। जन्म के कुछ समय बाद मादा का दूध पीने के साथ ही यह छोटी छोटी मछलियों तथा इसी प्रकार के अन्य जीवों का शिकार करने लगता है और लगभग 3.6 मीटर होने पर यह वयस्क होकर प्रजनन योग्य हो जाता है। व्हेल एक बुद्धिमान जलचर है। यह कभी-कभी जब सागर तटों पर आ जाती है तो प्राकृतिक रूप से अथवा मछुआरों द्वारा मारी जाती है। व्हेलों की निरंतर गिरती हुई संख्या को देखते हुए आजकल इन्हें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बचाने के प्रयास किये जा रहे हैं, इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत जब ये उथले पानी में आ जाती हैं तो इन गहरे पानी में भेज दिया जाता है ताकि ये सुरक्षित रहें। कई बार इन्हें जब उथले पानी से दोबारा गहरे पानी में ले जाया जाता है तो ये दोबारा झुंडों के साथ उथले पानी में आ जाती हैं। जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि इनको अपने साथियों से बहुत लगाव होता है और ये एक दूसरे को बचाने के लिए ही बार-बार उथले पानी में आती हैं, जिससे इनका जीवन संकट में रहता है।

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