पिता की ज़िद के चलते हुआ था मधुबाला का दिलीप कुमार से ब्रेकअप

 

मुमताज़ जहां बेगम देहलवी छोटी सी, प्यारी सी गुड़िया थीं। उन्हें आईने के सामने गाने व नाचने का श़ौक था। वह हमेशा अपने पिता अताउल्लाह खान से कहतीं, ‘अब्बा, मुझे फिल्मों में जाना है।’ लेकिन अपनी पुरातनपंथी पृष्ठभूमि के कारण अताउल्लाह खान को फिल्मों से नफरत थी। इसके बावजूद जीवन की अपनी योजना थी। अताउल्लाह खान की नौकरी छूट गई और उन्हें रोज़गार के लिए मुंबई आना पड़ा। जब कोई नौकरी न मिली तो वह 9 साल की बेबी मुमताज़ को लेकर स्टूडियो के चक्कर लगाने लगे। 14 फरवरी 1933 को दिल्ली में जन्मी बेबी मुमताज़ को बाल कलाकार के रूप में फिल्म ‘बसंत’ (1942) में काम मिल गया और 13 वर्ष की उम्र में वह राज कपूर के समक्ष ‘नील कमल’ (1947) में लीड एक्ट्रेस बनीं, नये नाम मधुबाला के साथ। फिर भी अताउल्लाह खान को उम्मीद नहीं थी कि उनकी बेटी बड़ा सितारा बनेगी, लेकिन ‘महल’ (1949) ने मधुबाला को रातोंरात बहुत बड़ा स्टार बना दिया। वह उस समय 16 बरस की थीं।
1960 में दक्षिण में एक फिल्म की शूटिंग करते हुए मधुबाला को पहली बार खून की उल्टी हुई। इलाज के लिए वह अगले दिन अपने पति किशोर कुमार के साथ लंदन गईं। किसी को नहीं मालूम था कि उनके दिल में छेद है। डॉक्टरों ने कहा कि ऑपरेशन सफल नहीं होगा। इससे भी दुखद सूचना यह थी कि डॉक्टरों के अनुसार 27 वर्ष की युवा मधुबाला के पास जीवन के मात्र दो वर्ष शेष रह गये थे। मधुबाला ने भारत में भी अनेक डॉक्टरों से कंसल्ट किया, सभी ने उनके डर की ही पुष्टि की। उन्हें फिल्मों से ब्रेक लेने के लिए कहा गया, लेकिन काफी फिल्में पूरी करनी थीं। मधुबाला ने बीमारी की स्थिति में ही ‘मुगले-आज़म’ (1960) के गीत व कुछ सीन पूर्ण किये। इस फिल्म को पूरा होने में नौ साल लगे थे और वह दौर मधुबाला की पीड़ा का था। उन वर्षों में वह गीता दत्त व वहीदा रहमान को छोड़कर बमुश्किल ही फिल्मोद्योग के किसी व्यक्ति से मिलती थीं। वह नहीं चाहती थीं कि बीमारी की स्थिति में कोई उन्हें देखे। उनके जीवन के आखिरी वर्षों में दिन रात उनके साथ उनकी बहन मधुर भूषण (ज़ाहिदा) ही रहती थीं। 23 फरवरी 1969 को मात्र 36 वर्ष की आयु में मधुबाला का मुंबई में निधन हो गया।
मधुबाला की मौत को 54 साल हो गये हैं। इतना समय गुज़र जाने के बाद भी मधुबाला को उनकी सुंदरता के लिए याद किया जाता है। वह इतनी सुंदर थीं कि उन्हें मेकअप की ज़रूरत ही नहीं पड़ती थी। मधुबाला की सुंदरता के कारण उनकी बहनों को उनके पास बैठने में काम्प्लेक्स होता था। लेकिन वह यह कहकर स्थितियों को सहज करतीं, ‘मैं तो एक्ट्रेस हूं न, इसलिए लोग मुझे मुड़ मुड़कर देखते हैं। तुम एक्ट्रेस बन जाओगी तो तुम्हें भी लोग मुड़ मुड़कर देखेंगे।’ 
बहरहाल, मधुर का कहना है कि मधुबाला का महत्व उनकी सुंदरता से कहीं अधिक है। बाहर की दुनिया के लिए वह रहस्य अवश्य थीं, लेकिन असल जीवन में वह अपनी बहनों के साथ बहुत मस्ती करती थीं, कभी बाल काट दिए, कभी कुछ कर दिया। उन्हें आइसक्रीम खाना व संगीत सुनना अच्छा लगता था। वह थिएटर में ब़ुर्का ओढ़कर फिल्में देखने जाती थीं। अगर आप उनसे पहले न मिले होते तो आपको लगता ही नहीं कि वह एक्ट्रेस हैं। वह कभी अपने को स्टार महसूस नहीं करत थीं और न ही स्टार की तरह नखरे करती थीं। मधुबाला जिनसे प्रेम करतीं व भरोसा करतीं, उनसे उन्हें अक्सर धोखा ही मिला, इसलिए उनको लगता था कि ‘सपना मेरा टूट गया’ गाना उनके जीवन को व्यक्त करता है। मधुर का कहना है, ‘मधुबाला को रोज़ यह प्रतीक्षा रहती कि उन्हें कोई डॉक्टर यह बताये कि उनके रोग का उपचार मिल गया है। वह जीना चाहती थीं। हां, हम भाग्य को बदल नहीं सकते, लेकिन अगर उन्हें उन लोगों से बदले में प्यार मिलता, जिन्हें वह प्यार करती थीं तो मैं समझती हूं कि उन्हें अपने रोग से लड़ने के लिए अधिक त़ाकत मिल जाती, वह अधिक दिन ज़िन्दा रह जातीं।’
इसलिए मधुर न सिर्फ मधुबाला की आत्मकथा ‘नाइन इयर्स ऑ़फ मधुबाला’ लिख रही हैं बल्कि उनकी बायोपिक बनाने का भी लम्बे समय से प्रयास कर रही हैं, जिसमें निरंतर अवरोध आ रहे हैं, खासकर इसलिए कि मधुबाला की अन्य बहनों को बायोपिक पर आपत्ति है। इसी वजह से फिल्मकार इम्तियाज़ अली ने बायोपिक के अधिकार लेने के बावजूद दो साल पहले कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर दिया था। मधुर ने फिर भी हिम्मत नहीं हारी है। वह कहती हैं, ‘मेरी बहनों की आपत्ति के कारण फिलहाल बायोपिक पर विराम लग गया है। मुझे उनकी आपत्ति अजीब लगती है... हमने उसका (मधुबाला) नमक खाया है। बायोपिक बनाने का आईडिया मेरे आध्यात्मिक गुरु का था और उन्हीं की मदद से मैं यह बनाकर रहूंगी।’
मधुबाला की बहनें शायद उनकी बायोपिक इसलिए नहीं बनने देना चाहतीं कि मधुबाला के अनेक पुरुषों से ‘संबंध’ रहे। उनका नाम कमाल अमरोही, प्रेमनाथ, दिलीप कुमार आदि से जुड़ा। लेकिन मधुर का कहना है, ‘मधुबाला इतनी सुंदर थीं कि उन्हें पुरुषों से लिंक करना बहुत आसान था। प्रेमनाथ उनसे शादी भी करना चाहते थे, लेकिन मधुबाला का नौ वर्ष तक दिलीप कुमार से प्रेम रहा और बहुत ही खराब ब्रेकअप के बाद उन्होंने किशोर कुमार से शादी कर ली।’ गौरतलब है कि दिलीप कुमार व मधुबाला ‘नया दौर’ (1957) के लिए शूटिंग कर रहे थे; निर्माता बी.आर. चोपड़ा ने आउटडोर शूटिंग रखी, जहां अताउल्लाह ने मधुबाला को जाने से इंकार कर दिया, बात अदालत तक पहुंची, दिलीप कुमार ने निर्माता का पक्ष लिया। इसके बावजूद मधुबाला चाहती थीं कि दिलीप कुमार उनके पिता से माफी मांग लें। दिलीप कुमार ने इंकार कर दिया। इससे दोनों में संबंध खराब हो गये; मधुबाला ने ‘नया दौर’ छोड़ दी। मधुर कहती हैं, ‘हमें दिलीप साहब से कोई शिकायत नहीं है। अगर वह मेरे अब्बा से माफी मांग लेते तो मधु आपा श्रीमती दिलीप कुमार हो जातीं।’

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