कर्नाटक चुनाव कांग्रेस व भाजपा के लिए एक बड़ी परीक्षा की घड़ी

 

एक चरण में कर्नाटक विधानसभा चुनाव 10 मई को होंगे। यह मुख्य रूप से 3 पार्टियों की दौड़ है, जिसमें भाजपा, कांग्रेस और एच.डी. कुमारस्वामी की जनता दल (एस) घरेलू, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की पूरी चकाचौंध में लड़ रही है। कर्नाटक के चुनाव हाल की राजनीतिक उथल-पुथल के बाद लड़े जा रहे पहले बड़े चुनाव हैं, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, उनके बिजनेस टाइकून मित्र गौतम अडानी और विपक्ष के नेता राहुल गांधी शामिल रहे हैं। राहुल गांधी ने अदम्य उत्साह के साथ कर्नाटक से ही अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का नेतृत्व किया था। कहने की जरूरत नहीं है कि लोकसभा से राहुल गांधी की अयोग्यता के बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस के लिए ‘जीवन और मृत्यु’ का मामला है।
गांधी वंशज राहुल ने खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए प्राथमिक चुनौती के रूप में रखा है और उन दोनों के लिए कर्नाटक हारना या जीतना उन्हें जी-20 का चर्चित बिंदु बना देगा। भारत ने पिछले साल बाली में 2023 के लिए जी-20 की अध्यक्षता ग्रहण की थी और तब से कर्नाटक सहित पूरे भारत में जी-20 कार्यक्रम चल रहे हैं। विदेशी प्रतिनिधियों की दृष्टि से यहां की राजनीतिक उथल-पुथल ओझल नहीं रही है। कुछ ही समय पहले अमरीकी विदेश विभाग ने संसद से राहुल गांधी की अयोग्यता पर अपनी नाराज़गी व्यक्त की।
हो सकता है, आखिरकार संयुक्त राज्य अमरीका भारत में होने वाली घटनाओं से ‘बेखबर’ न हो। पूरी दुनिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और कांग्रेस नेता राहुल गांधी को एक-दूसरे के आरोपों को चकमा देते हुए देख रही होगी, क्योंकि कर्नाटक में प्रचार तेज़ हो गया है। किसकी किस्मत डूबती है और किसकी किस्मत हिट होती है? दोनों पार्टियों के कई बड़े नेता भी हैं जिनकी प्रतिष्ठा दांव पर होगी। उनमें से कोई भी कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से बड़ा नहीं है, जिनके लिए कर्नाटक गृह-राज्य है और एक सुगम राजनीतिक शिकार का मैदान है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि पार्टी तंत्र की कमान संभालने के बाद खड़गे का यह पहला बड़ा चुनाव होगा। पहले से ही, खड़गे को राहुल गांधी के बड़े परमाणु विकल्पों के एक महत्वहीन पक्ष के रूप में देखा जाता है। लेकिन इस चुनाव से खड़गे के पास यह साबित करने का मौका है कि वह अपने किस्म के मजबूत आदमी हैं और किसी के विदुषक नहीं हैं। दलित कांग्रेस अध्यक्ष के ‘दलित-हुड’ की परीक्षा होगी। क्या और दलित वोटर कांग्रेस के खेमे में आयेंगे?
इतना कहे जाने के बाद भी यह मानना पड़ेगा कि केवल कर्नाटक में जीत ही कांग्रेस का कायाकल्प कर सकती है, और 2023 के शेष पांच विधानसभा चुनावों के लिए इसे फिर से जीवंत कर सकती है। कांग्रेस खुद को विपक्ष का स्वाभाविक नेता, भाजपा को हराने के लिए पहुंच और राष्ट्रीय वोट शेयर वाली एकमात्र विपक्षी पार्टी के रूप में देखती है। कांग्रेस को विश्वास है कि वह 2024 जीतेगी और वह 2024 जीत सकती है। लेकिन उसके लिए, कांग्रेस को 2023 में होने वाले चुनावों में जाने वाले ‘बड़े राज्यों’ में से पहला कर्नाटक जीतना होगा।
कांग्रेस हारना भी बर्दाश्त नहीं कर सकती। कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस की जीत पर ही राहुल गांधी का वर्तमान और भविष्य निर्भर है। केवल जीत ही राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के ‘सफलता’ के दावे को मान्य करेगी। अन्यथा, भारत जोड़ो यात्रा में बिताया गया समय राहुल गांधी के राजनीतिक ‘सीवी’ में एक और छेद होगा और माना जायेगा कि राहुल के कैलेंडर से चार महीने से अधिक का अंतराल बर्बाद हो गया।
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की छवि आंतरिक रूप से 2024 से जुड़ी हुई है। कांग्रेस और विशेष रूप से राहुल गांधी 2024 के लिए कांग्रेस की योजनाओं के लिए ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के महत्व को नजरअंदाज या कम नहीं कर सकते। इसलिए भी क्योंकि राहुल गांधी पार्टी के स्टार प्रचारक होंगे, जो कर्नाटक से अपना चुनाव अभियान शुरू करेंगे। राहुल गांधी अपने कर्नाटक अभियान की शुरुआत कोलार से करेंगे, वहीं जगह जहां से उन्होंने सवाल किया था, ‘क्या सभी ‘मोदी’ उपनाम वाले चोर हैं?’
असली सवाल यह है कि क्या कांग्रेस में डटे रहने और लड़ने और जीतते रहने की सहनशक्ति है ‘विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए एक बड़ी हार उसके भाग्य को सील कर देगी। यदि कांग्रेस कर्नाटक में हार के साथ शुरुआत करती है, जिसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को दोष देना होगा, तो कोई भी महत्वाकांक्षी क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस नेतृत्व को स्वीकार नहीं करेगा। कांग्रेस कार्यकर्ता खड़गे को रायपुर अधिवेशन में ‘अनुशासन, एकजुटता और पूर्ण एकता के साथ काम करने’ का आह्वान करना नहीं भूलेंगे। यह खड़गे ही थे जिन्होंने 2024 के ‘सर्व-महत्वपूर्ण’ लोकसभा चुनावों के लिए पार्टी की दिशा तय की, जिसे पार्टी ने ‘भारत के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण’ बताया। लेकिन राहुल गांधी भी कर्नाटक में हार की स्थिति में उसके दुष्प्रभाव से दूर नहीं रह पायेंगे। राहुल गांधी के कर्नाटक चुनाव अभियान का नेतृत्व करने के साथ राहुल के पास जिम्मेदारी और जवाबदेही से बचने का कोई रास्ता नहीं है। अगर कर्नाटक पार्टी अध्यक्ष चुने जाने के बाद खड़गे के लिए पहली बड़ी परीक्षा होगी, तो यह राहुल गांधी के लिए भारत के लोगों को यह साबित करने का मौका होगा कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जितने अच्छे हैं और शायद उनसे कहीं बेहतर हैं, जैसा कि समर्थकों के दिग्गजों का दावा है।
कर्नाटक विधानसभा चुनाव कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए ‘मोदी-अडानी’ को परखने का पहला अवसर होगा। यह देखने को मिलेगा कि कथित भ्रष्टाचार के मुद्दे ने मतदाता-वरीयताओं को कितना प्रभावित किया है ऐसे समय में जब अधिसंख्य मीडिया को एक अलग ही सूत कातने के लिए तैयार रखा गया है। 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह को राज्य में लौटने के लिए मजबूर करेंगे जो उनके हाथों से फिसल रहा है। 2023 के अब तक के तीन महीनों में, मोदी ने कर्नाटक के 13 दौरे किये हैं और चुनाव के दिन के एक महीने में, वह संभवत: 13 और करेंगे। ऐसा ही उनके राजनीतिक लेफ्टिनेंट केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी करेंगे। वैसे तो ‘13’ एक अशुभ अंक माना जाता है। (संवाद)