इतिहास के कालक्रम को नष्ट करेगा पाठ्य पुस्तकों में नवीनतम विलोपन

 

इस वर्ष स्वतंत्रता दिवस समारोह और लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का भाषण हमें हमारी वास्तुशिल्प उपलब्धियों और इसके सौंदर्यशास्त्र पर गर्व नहीं कराएगा, क्योंकि लाल किला अपने इतिहास से वंचित किया गया है। दुनिया के सात अजूबों में से एक ताजमहल आभासी वास्तविकता में बदल जाएगा। हमारे महाकवि रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में जैसे ताजमहल ‘अनंत काल के गाल पर आंसू की एक बूंद’ कालेर कपोल तले, एक बिंदु अश्रुजल मात्र रह जाएगी। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि पूरे मध्यकाल को काल के ताने-बाने से कोई नहीं मिटा सकता। निरंतरता का मुद्दा है और संस्कृति, रचनात्मकता, प्रगति और अंत में सभ्यतागत सच्चाई का। औपनिवेशिक शासकों के खिलाफ स्वतंत्रता का पहला युद्ध आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर के नेतृत्व में लड़ा गया था। हमारा देश उन देशों में से एक था, जहां सभी क्षेत्रों, समुदायों और राजनीतिक अनुयायियों के विशाल जनसमूह ने एक ही उद्देश्य के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया और वह था ब्रिटिश उपनिवेशवाद से मुक्ति। जैसे ही संघर्ष समाप्त हुआ, यह आधुनिक आदर्शों और मूल्यों के साथ लोकतंत्र की ओर एक आसान बदलाव था। 1947-49 के वर्षों के दौरान हमारे जनसांख्यिकीय प्रोफाइल का ख्याल रखते हुए संविधान तैयार किया गया था। इसे 1950 में एक प्रस्तावना के साथ अपनाया गया था। जिसने हमें एक संप्रभु, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य का वायदा किया था। इन दायरों में कोई भी बदलाव हमारे संविधान की भावना के खिलाफ होगा। हम लोगों ने जो बंटवारे के खून से लथपथ दिनों से बचे हुए हैं, अभी तक पहले आम चुनाव में ही धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लिए मतदान किया था, जिसने दिखाया था कि मूल्य हमारे जीवन की तरह ही पवित्र हैं। फिर भी चुनौतियां हैं।
दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य के काल से अनेक संदर्भ हटा दिए गए हैं। एनसीईआरटी द्वारा अप्रैल की शुरुआत में जारी की गई पाठ्यपुस्तकों में मुगल साम्राज्य के कई सौ वर्षों को कवर करने वाले खंड गायब हैं। आज़ादी के बाद की अवधि के खंड भी गायब हैं जैसे महात्मा गांधी की हत्या, गुजरात दंगे आदि। जाति ,वर्ग, धर्म और सत्ता के साथ उनके संबंध जैसे मुद्दे भी थे, जिन्हें हटा दिया गया है। एनसीईआरटी ने इन कदमों को सही ठहराने की कोशिश की है यह दलील देते हुए ताकि कोविड के दिनों में छात्रों पर अधिक भार न पड़े। उन्होंने यह भी कहा कि यह केवल युक्तिकरण की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा था। इसका परिणाम यह होगा कि पंद्रह सौ ईस्वी से लेकर सत्रह सौ ईस्वी के मध्य तक यानी पूरे मुगल काल को संभालने वाले अध्यायों से छात्र वंचित रह जाएंगे। पूरे देश में बड़ी संख्या में छात्रों द्वारा एनसीईआरटी की पुस्तकों का अध्ययन किया जाता है। सिफारिशें इस बहाने आई हैं कि इन विलोपन से छात्रों के ज्ञान की खोज प्रभावित नहीं होगी। परन्तु सच तो यह है कि हमारे देश में हिंदुओं की आबादी 80 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों की आबादी 14 प्रतिशत है। 12वीं कक्षा की इतिहास की पाठ्य पुस्तकों में गांधी पर ऐसे अंश हैं जो आलोचना के अधीन रहे हैं, जैसे ‘गांधी की हिन्दू  मुस्लिम एकता की खोज ने हिन्दू चरमपंथियों को उकसाया.... आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।’.... फिर, ‘.... वह विशेष रूप से उन लोगों द्वारा नापसंद किया गया जो चाहते थे कि हिन्दू बदला लें या जो चाहते थे कि भारत-पाकिस्तान की तरह हिन्दूओं का देश बन जाए। गांधी जी को लगा कि ये लोग गुमराह हैं। उन्हें विश्वास था कि भारत को केवल हिन्दूओं के लिए एक देश बनाने का कोई भी प्रयास भारत को नष्ट कर देगा। फिर भी’ ‘...हिन्दू-मुस्लिम एकता के उनके दृढ़ प्रयास ने हिन्दू चरमपंथियों को इतना उकसाया कि उन्होंने गांधी जी की हत्या के कई प्रयास किए.. उन्होंने सशस्त्र सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया।’ शेष अंश जो हटाया नहीं गया था, कहता है, ‘आखिरकार 30 जनवरी, 1948 को, एक ऐसा ही उग्रवादी नाथूराम विनायक गोडसे गांधी जी की शाम की प्रार्थना के दौरान उनके पास गया और उन पर पांच गोलियां चलाईं और उन्हें मार डाला।’ 
बस इतना ही नहीं था। गांधी जी की हत्या के बाद के दिनों में देश में साम्प्रदायिक स्थिति के बारे में बात करने वाले अंशों को भी हटा दिया गया था।‘गांधी जी की मृत्यु का देश में साम्प्रदायिक स्थिति पर जादुई प्रभाव पड़ा। विभाजन के बाद का गुस्सा और हिंसा अचानक शांत हो गई। भारत सरकार ने साम्प्रदायिक नफरत फैलाने वाले संगठनों पर नकेल कसी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे संगठनों पर कुछ समय के लिए प्रतिबंध लगा दिया गया था। साम्प्रदायिक राजनीति अपना आकर्षण खोने लगी।’ कक्षा 6 से 12 की पाठ्य पुस्तकों में से उन अंशों को भी हटा दिया गया है जो साम्प्रदायिकता के विरुद्ध सामाजिक आंदोलन बन गए थे। वास्तव में एनसीईआरटी के लिए पाठ्य पुस्तकों की समीक्षा करना एक नियमित अभ्यास बन गया है और यह 2014 के बाद से तीसरा है। 2017 में, 1334 परिवर्तन हुए और 182 पुस्तकों में डेटा अपडेट या परिवर्तन भी किये गये। फिर 2019 में छात्रों पर बोझ कम करने के बहाने बहुत सारे अंश  हटा दिये गये। (संवाद)