सर्वोच्च् न्यायालय की गम्भीर टिप्पणियां


एक बार पुन: बिलकिस बानो मामले की बात चली है। उस दर्दनाक घटना की याद 21 वर्ष का समय व्यतीत होने के बाद भी दिलों के भीतर बनी हुई है, उसी तरह जैसे कि मार्च 2002 में गुजरात के गोधरा में साबरमती एक्सप्रैस रेलगाड़ी  के एक डिब्बे में भयावह आग लग जाने के कारण अयोध्या से वापिस लौट रहे 59 कार-सेवकों के आग की भेंट चढ़ने की घटना, उसके बाद गुजरात में भयानक दंगे हुए, जिनमें हज़ारों ही लोग मारे गये। जिनमें अधिकतर मुस्लिम अल्प-संख्यक समुदाय से संबंधित थे। उस समय नरेन्द्र मोदी प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन पर घटित इस दर्दनाक घटनाक्रम के प्रति लापरवाही अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। आज तक भी इन काले सायों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा।
उस समय के दौरान ही बिलकिस बानो की दर्दनाक कहानी घटित हुई थी। दंगों के दौरान दोहक गांव में भड़की भीड़ द्वारा उसके परिवार पर हमला किया गया। बिलकिस बानो उस समय गर्भवती थी। उसके साथ दुष्कर्म किया गया तथा उसके सामने उसकी तीन वर्षीय बेटी सलेहा तथा उसके 13 अन्य पारिवारिक सदस्यों को मार दिया गया था। इस संबंध में लम्बे अदालती मामले में 11 व्यक्तियों को उम्र कैद की सज़ा सुनाई गई थी, जिसे बाम्बे हाईकोर्ट तथा सर्वोच्च न्यायालय ने भी कायम रखा था, परन्तु गत वर्ष इन 11 व्यक्तियों को गुजरात सरकार द्वारा रिहा कर दिया गया। गुजरात में भाजपा प्रशासन चला रही है। देश भर में इस संबंधी चर्चा हुई तथा भारी रोष भी उठा। अंतत: सर्वोच्च न्यायालय ने इसका संज्ञान लिया। उसकी ओर से इस मामले की सुनवाई करते हुए की गई टिप्पणियां बेहद महत्त्वपूर्ण हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने पूछा है कि दोषियों को किस आधार पर सज़ा से छूट दी गई है? क्या गुजरात सरकार ने इस मामले की गम्भीरता की पहचान करने का यत्न किया है तथा यह भी कहा है कि जो कुछ भी बिलकिस बानो के साथ हुआ, भविष्य में किसी अन्य के साथ भी हो सकता है। न्यायालय ने इस बात का भी विस्तार दिया कि सरकार द्वारा पहले भी इन दोषियों को बड़ी रियायतें दी जा जाती रही हैं। इस समय के दौरान एक दोषी को तीन वर्ष तक के समय की पैरोल दी गई। एक को 1200 दिनों की तथा एक अन्य दोषी 1500 दिन तक जेल से बाहर रहा। न्यायालय ने यह भी कहा कि यह कोई साधारण हत्या नहीं है, अपितु कत्लेआम है तथा और भी घिनौनी बात यह है कि एक गर्भवती महिला के साथ भीड़ द्वारा दुष्कर्म किया गया था।
इस मामले की सुनवाई अभी जारी है परन्तु जिस तरह की टिप्पणियां सर्वोच्च न्यायालय ने की हैं, वे बेहद अर्थ भरपूर हैं। यह इस बात का भी साक्ष्य है कि यदि तत्कालीन सरकारें घिनौने अपराधियों को छूट देती हैं तो न्यायालय प्रभावित लोगों की रक्षा के लिए अपनी वचनबद्धता भी निभा सकते हैं, जिससे लोगों के दिल में न्यायालयों के प्रति विश्वास बढ़ता है। समाज को भी ऐसे ़फैसलों से हौसला मिलता है तथा वह और भी सचेत होकर विचरण करने लगता है। आगामी समय में इस घिनौने अपराध के लिए ज़िम्मेदार दोषियों को पुन: सलाखों के पीछे भेजना समाज के लिए एक बड़ी राहत का काम होगा। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द