मानहानि का मुकद्दमा यानी मुंह की कालिख से तुरंत निपटने का फेसवाश

 

व्यंग्य के हर पंच पर किसी न किसी की मानहानि ही की जाती है। यह और बात है कि सामने वाला उसका नोटिस लेता है या नहीं और व्यंग्यकार को मानहानि का नोटिस भेजता है या नहीं। व्यंग्यकार अपनी बात का सार्वजनिककरण इनडायरेक्ट टेंस में कुछ इस तरह करता है कि सामने वाला टेंशन में तो होता है पर मुस्कुरा कर टालने के सिवाय उसके पास दूसरा चारा नहीं होता लेकिन जब बात सीधी टक्कर की ही हो जाये तो मानहानि का मुकदमा बड़े काम आता है। 
सार्वजनिक जीवन में स्वयं को बहुचर्चित व अति लोकप्रिय होने का भ्रम पाले हुये किसी शख्सियत को जब कोई सीधे ही मुंह पर कालिख मल जाये तो तुरंत डैमेज कंट्रोल में बतौर फेसवाश  मानहानि का मुकदमा किया जाता है। जब  समय के साथ मुकदमे की पेशी दर पेशी,मुंह की कालिख कुछ कम हो जाये, लोग मामला भूल जायें तो आउट आफ कोर्ट माफी वगैरह के साथ मामला सैट राइट हो ही जाता है लेकिन यह तय है कि रातों रात शोहरत पाने के रामबाण नुस्खों में से एक है मानहानि के मुकदमे में किसी पक्ष का हिस्सा बन सकना। 
मैं भी बड़े दिनों से लगा हुआ हूं कि कोई तो मुझे मानहानि का नोटिस भेजे और अखबार के संपादकीय पृष्ठ पर छपते व्यंग्याें में बतौर लेखक मेरा नाम अंदर के पन्ने से उठकर कवर पेज पर बाक्स न्यूज में पढ़ा जाये पर  मेरी तमाम कोशिशाें के बाद भी मेरी पत्नी के सिवाय कोई अब तक मुझसे खफा ही नहीं हुआ और पत्नी से तो मैं सारे मुकदमे पहले ही हारा हुआ हूं। पुराने समय में साले सालियों की तमाम सावधानियों के बाद भी जीजा और फूफा  वगैरह की मानहानि हर वैवाहिक आयोजन का एक अनिवार्य हिस्सा होता था। मामला घरेलू होने के कारण मानहानि के मुकदमे के बदले रूठने और मनाने का सिलसिला चलता था। किसकी शादी में कौन से जीजा कैसे रूठे और कैसे माने थे, यह चर्चा का विषय रहता था। 
लोक जीवन में देख लेने की धमकी, धौंस जमाकर निकल लेना आदि  मानहानि के मुकदमे से बचने के सरल उपाय हैं। सामान्यत: जब यह लगभग तय हो कि मानहानि के मुकदमे में सामने वाला कोर्ट ही नहीं आयेगा तो उसे देख लेने की धमकी देकर छोड़ दिया जाता है। देख लेने की धमकी से बेवजह उलझ रहे दोनों पक्ष अपनी-अपनी इज्जत समेट कर पतली गली से निकल लेने का एक रास्ता पा जाते हैं।  देख लेने की धमकी कुछ-कुछ लोक अदालत के समझौते सा व्यवहार करती है। 
इसी तरह जब खुद की औकात ही किसी अपने की औकात पर टिकी हो जैसे आपका कोई नातेदार थानेदार हो, बड़ा अफसर हो या मंत्री हो, विपक्ष का कद्दावर नेता हो तो भले ही आपका स्वयं  का  कुछ मान न हो पर आप अपना सम्मान अपने  उस  महान रिश्तेदार के मान से जोड़ सकते हैं और सड़क पर गलत ड्राइविंग या गलत पार्किंग करते पाये जाने पर, बिना रिजर्वेशन आक्यूपाइड अनआथराइज्ड बर्थ पर लेटे-लेटे, किसी शो रूम में मोलभाव करते हुये  बेझिझक अपनी रिलेशनशिप को जताते हुए धौंस जमाने के यत्न कर सकते हैं। धौंस जम गई और आपका काम निकल गया 
तो बढ़िया वरना आप जो हैं वह तो हैं ही। 
तुलसी बाबा बहुत पहले चित्रकूट के घाट पर गहन चिंतन मनन के बाद लिख गये हैं ‘लाभ हानि, जीवन मरण, यश अपयश, विधि हाथ।’ तुलसी की एक एक चौपाई की व्याख्या में बड़े बड़े शोध ग्रंथ लिखे जा चुके हैं। कथित विद्वानाें ने डाक्टरेट की उपाधियां लेकर  यश अर्जित किया है, और इस लायक हुए हैं कि उनकी मानहानि हो सके वरना तो देश के करोड़ों लोगों का मान है ही कहाँ कि उनकी मानहानि हो। तो जब आपकी भी धौंस न चले, देख लेने की धमकी काम न आवे तो बेशक आप विधाता को अपने मान के अपमान के लिये दोषी ठहरा कर स्वयं खुश रह सकते हैं।  
तुलसी की चौपाई का स्पष्ट अर्थ है कि यश और अपयश विधि के हाथाें में है, फिर भी जाने क्यो लोग मान अपमान की गांठें बाधे अपने जीवन को कठिन बना लेते हैं। देश की अदालत में वैसे ही बहुत सारे केस हैं सुनवाई को। ए.सी. लगे कमरों के बाद भी कोर्ट को गर्मी की छुट्टियां भी मनानी पड़ती है,  इसलिये हमारी विनम्र गुजारिश है कि कम से कम मानहानि के मुकदमे दर्ज करने पर रोक लगा दी जाये। अध्ययन किया जाये कि क्या इसकी जगह अपनी ऐंठ में जी रहे नेता धमकी, धौंस, बयान वगैरह से काम चला सकते हैं?  
(अदिति)