खलनायक से नायक बने विनोद खन्ना

पृथ्वीराज कपूर के बाद विनोद खन्ना मात्र दूसरे ऐसे अभिनेता थे, जिन्हें मरणोपरांत दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्हें 2018 में 49वां दादा साहेब फाल्के अवार्ड दिया गया था। 6 अक्तूबर 1946 को पेशावर (अब पाकिस्तान में) में जन्मे विनोद खन्ना ने 1968 में फिल्मों में प्रवेश किया और विशेष रूप से ‘मेरे अपने’, ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘कच्चे धागे’, ‘गद्दार’, ‘इम्तिहान’, ‘म़ुकद्दर का सिकंदर’, ‘इंकार’, ‘कुर्बानी’, ‘कुदरत’, ‘खून पसीना’, ‘दयावान’, ‘चांदनी’ व ‘जुर्म’ में उनके अभिनय को बहुत पसंद किया गया। फिल्मी पर्दे पर खलनायक से नायक बने विनोद खन्ना का लम्बी बीमारी के बाद 27 अप्रैल 2017 को निधन हो गया था। विनोद खन्ना 70 व 80 के दशकों में हिंदी सिनेमा के बड़े सितारों में शामिल थे और अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी (हेरा फेरी, परवरिश, अमर अकबर एंथोनी, आदि) विशेष रूप से सफल रहीं। वह बीच में फिल्म संसार छोड़कर रजनीश (ओशो) की शरण में चले गये थे। जब पुन: बॉलीवुड में लौटे तो उन्हें पहली से सफलता हासिल न हुई, लेकिन फिर भी वह अपने अंतिम समय तक ‘दबंग’ जैसी फिल्म सीरीज़ में छोटी-छोटी भूमिकाओं में दिखायी देते रहे, जिन्हें अपने अभिनय कौशल व पर्दे पर प्रभावी व्यक्तित्व से यादगार बना दिया।
विनोद खन्ना द्वारा बाद के अपने करियर में कम फिल्मों में काम करने की एक वजह यह भी रही कि वह राजनीति में अधिक सक्रिय हो गये थे। वह लम्बे समय तक भाजपा की टिकट पर गुरदासपुर, पंजाब से सांसद (1998-2009 व 2014-2017) भी रहे और कुछ समय के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के मंत्रिमंडल में संस्कृति, पर्यटन व विदेश राज्यमंत्री भी थे। 1982 में अपने करियर के चरम पर विनोद खन्ना फिल्मी दुनिया छोड़कर अपने आध्यात्मिक गुरु ओशो की शरण में चले गये। पांच वर्ष बाद वह फिल्मी दुनिया में फिर लौटे और दो हिट फिल्में ‘इंसाफ’ व ‘सत्यमेव जयते’ दीं। फिल्में छोड़ने की वजह उन्होंने यह बतायी थी, ‘मेरे मन ने मुझसे ऐसा कराया था। मेरा मन हाइपर था, मेरे विचार हर जगह इधर-उधर बिखर जाते थे। मैं बहुत गुस्से में था क्योंकि मैं सैचुरेशन पॉइंट पर पहुंच गया था। लोग आपका बटन दबाकर आपसे प्रतिक्रिया करा सकते हैं ...लेकिन यह आपके नियंत्रण में नहीं है। जब मैं ध्यान लगाता तो मुझे एहसास हुआ कि मैं अपने मन को काबू में कर सकता हूं। यह बातें मुझे फिल्मों से दूर ले गयीं। मैंने फिल्मों को काफी समय दिया और काफी पैसा कमाया। अब मैं पूर्णत: ध्यान को खुद को समर्पित करना चाहता था और अपने गुरु के साथ रहना चाहता था। वह मेरे अंदर की ज़रूरत थी।’
व्यक्तिगत जीवन में विनोद खन्ना ने दो विवाह किये। उनकी पहली पत्नी गीतांजली थीं, जिनसे उन्होंने 1971 में विवाह किया, दोनों के दो पुत्र राहुल व अक्षय हुए, जो फिल्म अभिनेता ही हैं। विनोद खन्ना व गीतांजली का 1985 में तल़ाक हुआ। इसके बाद विनोद खन्ना ने उद्योगपति शरायु दफ्तरी की बेटी कविता दफ्तरी से 1990 में विवाह किया। इनसे भी उनके दो बच्चे हैं। बेटा साक्षी व बेटी श्रद्धा। कविता का कहना था, ‘वह साथ रहने के लिए बहुत कठिन व्यक्ति थे। लेकिन यही बात मुझे विनोद की पसंद आयी थी, जब हमने एक-दूसरे से बात करनी शुरू की थी। वह विचार की सीमाओं का विस्तार कर रहे थे और जब मैं उस स्पेस में थी, तो आधी रात को यह सब करना अच्छा लगता था। हर रोज़ जीवन में एक ही काम करना कठिन हो जाता है, फिर आपकी त़ाकत भी आपकी कमजोरी बन जाती है। उन्हें मेरा मन पसंद था, लेकिन जब मैं अधिक समीक्षा करने लगती थी तो उन्हें अच्छा नहीं लगता था।’
विनोद खन्ना को हालांकि कई बार फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नामांकित किया गया, लेकिन उन्हें एक बार ही सहायक अभिनेता का सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार मिला- 1975 में फिल्म ‘हाथ की सफाई’ के लिए। वैसे फिल्मफेयर ने उन्हें 1999 में और जी ने 2007 में उन्हें लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड से सम्मानित किया।
विनोद खन्ना का जन्म हिन्दू परिवार में हुआ था। उनकी मां कमला व पिता कृष्णचंद देश विभाजन के समय अपने दो पुत्र व तीन बेटियों को लेकर पेशावर से बॉम्बे (अब मुंबई) आ गये थे। हालांकि उनका परिवार 1957 में दिल्ली में आ गया था, लेकिन उन्हें 1960 में पढ़ने के लिए नासिक के निकट देओलाली के बार्नेस स्कूल में भेज दिया गया था। बोर्डिंग स्कूल के दौरान विनोद खन्ना ने ‘सोलवां साल’ और ‘मुगले आज़म’ फिल्में देखीं और उन्हें फिल्मों से प्यार हो गया। उन्होंने शिडेहम कॉलेज, बॉम्बे से कॉमर्स की डिग्री हासिल की। वह टेस्ट प्लेयर बुद्धि कुंदरण के साथ अच्छी क्रिकेट भी खेलते थे, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि वह गुंडप्पा विश्वनाथ नहीं बन सकते, तो फिल्मों को प्राथमिकता दी, हालांकि उनका पहला प्यार हमेशा क्रिकेट ही बना रहा।

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर