प्रैस की आज़ादी में आया और अवसान

देश में प्रैस की आज़ादी तथा पत्रकारों की कार्य स्थितियों में सुधार के लिए संघर्ष कर रहे मीडिया संगठनों तथा पत्रकारों की चिन्ता बढ़ाने वाला एक समाचार प्रकाशित हुआ है कि प्रैस की आज़ादी के पक्ष से भारत का स्थान और नीचे चला गया है। ‘रिपोर्टज़र् विदाऊट बार्डरज़’ नामक एक राष्ट्रीय संस्था द्वारा हर वर्ष 3 मई को अन्तर्राष्ट्रीय प्रैस आज़ादी दिवस तथा प्रैस की आज़ादी के पक्ष से भिन्न-भिन्न देशों की मीडिया रैंकिंग के संबंध में रिपोर्ट जारी की जाती है, जिसे ‘वर्ल्ड प्रैस फ्रीडम इन्डैक्स’ भी कहा जाता है। इस संबंध में 2023 के लिए जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार 180 देशों में प्रैस की आज़ादी के पक्ष से भारत और नीचे गिर कर 161वें स्थान पर पहुंच गया है, जबकि 2022 की रिपोर्ट के अनुसार भारत 150वें स्थान पर था। इस तरह भारत 11 स्थान और नीचे चला गया है। 2023 के लिए जारी की गई इस रिपोर्ट में भारत को प्रैस की आज़ादी के पक्ष से ‘बुरा’ देश घोषित कर दिया गया है, जबकि विगत वर्ष की रिपोर्ट में भारत को प्रैस की आज़ादी के पक्ष से ‘समस्याओं’ वाला देश घोषित किया गया था। जिन अन्य दो देशों में भारत की तरह ही प्रैस की आज़ादी के पक्ष से स्थिति बुरी हो गई है, उनमें कज़ाकिस्तान तथा तुर्की आदि शामिल हैं। भारत के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने जारी इस रिपोर्ट को पहले की भांति ही मानने से इन्कार कर दिया है तथा यह आरोप लगाया है कि यह रिपोर्ट तथ्यों पर आधारित नहीं है, परन्तु इस समय के दौरान देश में प्रैस की आज़ादी के लिए काम कर रहे संगठनों ‘द इंडिया वूमैन प्रैस फोर’, ‘प्रैस क्लब ऑफ इंडिया’, ‘प्रैस एसोसिएशन’ जो एक साझा ब्यान जारी करके भारत की दर्जाबंदी में आई गिरावट पर गहन चिन्ता प्रकट की है। देश के कई अन्य मीडिया कर्मचारियों तथा राजनीतिक नेताओं ने भी देश में प्रैस की आज़ादी के प्रति केन्द्रीय शासकों के रवैये की आलोचना की है। विश्व स्तर पर ऐसी रिपोर्ट तैयार करते समय विश्व के भिन्न-भिन्न देशों में प्रैस की आज़ादी तथा पत्रकारों की कार्य स्थितियों संबंधी ‘रिपोर्टज़र् विदाउट बार्डज़र्’ के साथ जुड़े पत्रकारों द्वारा गहन अध्ययन किया जाता है तथा भिन्न-भिन्न देशों में सरकारी तथा ़गैर-सरकारी पक्षों द्वारा पत्रकारों को पेश चुनौतियों तथा विशेष रूप से प्रैस की आज़ादी तथा पत्रकारों के संबंध में, संबंधित देश की सरकारों के रवैये को ध्यान में रखा जाता है। ऐसी प्रक्रिया के बाद ही उपरोक्त वार्षिक रिपोर्ट जारी की जाती है।
भारत में प्रैस की आज़ादी संबंधी उक्त ताज़ा रिपोर्ट में यह कहा गया है कि सूचनाओं के स्वतंत्रतापूर्ण आदान-प्रदान में अन्य कारणों के अलावा एक बड़ी रुकावट यह भी बन रही है कि सत्ताधारी राजनीतिक नेताओं के साथ निकटता रखने वाले कारोबारियों द्वारा मीडिया संस्थानों को खरीदा जा रहा है तथा ऐसे संस्थान स्वतंत्र रूप में अपनी भूमिका अदा करने में असफल रहते हैं। चाहे केन्द्र के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने देश में प्रैस की आज़ादी के संबंध में आई रिपोर्ट को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया है परन्तु देश की भीतरी ह़क़ीकतें यह बयां करने के लिए काफी हैं कि यहां दिन-प्रतिदिन प्रैस की आज़ादी सिकुड़ रही है। जो मीडिया संस्थान भय या लालच के कारण अपने पेशेवर ़फज़र् को भुला कर केन्द्रीय शासकों या प्रांतीय स्तर के सत्तापक्षों का समर्थन करते हैं, सत्तापक्ष को उत्तरदायी बनाने के स्थान पर हमेशा विपक्षी पार्टियों के नेताओं की आलोचना करने में लगे रहते हैं, या देश में सत्तापक्षों के राजनीतिक एजैंडे को आगे बढ़ाने के लिए लोगों के भिन्न-भिन्न वर्गों में साम्प्रदायिक ऩफरत फैलाने के काम में व्यस्त रहते हैं, उन्हें सरकारें प्रत्येक ढंग से सम्मानित करती हैं। ऐसे मीडिया संस्थानों के बारे में ही ‘गोदी मीडिया’ का नाम प्रचलित हुआ है। परन्तु जो मीडिया संस्थान राष्ट्रीय स्तर पर या राज्य  स्तर पर सत्तारूढों के प्रति आलोचनात्मक दृष्टिकोण रखते हैं, उन्हें सत्तापक्ष द्वारा विज्ञापन बंद करके, उनकी रजिस्ट्रेशन रद्द करके या उन्हें ‘आफ लाईन’ सज़ा देने की कोशिश की जाती है। सरकारों द्वारा स्वतंत्र दृष्टिकोण रखने वाले पत्रकारों पर झूठे केस बना कर भी वर्षों तक उन्हें जेल में रखा जाता है। सुप्रीम कोर्ट में भी सरकारों की ओर से भिन्न-भिन्न मीडिया संस्थानों को निशाना बनाने के कई बार केस गए हैं, जिनके संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर प्रेस की आज़ादी के पक्ष में कड़ी टिप्पणियां भी की हैं। हाल ही में केरल के एक मलयालम न्यूज़ चैनल ‘मीडिया वन’ पर देशद्रोह के आरोप लगा कर केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रसारण रोके जाने संबंधी केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के इस संबंधी आदेश को रद्द कर दिया है और सुप्रीम कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि केन्द्र सरकार द्वारा बिना ठोस तथ्यों से ही उक्त न्यूज़ चैनल के विरुद्ध कार्रवाई की गई है। इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि चैनल के सरकार के प्रति आलोचनात्मक विचारों को देश-विरोधी नहीं कहा जा सकता। एक मज़बूत लोकतंत्र के लिए पै्रस की आज़ादी की बेहद ज़रूरत होती है। सुप्रीम कोर्ट की इन टिप्पणियों से ही किसी लोकतांत्रिक देश में प्रैस की आज़ादी के महत्व को समझा जा सकता है। 
परन्तु जहां तक भारत का संबंध है, प्रैस की आज़ादी को चुनौतियां सिर्फ सरकारी पक्षों से ही नहीं हैं अपितु गैर-सरकारी पक्षों जैसे भिन्न-भिन्न प्रकार के माफिया, साम्प्रदायिक संगठनों तथा अनेक प्रकार के आतंकवादी संगठनों से भी ऐसी ही बड़ी चुनौतियां दरपेश हैं। इन कारणों से अनेक बार पत्रकारों को अपने जीवन से ही हाथ धोना पड़ता है। इस संबंध में हमारा बड़ा स्पष्ट विचार है कि प्रैस की आज़ादी को बरकरार रखने के लिए भिन्न-भिन्न स्तर पर मीडिया संस्थानों तथा पत्रकारों को इकट्ठे होकर आवाज़ बुलंद करनी चाहिए। लोकतंत्र को मज़बूत बनाने के लिए और सरकारों को जवाबदेह बनाए रखने के लिए उनकी ओर से ऐसा करना बेहद ज़रूरी है। देश के जागरूक नागरिकों तथा राजनीतिक दलों जो प्रैस की आज़ादी तथा मानवाधिकारों में विश्वास रखते हैं, उन्हें भी प्रैस तथा पत्रकारों के समर्थन में आगे आना चाहिए।