कुत्तों को भूकम्प का आभास इन्सान से पहले क्यों हो जाता है?

शाम का समय था, मैं अपने दोस्त के साथ शहर के पार्क में चहलकदमी कर रहा था। पक्षी अपने घोंसलों में लौट रहे थे, अपने बच्चों को दाना खिला रहे थे। सभी पक्षी चहचहा रहे थे। मुझे यह संगीत सुनने में बहुत अच्छा लग रहा था। लेकिन मेरे दोस्त को पक्षियों का चहचहाना सुनायी ही नहीं दे रहा था। यह अंतर क्यों था? क्या मेरे दोस्त के लिए पक्षियों का संगीत उसके सुनने की सीमा से ऊपर था? वैज्ञानिकों का कहना है कि कुछ लोग चिड़ियों का चहचहाना नहीं सुन सकते हैं। 
दरअसल, कुछ लोग हाई-पिच ध्वनि के प्रति बहरे होते हैं यानी उसे सुन नहीं सकते, जैसे किरकेट की चहचहाहट या चमगादड़ का किकियाना। ये लोग वास्तव में बहरे नहीं होते हैं और उनके सुनने के अंग भी बिना किसी कमी के एकदम सामान्य होते हैं। साधारण शब्दों में कहा जाये तो हमारे कान हमारे आसपास हो रहे हर कम्पन को सुन नहीं पाते हैं। हमें कोई ध्वनि सुनायी नहीं देती है अगर कम्पन 16 प्रति सेकंड से कम हो या 15,000-22,000 प्रति सेकंड से अधिक हो। 
हर व्यक्ति की सुनने की क्षमता अलग होती है। कुछ लोग तो मात्र 6,000 कम्पन प्रति सेकंड ही सुन पाते हैं, विशेषकर जो बुज़ुर्ग हो गये हैं। यही कारण है कि एक व्यक्ति तेज़ हाई-पिच ध्वनि स्पष्ट सुन लेता है, जबकि दूसरा सुन नहीं पाता है। कुछ कीट, मसलन मच्छर व किरकेट जो ध्वनि निकालते हैं, उसकी पिच 20,000 कम्पन प्रति सेकंड होती है, जो कुछ को सुनायी देती है और कुछ को सुनायी नहीं देती है। जो लोग हाई-पिच नोट्स के प्रति संवेदनशील नहीं होते, वे खामोशी का आनंद लेते हैं। जबकि जिनको यह सुनायी देती है वे परेशान हो जाते हैं, वह मच्छरों की भिनभिनाहट के कारण सो भी नहीं पाते। अब जब ध्वनिरहित ध्वनि के बारे में आपने इतना जान लिया है तो दो प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करो। एक, चमगादड़ रात के अंधेरे में किसी चीज़ से टकराये बिना तेज़ क्यों उड़ लेते हैं? दो, भूकम्प के आने का आभास कुत्तों को इंसानों से पहले क्यों हो जाता है? चमगादड़ उड़ते समय किकियाती है, जिसकी हाई-पिच इंसानों के सुनने की अधिकतम क्षमता से अधिक होती है। उसकी यह ध्वनि सामने की वस्तु से टकराकर वापस उसके पास लौट आती है, जिससे वह फासले का सही अनुमान लगा लेती है और किसी चीज़ से बिना टकराये उड़ती रहती है। चूंकि इनकी हाई-पिच को हममें से अधिकतर सुन नहीं सकते, इसलिए हमें लगता है कि चमगादड़ शोर-रहित प्राणी होते हैं।
अगर किसी क्षेत्र में भूकंप आने वाला हो तो उस जगह कुत्ते अजीबोगरीब रोने की सी आवाजें निकालने लगते हैं। कुत्तों को भूकम्प के आने का आभास इसलिए हो जाता है क्योंकि वह 38,000 कम्पन प्रति सेकंड की ध्वनि को सुन लेते हैं यानी जैसे ही भूकम्प के केन्द्र में हलचल होती है उससे निकलने वाले कम्पन को कुत्ते सुन लेते हैं, जबकि हम इतनी हाई-पिच को सुन नहीं पाते। बिल्डिंगों के हिलने पर ही हमें भूकम्प के आने का पता चलता है। इसलिए ज़रूरी है कि कुत्तों के ‘रोने’ पर भी बराबर ध्यान दें, सुरक्षित रहने के लिए।


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