कैसी है सेलुलर जेल काला पानी

अंडमान द्वीप समूह में छोटे-बड़े 572 द्वीप समाहित हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह का सम्पूर्ण क्षेत्रफल 8249 (एसक्यूआर) किलोमीटर है, यह द्वीप सैंडल पीक (532 मीटर), माउंट हैरियेट (365 मीटर), माउंट थूओलियर (642मीटर) जैसी ऊंची-ऊंची पहाड़ियां से घिरा हुआ है। तथा इसकी चेन्नई से (पोर्टब्लेयर) की दूरी 1190 किमी, कोलकाता से 1255 किमी. विशाखापट्टम से 1200 किमी. दूर है। एक अकेले अंडमान क्षेत्र की लंबाई 467 किलोमीटर तथा चौड़ाई 52 किलोमीटर है। निकोबार द्वीप समूह की लम्बाई 259 किलोमीटर तथा चौड़ाई 58 किलोमीटर है। ये सभी द्वीप, चारों ओर से भयंकर शोर मचाते, दहाड़ते समुद्र (बंगाल की खाड़ी)  से घिरा हुआ है।
अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह की एक प्रमुख जनजाति है ‘जारवा’। वर्तमान समय में इनकी संख्या 250 से लेकर 400 तक अनुमानित है जो कि अत्यन्त कम है। जारवा लोगों की त्वचा का रंग एकदम काला होता है और कद छोटा होता है। करीब 1990 तक जारवा जनजाति किसी की नज़रों में नहीं आई थी और एक अलग तरह का जीवन जी रही थी। अगर कोई बाहरी आदमी इनके दायरे में प्रवेश करता था, तो ये लोग उसे देखते ही मार देते थे। जारवा जनजाति अब भी तीर-धनुष से अपने लिए शिकार करती है। इनकी आबादी प्रतिवर्ष घटती देखी गई है, एक अनुमान के अनुसार वर्तमान में इनकी आबादी 250 से 400 के बीच है।
‘अंडमान-निकोबार की राजधानी ’पोर्टब्लेयर’ है। यहां आपको ऐतिहासिल सेलुलर जेल, कोरबाइन्स कोव बीच, रोज आईलैंड, वाईपर आईलैंड, ब्रिटिश कालोनी आदि देखने को मिलती हैं... इस शहर को स्मार्ट सीटी के तौर पर विकसित किया गया है। उतार-चढ़ाव वाली सड़कों पर फर्राटे भरते वाहन, जब सुपाड़ी और पाम के सघन वृक्षों की हरियाली के बीच से होकर गुजरते है, तो यात्री यहां के नजारे देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है।
प्राय: सभी द्वीप, चारों ओर से भयंकर शोर मचाते, दहाड़ते समुद्र (बंगाल की खाड़ी) से घिरा हुए है, ऐसे दुर्गम स्थान पर ‘सेलुलर जेल’ का निर्माण किया जाना और उसमें सैकड़ों वीर सेनानियों को... उन क्रांतिकारियों को, जिन्हें ब्रिटिश सरकार अपने लिए बड़ा खतरा मानकर चलती थी, यहां लाकर कैद में रखा जाता था। यदि कोई कैदी, सैनिकों की क्रूर निगाहों से बचकर यहां से भागना भी चाहे, तो मीलों फैले समुद्र को तैर कर पार कर पाना उसके लिए लगभग असंभव ही था। ‘कालापानी’ के नाम से कुख्यात इस द्वीप समूह को ‘कालापानी’ के नाम से जाना गया। इसके पीछे दो तथ्य उभरकर सामने आते हैं, पहला तो यह कि अंडमान समुद्र का नीला गहरा पानी, जो देखने पर काला प्रतीत होता है, इस कारण इसका नाम ‘कालापानी’ पड़ा और दूसरा यह कि अंग्रेजों द्वारा जो खूंखार कैदियों और क्रांतिकारियों को सजा सुनाई जाती थी, सजा के रूप में इसे ‘कालापानी’ से संबोधित किया गया।
जब हम अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हैं, तो हमें उस ‘कालापानी’ की याद हो आती है, जो अंग्रेजों की बर्बरता को बतलाने के लिए काफी है। कालापानी की सजा का ख्याल आते ही शरीर के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हालांकि अब देश में ‘सजा-ए-कालापानी’ का कोई अस्तित्व नहीं रह गया है, फिर भी लोगों को उसके बारे में जानने की दिलचस्पी लगातार बनी हुई है। कालापानी शब्द अंडमान के बंदी उपनिवेश के लिए देश निकाला देने का पर्याय है। कालापानी का सांस्कृतिक भाव काल से बना है जिसका अर्थ होता है- मृत्यु जल या मृत्यु के स्थान से है, जहां से कोई वापस नहीं आ पाता। देश निकालों के लिए कालापानी का अर्थ तो यह भी है कि बचे जीवन के लिए कठोर और अमानवीय यातनाएं सहना। एक अन्य अर्थ में कालापानी यानि स्वतंत्रता सेनानियों को अनकही यातनाओं और तकलीफों का सामना करने के लिए जीवित नर्क में भेजना, जो मौत की सजा से भी बदतर था। कालापानी की सजा माने बंदी को अपनों से दूर भेजना, एक ऐसा अदृश्य लोक, जिसके बारे में कोई कुछ नहीं जानता। 
सेलुलर जेल-के नाम से कुख्यात इस जेल का निर्माण अटलांटा पाईंट की ऊंचाइयों पर स्थित है। इसका निर्माण 1896-1906 ईस्वीं के बीच हुआ। समुद्री किनारे पर एक पहरेदार के समान यह आज भी खड़ा है। जेल शहर के उत्तरीय पूर्व दिशा में है। इस जेल की एक-एक ईंट में क्रांतिकारियों के खून-पसीने का इतिहास छिपा हुआ है। यह जेल सात कतार में खड़ा है। हर कतार में तीन मंजिलें और सात ही कतार मंजिले, एक टावर से जुड़ी हुई है। दूर से देखने पर यह ‘स्टार फिश’ की तरह या साइकिल के चक्के से जुड़े स्पोक्स की तरह नज़र आता है। जेल के मध्य भाग में स्थित टावर से इस जेल की सात भुजाओं को एक साथ देखा जा सकता है। जेल का निर्माण कार्य 1896 में शुरु हुआ था और 1910 में सम्पन्न हुआ। यह इमारत एक गहरे भूरे लाल रंग की ईंटों से बनी हुई है।
सेलुलर जेल में बनी 698 एकांत कोठरियां 13.5 फीट लम्बी तथा सात फीट चौडी तथा दस फीट ऊंची है। कोठरी का लोहे का दरवाजा तीन फीट की लोहे की राड के साथ बंद होता है।
सेलुलर जेल के निर्माण होने के पहले यह वाइपर द्वीप की जेल थी, जिसे ब्रिटिश शासन द्वारा देश की आज़ादी की लड़ाई लड़ने वालों को प्रताड़ित किया जाता था। इस कुख्यात जेल को नाम दिया गया था-‘वाइपर चेन गईंग जेल’ ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने वालों के पैरों को जंजीर से जकड़ दिया जाता था।
सेलुलर जेल की वास्तुकला ‘पैसेव्लेनिया’ प्रणाली या एकांत प्रणाली के सिद्धांत पर आधारित थी, जिसमें अन्य कैदियों से पूरी तरह अलग रखने के लिए प्रत्येक कैदी को अलग-अलग रखने के लिए अलग-अलग कारावास देने का नियम था। एक ही विंग या अलग विंगों में कैदियों के बीच किसी भी प्रकार का संचार संभव नहीं था। पिसाई करने वाली चक्की पर, बागवानी करने, गरी सुखाने, रस्सी बनाने, नारियल की जटा तैयार करने, कालीन बनाने, तौलिया बुनने आदि का काम करते समय कैदियों के हाथों में हथकड़ी जकड़ी हुई रहती थी...एकांत कोठरी में कैद रहने, कई-कई दिनों तक भूखा रखने की सजा इतनी भयावह और असहनीय होती थी जिसकी कल्पना मात्र से शरीर में सिहरन होने लगती है।
देश का यह सेलुलर जेल क्रांतिकारियों के लिए आज़ादी का स्त्रोत रहा है, क्योंकि ब्रिटिश शासन खतरनाक क्रांतिकारियों को इस जेल में भेजते थे। अत्याचारों के विरुद्ध जब वे भूख हड़ताल करने को मजबूर हो जाते तो उन पर बेरहमी से लाठियां भांजी जाती थी। कैदियों को पत्र लिखने या पत्रिकाएं पढ़ने की सख्त मनाही थी। साल में कैदियों को एक बार अपने घर पत्र लिखने की इजाजत थी। उनकी लिखी चिट्ठियों की बारीकी से जांच-पड़ताल होती थी। अंग्रेजों के जुल्म और अत्याचार का मुकाबला कुछ ही कैदी कर पाते थे। बहुतेरों को अपनी जान तक गंवानी पड़ी थी। कुछ तो पागलपन का शिकार होकर काल-कवलित हो गए।
आज यह कुख्यात सेलुलर जेल नि:शब्द खड़ा है। उसके पास अपनी दास्तां सुनाने के लिए बहुत कुछ है। लेकिन मन में इतना दर्द छुपाए हुए है कि बतलाना भी चाहे, तो बतला नहीं पाएगा। किस-किस का दर्द सुनाएगा वह? किस-किस की करूण कहानी सुना पाएगा वह? विक्षिप्त अवस्था में रहते हुए कुछ भी नहीं सुना पाने का दर्द मन में समाए हुए उसने मौन रहना ही श्रेयस्कर समझा। केवल बावरी हवा उन कक्षों के चक्कर लगाकर लौट आती है गुमसुम-गुमसुम- सी...बिना कुछ बोले चुपचाप लौट जाती है। अगर इसकी बेजान दीवारें कुछ बोलना भी चाहे, तो कुछ नहीं बोल-बता पाएगी, क्योंकि उनमें मन में ब्रिटिश हुकुमत का खौफ भीतर गहराई तक घर कर गया है। ठीक है आज उसके भीतर न तो कोई क्रांतिकारी है और न ही कोई राजनीतिक कैदी। सारे कक्ष सूने पड़े हैं, जो अपना दर्द बयां करते नज़र आते हैं।

(सुमन सागर)