हिंदी पत्रकारिता के अनमोल रत्न प. हज़ारी बाबू आज हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष

भारत में हर साल 30 मई को हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। आज ही के दिन 1826 में हिंदी भाषा का पहला अखबार ‘उदन्त मार्त्तण्ड’ के नाम से कोलकाता से शुरू हुआ था। इस अखबार के पहले प्रकाशक और संपादक पंडित जुगल किशोर शुक्ल थे। आज हिंदी पत्रकारिता के 197 साल पूरे हो गए हैं। आज़ादी के आंदोलन में हिंदी पत्रकारिता देशवासियों की सशक्त आवाज़ बनी। आजादी के बाद हिंदी पत्रकारिता ने देश की प्रगति और विकास का मार्ग तेज़ी से तय किया। देश की इस प्रगति में स्वतंत्रता, निष्पक्षता और निडरता से पत्रकारिता कर्म निभाने वाले पत्रकारों-सम्पादकों की अहम भूमिका रही। आजादी के आंदोलन में भारतेंदु हरिश्चंद्र, बालकृष्ण भट्ट, महावीर प्रसाद द्विवेदी, गणेश शंकर विद्यार्थी, शिव प्रकाश गुप्त, आचार्य शिवपूजन सहाय, बनारसीदास चतुर्वेदी, माधव राव सप्रे, बाबूराव विष्णुराव पराडकर, मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, अज्ञेय और धर्मवीर भारती सरीखे पत्रकारों ने हिंदी पत्रकारिता को सम्मानजनक स्थान 
पर पहुंचाया। 
आज़ादी के बाद जिन लोगों ने हिंदी पत्रकारिता को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठाया, उनमें प. हजारी लाल शर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है। 1921 में राजस्थान के कोटपूतली के ग्राम कासली में जन्मे, स्वभाव से अक्खड़ व जीवनशैली के लिहाज़ से फक्कड़ इन्सान प. हजारी लाल शर्मा ने मूल्यपरक पत्रकारिता को एक आयाम तो दिया ही, साथ ही वह हिंदी पत्रकारिता के प्रखर पैरोकार रहे। उन्होंने अपना पूरा जीवन हिन्दी भाषा को समर्पित किया। हिंदी को जन-जन की भाषा बनाने में पत्रकारिता का बड़ा योगदान है। हिंदी पत्रकारिता के विकास में जो पत्रकार प्रकाश-स्तम्भ बने, उनमें ‘राष्ट्रदूत’ के संस्थापक सम्पादक पंडित हजारी लाल शर्मा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। दैनिक ‘राष्ट्रदूत’ की स्थापना पंडित हजारी लाल शर्मा ने 1951 में की थी। रजवाड़ों के प्रदेश राजस्थान में पंडित हजारी लाल शर्मा ने अपने समाचार पत्र के ज़रिये हिंदी के गौरव को स्थापित करने और हिंदी को नई गति और शक्ति देने का महत्वपूर्ण कार्य किया। वह हिंदी के कट्टर समर्थक थे। प. हजारी लाल शर्मा हजारी बाबू के नाम से लोकप्रिय थे।  
पत्रकारिता के साथ हजारी बाबू ने साहित्य को भी नई धार दी। साहित्य समाज का प्राण होता है। हजारी बाबू हिंदी साहित्य के जीता जागता प्रतिमान थे। अगर किसी पत्रकार अथवा सम्पादक के रुझान साहित्यिक होते हैं तो यह सोने पर सुहागे के समान होता है। साप्ताहिक ‘राष्ट्रदूत’ के माध्यम से उन्होंने प्रदेश के इतिहास, साहित्य, संस्कृति, खेल और जन सरोकारों को न केवल स्थापित किया अपितु एक नई पहचान दी। हजारी बाबू ने साहित्य और पत्रकारिता दोनों को सहेजते हुए सामाजिक चेतना का शंखनाद किया। उन्होंने साप्ताहिक ‘राष्ट्रदूत’ के माध्यम से प्रदेश की लुप्त होती जा रही सांस्कृतिक परम्पराओं का गौरव बहालकर प्रदेश के लेखकों, साहित्यकारों और  कवियों को उनकी रचनाओं के प्रकाशन का मंच प्रदान किया। देखते ही देखते साप्ताहिक ‘राष्ट्रदूत’ ने कला, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में नए प्रतिमान स्थापित किये। 
 हजारी बाबू के वक्त में पत्रकारिता का एक सुनहरा दौर था। तब पत्रकार कहलाना गर्वोक्ति होती थी। लोग बेहद सम्मान के साथ पत्रकार को संबोधित करते थे। समय के साथ पत्रकारिता बदल गयी। अब लोग पत्रकार शब्द सुनते ही बिगड़ैल घोड़े की तरह बिदकने लगे हैं। अब हजारी बाबू का दौर नहीं रहा। उस दौरान पत्रकार भूखे-प्यासे खबर की तरफ दौड़ते थे। हजारी बाबू ने ताज़िन्दगी मिशनरी पत्रकारिता की पैरवी की थी। वह अपने अखबार में ऐसे लोगों को जोड़ते थे जो नफासत-पसंद थे। हजारी बाबू की पहुंच सत्ता के उच्च गलियारों में थी मगर उन्होंने इसका कभी दुरुपयोग नहीं किया। हजारी बाबू के मार्गदर्शन में ‘राष्ट्रदूत’ ने शुचिता और पवित्रता को अपने साथ बनाये रखा और हिंदी पत्रकारिता की स्वस्थ परम्पराएं स्थापित कीं। आज भी राष्ट्रदूत उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है।

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