कागज़ की कहानी 

प्रिय बच्चों! तुम मुझे जानते ही होंगे! यह जो तुम अपनी प्रिय पत्रध्पत्रिका पढ़ रहे हो, यह मुझसे ही बनी है। मेरा नाम ‘कागज़’ है। तुम्हें मेरी आवश्यकता प्रतिदिन पड़ती है। तुम मुझ पर गणित के प्रश्न हल करते हो, अपनी वस्तुओं को खराब होने से बचाने के लिए मुझमें रखते हो, जब वर्षा होती है, तब तुम मेरी नाव बनाकर पानी में तैराते हो और लाखों रुपये की पहेलियां मुझ पर हल करके भेजते हो। जरा सोचो तो! यदि मैं न होता तो तुम सबको कितनी हानि होती? इस समय मैं इतना आम हो गया हूं कि यह बात तुम्हारे मस्तिष्क में कठिनता से ही आयेगी कि मेरा आविष्कार कैसे हुआ?
तुम जानते हो कि इतिहास में कोई समय तो ऐसा होगा ही जब मेरा आविष्कार नहीं हुआ होगा। कल्पना करो उस समय विश्व की क्या दशा होगी? न यह स्कूल-कॉलेज होते, न यह किताबें, न सरकार का इस प्रकार से प्रबंध होता, न ही यह वस्तुएं जो आजकल तुम्हारे सामने बनी हुई दिखाई देती है।
तुम उन्नति उस समय कर सकते हो जब तुमको यह ज्ञात हो कि तुमसे पहले कौन-सी खोज हो चुकी है। इस शिक्षा को इतिहास कहते हैं और इतिहास मुझ पर ही लिखा जाता है। यदि मैं नहीं होता तो तुम्हें पहले होने वाली उपलब्धियों का पता भी नहीं चलने पाता। तब तुम उनमें बढ़ावा किस प्रकार करते।
प्रारंभ में लोग हड्डियों, लकड़ियों और पौधों की छालों पर चित्र बनाया करते थे ताकि स्मरण के काम आये। परंतु तुम जानते ही हो यह उपाय कितना कठिन था और वस्तुएं सुरक्षित रहने वाली तो थी नहीं, तुम जो नुमाइश देखने जाते होंगे वहां उन्होंने यह वस्तुएं देखी होगी।
मुझे शुद्ध रुप से सबसे पहले डॉण्सटीन ने दीवारे चीन के एक घंटाघर से एक टुकड़े के रुप में बरामद किया था जिसके संबंध में यह धारणा है कि यह विश्व का सबसे प्राचीन टुकड़ा था। उसके पास जो वस्तुएं बरामद हुई उनमें यह ज्ञात होता है कि उनका संबंध मुसलमानों के पैगम्बर हजरत मुहम्मद के जन्म के समय से है।
8वीं शताब्दी ईस्वी में मुझे बनाना अरबों ने भी सीख लिया था और उन्होंने अपने चीनी कैदियों से यह सीखा था। अब अरबों ने यह बात यूरोप में पहुंचायी तो उसके साथ ही मुझे भी यूरोप पहुंचा दिया। अंग्रेजों ने मुझे बनाना 15वीं शताब्दी में सीखा और उसके बाद मैं बिल्कुल आम हो गया।

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