प्रकृति का खूबसूरत उपहार  कुल्लू

धूप में चांदी की तरह चमकते ऊंचे-ऊंचे बर्फीले पहाड़, देवदार के घने वृक्ष, कल-कल की ध्वनि करती बहती नदियां, दूर पहाड़ियों से गिरते झरने, चारों ओर हरा-भरा मखमली घास का मैदान देखकर ऐसा कौन होगा जो व्यास नदी के मुहाने पर बसे कुल्लू से प्रभावित न होगा? पीर पंजाल बड़ा बंधाल तथा पार्वती पर्वत श्रेणियों की गोद में बसा कुल्लू प्रकृति का बनाया खूबसूरत उपहार है। 
कुल्लू की खूबसूरत वादियां देखकर ऐसा लगता है कि मानो प्रकृति ने अपनी रंग-बिरंगी चादर यहां बिछा रखी हो? सेब के बागान, लकड़ी के बने प्राचीन मन्दिर, काष्ठ कलाकृतियां और दशहरा पर्व, ये सब पर्यटकों को कुल्लू की ओर आकर्षित करने से नहीं चूकते। झर-झर बहते झरनों और नदियों के जल के कर्ण प्रिय स्वर से घाटी संगीतमयी हो जाती है। हरे-भरे मैदानों, चरागाहों, खूबसूरत पेड़ों के प्राकृतिक साम्राज्य को देखकर कुल्लू को प्रकृति का बिछौना भी कहा जा सकता है?
कभी कुलाथपीठ के नाम से पहचाने जाने वाला कुल्लू प्रेमियों के लिए भी अनुकूल जगह है। कुल्लू क्षेत्र में एक ओर जहां व्यास नदी अपने प्रचंड आवेग से बहती है, वहीं पार्वती नदी भी कुल्लू परिक्षेत्र में, कसोल में अपने दूधिया, शीतल दर्पण से स्वच्छ जलराशि से आगन्तुकों का स्वागत करती प्रतीत होती है। शिमला से दो सौ चालीस कि.मी. की दूरी पर स्थित कुल्लू समुद्रतल से 1219 कि.मी. की ऊंचाई पर स्थित है। मनाली जैसा प्रसिद्ध पर्यटन स्थल भी कुल्लू से ज्यादा दूर नहीं है। मात्र 40 कि.मी. दूर मनाली कुल्लू के समान ही प्राकृतिक सौन्दर्य से सरोबार है।
कुल्लू घाटी का प्राकृतिक परिवेश, खूबसूरत पर्वत श्रेणियां तथा आस-पास बहती नदियां, ये सब कुल्लू में स्थायी रूप से बसने का आमंत्रण देती हैं।
कुल्लू घूमने के लिए अप्रैल से जून तथा सितम्बर से नवम्बर तक का समय अति उत्तम है। कुल्लू वायु मार्ग द्वारा पर्यटकों के लिए सुविधाजनक है। कुल्लू से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर भुंतर है जहां हवाई अड्डा है। रेल मार्ग द्वारा कुल्लू आने हेतु कालका शिमला तक का सफर रेल मार्ग द्वारा तय किया जा सकता है। आगे की यात्रा बस द्वारा ही संभव है।
एक अन्य रेल मार्ग भी है जो कुल्लू तक के सफर के लिए मुफीद है। यह मार्ग पठानकोट से जोगिन्द्र नगर तक है। जोगिन्द्र नगर से कुल्लू तक की दूरी बस या टैक्सी द्वारा तय की जा सकती है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 21 द्वारा अम्बाला, चंडीगढ़, बिलासपुर मंडी होते हुए अथवा पठानकोट पालमपुर, जोगिन्द्र नगर और मंडी या दिल्ली, चंडीगढ़ और शिमला होते हुए भी कुल्लू पहुंचा जा सकता है।
कुल्लू में हर दर्जे के ठहरने के होटल हैं। साथ-साथ खाने-पीने की भी सुविधाएं सहजता से मुहैय्या हो जाती हैं।
कुल्लू के दर्शनीय स्थल
ढालपुर मैदान नगर में ही अवस्थित है। यह मैदान हरा-भरा है जो अपनी प्राकृतिक छटा के कारण यह हर किसी का मन मोह लेता है। अवकाश के दिन स्थानीय लोग भी यहां घण्टों बैठने आते हैं। पर्यटकों की तो बात ही छोड़िए, उनके लिए तो इससे अच्छा पिकनिक स्पॉट और कौन-सा हो सकता है? पेड़ों के झुरमुटों के नीचे, शीतल हवा जहां मन को प्रसन्नता प्रदान करती है वहीं पर्यटक अपनी थकान से भी राहत महसूस करते हैं। ढालपुर मैदान से महज 1 कि.मी. दूर रघुनाथ मंदिर है जो ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्पूर्ण है यहां लकड़ी का कार्य देखने योग्य है। श्रद्धा और आस्था का केन्द्र रघुनाथ मंदिर का परिवेश मन को शांति व सुकून पहुंचाने वाला है।
अखाड़ा बाज़ार कुल्लू का मुख्य बाज़ार है। पर्यटक यहां से गर्म कपड़ों के अलावा हस्तशिल्प की वस्तुएं भी खरीद सकता है। कीनू, सेब व खुरमानी आदि फल यहां मिलते है। देश के अन्य क्षेत्र से आने वाले पर्यटक इन सबका जी भर कर रसास्वादन करते हैं। कुल्लू से 14 कि.मी. दूर समुद्रतल से लगभग 2500 कि.मी. की ऊंचाई पर बिजली महादेव का मंदिर स्थित है। यह मन्दिर कुल्लू घाटी का प्रसिद्ध मंदिर है। यहां से कुल्लू घाटी तथा पार्वती घाटी के प्राकृतिक दृश्य देखे जा सकते हैं जो नयनाभिराम हैं। यहां एक लोहे की छड़ रखी है जिस पर प्रतिवर्ष आकाश से बिजली गिरती है। यहां की यात्रा एक दम सहज तो नहीं है मगर आस्तिकों के उत्साह के कारण यहां दर्शनार्थियों का आवागमन बना रहता है। घूमने फिरने और कैम्पिंग के लिए रायसन से बढ़िया जगह और कौन सी होगी? समुद्रतल से 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित रायसन कुल्लू से 16 कि.मी. दूर है। 
कुल्लू से 45 किलोमीटर दूर मणिकरण साहिब है, जो समुद्रतल से 1737 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह स्थान सभी धर्मावलम्बियों को पसंद है। यहां एक विशाल गुरुद्वारा है जहां एक साथ लोगों के रहने की व्यवस्था है। इस स्थान पर प्राकृतिक गर्म पानी के चश्मे बहते हैं। जब पर्यटक गर्म पानी में चश्मे में नहाता है तो उसकी सारी थकान दूर हो जाती है। गर्मियों के दिनों में यहां भारी भीड़ रहती है। नग्गर पूर्व में कुल्लू की राजधानी रह चुका है। अब यह प्रसिद्ध कला केन्द्र के रूप में जाना जाता है। यह समुद्रतल से 1768 मीटर की ऊंचाई पर पहाड़ों के बीच बसा है। लगभग 1400 वर्षों तक कुल्लू की राजधानी रह चुका नग्गर अपने अतिथिगृहों के लिए चर्चित है। पर्यटकों के लिए नग्गर की यात्र यादगार होती है क्योंकि पैराग्लाइडिंग का भरपूर मजा सैलानियों को यहां आकर मिलता है। नग्गर में लकड़ी का बना एक पुराना मिला है जिस पर की गई कारीगरी को देखकर पर्यटक दंग रह जाते हैं। यहां मंदिर भी हैं, जो अनूठे व आकर्षक है। यहां एक हिमाचली बाज़ार है जहां पारम्परिक वस्तुएं मिलती हैं।
कुल्लू से 42 कि.मी. दूर केसोल है जिसके किनारे से होकर पार्वती नदी बहती है। केसोल में स्थानीय लोग छुट्टियां मनाने हेतु आते हैं। नवविवाहित दंपति यहां आकर खुशहाली से हनीमून का आनंद उठा सकते हैं। यहां वातावरण शांत है तथा पर्यटकों के मन को भाने वाला है। (उर्वशी)